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जाति, धर्म और क्षेत्रीयता की संकीर्ण मानसिकता से उपर उठकर देश के प्रति गर्व की एक गहरी भावना महसूस करना ही राष्ट्रवाद है। राम ने रावण को हराने के बाद अपने भाई लक्ष्मण से कहा था कि स्वर्ण नगरी लंका उनकी मातृभूमि के सामने तुच्छ है। उन्होंने कहा था ‘जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी (माता) और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है।

हमारा देश किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करता एवं वे अपने सभी अधिकारों और विशेषाधिकारों का उपयोग बिना किसी रोकटोक के करते हैं। यह हम सब की जिम्मेदारी है कि हम क्षेत्रीयता, धर्म और भाषा आदि सभी बाधाओं से उपर उठकर अपने देश में एकता और अखंडता को बढ़ावा दें।

निष्कर्ष

यह राष्ट्रवाद की भावना के साथ वर्षों तक किए गए कठिन संघर्षों एवं असंख्य बलिदानों का ही परिणाम है कि अंग्रेजों से भारत को आजादी मिल पायी। उस समय भारत कई रियासतों में विभाजित होने का बवजूद स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में एक राष्ट्र के रूप में खड़ा था। आजादी के सात दशकों बाद भी हमें राष्ट्रवाद की इस अटूट भावना को ऐसे ही बनाए रखने की आवश्यकता है क्योंकि आज भारत के भीतर और बाहर अलगाववादी एवं विघटनकारी ताकतों से राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता पर खतरा मंडरा रहा है। केवल राष्ट्रवाद की गहरी जड़ें ही भारत को कश्मीर या उत्तर-पूर्व भारत में चल रहे विघटनकारी आंदोलनों को परास्त करने की शक्ति दे रही है और आत्मनिर्णय के अधिकार के छद्म प्रचार के नाम पर आगे होने वाले विभाजन से भारत को बचा रही है।


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