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”अल्पमत वाले जो इस अन्याय के तले पिस रहे हैं, बहुमतवालों से कभी किसी प्रकार की सहायता न प्राप्त करेंगे, जिससे वे इस अन्याय से मुक्त हो सकेंगे।” डा. अम्बेडकर यहाँ किनके बारे में बात कर रहे हैं? क्या यह कहना ठीक है कि बहुमत वालों से उनको कभी सहायता नहीं मिली है ना मिलेगी?

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सार्वजनिक अंतरात्मा’ प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है। इसका आशय यह है कि किसी अन्याय का विरोध सभी नागरिकों को भेदभाव त्याग कर करना चाहिए तथा पीड़ित व्यक्ति की रक्षा करनी चाहिए, भले ही वह स्वयं उससे पीड़ित हो या न हो। इसी सन्दर्भ में लेखक ने उपर्युक्त बात कही है।

इस कथन में ‘अल्पमत’ दलित जातियों के लिए तथा ‘बहुमत’ उच्च जातियों के लिए प्रयुक्त शब्द है। दलित जातियाँ बहुत समय से भेदभाव तथा अन्याय का शिकार रही हैं। उनको सामाजिक असमानता की पीड़ा सहन करनी पड़ी है तथा अपमान भी झेलना पड़ा है। लेखक का कहना है कि सार्वजनिक अन्तरात्मा’ के न होने से ऐसा हो रहा है। वे अन्याय सहते रहेंगे और उच्च जाति वालों से उनको कोई सहायता प्राप्त नहीं होगी, जिससे वे इस अन्याय से मुक्त हो सके।

यह कथन अतिरंजित प्रतीत होता है कि बहुमतवालों से उनको कभी सहायता नहीं मिली है ना मिलेगी। यदि ध्यान से देखा जाय तो गौतम बुद्ध, सन्त कबीर, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, महात्मा गाँधी आदि अनेक महापुरुषों ने इस अन्याय का विरोध किया है।

महात्मा गाँधी का तो इसमें बहुत बड़ा योगदान है। दलितों में सामाजिक चेतना जगाने में गाँधी जी अग्रणी हैं। प्रेमचन्द, निराला, बच्चन तथा अनेक साहित्यकारों ने भी इस कार्य में योग दिया है।



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