InterviewSolution
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अंतर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की जाने वाली बाध्यकारी कार्यवाही की संक्षिप्त विवेचना कीजिए। |
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Answer» बाध्यकारी कार्यवाही अनुच्छेद 39 के अनुसार सुरक्षा परिषद् ही यह निर्णय करती है कि किन कार्यों द्वारा शांति भंग की दशा में आक्रमण की संक्रिया की जा सकती है। इस अनुच्छेद के अनुसार परिषद् सिफारिश तथा निर्णय दोनों प्रकार के कार्य करती है। अनुच्छेद 40 में यह व्यवस्था है कि किसी स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए सुरक्षा परिषद् अपनी सिफारिशें करने अथवा किसी कार्यवाही का निश्चय करने से पूर्व विवादी पक्षों से ऐसे अस्थायी कदम उठाने की माँग करेगी, जिन्हें वह आवश्यक समझती हो। इन अस्थायी कार्यों से विवादी पक्ष के अधिकारों, दावों या उनकी हैसियत को किसी प्रकार की हानि नहीं होगी। यदि कोई पक्ष इस प्रकार के अस्थायी कदम नहीं उठाता है तो सुरक्षा परिषद् इसकी ओर भी ध्यान रखेगी। बल प्रयोग के दोनों उपाय सुरक्षा परिषद् के निर्णय के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्यों को मानने पड़ते हैं। इसका संचालन भी सुरक्षा परिषद् ही करती है। चार्टर में कहीं ‘आक्रमण’, ‘शांति भंग’, ‘शांति का संकट’, ‘घरेलू मामला’ आदि वाक्यों को स्पष्ट नहीं किया गया है। यदि एक राष्ट्र की दृष्टि । में कोई आक्रमण होता है तो दूसरे राष्ट्र की दृष्टि में वही ‘घरेलू मामला हो सकता है। इस प्रकार के सभी मामलों के निर्णय के लिए परिषद् के 5 स्थायी सदस्यों के मतों सहित कुल 9 सदस्यों के स्वीकारात्मक मत आवश्यक होते हैं। परन्तु राजनीतिक गुटबन्दी के कारण इस प्रकार का निर्णय लेना कठिन कार्य हो जाता है। यही कारण है कि सुरक्षा परिषद् ऐसे मामलों में तत्क्षण कोई निर्णय नहीं ले पाती है। एक बार यह निश्चित हो जाने पर कि किसी देश के लिए युद्ध जैसी परिस्थितियाँ या किसी देश पर हुआ आक्रमण विश्व शांति के लिए संकट है तो इस स्थिति में सुरक्षा परिषद् तुरंत कार्यवाही कर सकती है। इस प्रकार की कार्यवाही में सैनिक तथा असैनिक दोनों प्रकार की अनुशास्तियाँ निहित हैं। और संघ के सभी सदस्य परिषद् के निर्णय पर अमल करने के लिए, संघ के विधानानुसार बाध्य हैं। जब विवाद में,सशस्त्र संघर्ष उत्पन्न हो जाता है तो संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन के सामने गंभीर चुनौती उत्पन्न हो जाती है। सिद्धांततः चार्टर के अनुच्छेद 7 के अनुसार विवादी पक्षों पर अनुशास्तियाँ स्थापित करने की व्यवस्था है, तथापि संयुक्त राष्ट्र संघ सामान्यतया दमनकारी या प्रतिरोध के उपायों से दूर रहने का प्रयत्न करता है तथा कूटनीतिक, राजनीतिक या वैधानिक उपायों से समस्या को सुलझाने का प्रयास करता है। सशस्त्र संघर्ष को विराम देने के लिए वैसे तो चार्टर में स्पष्टतः युद्ध विराम आदेश के विषय में कुछ नहीं कहा गया है, तथापि अनुच्छेद 40 के बारे में विस्तार से लिखा गया है। अनेक मामलों में विवादी पक्ष युद्ध विराम के लिए तैयार हो जाते हैं। परन्तु इस बात की भी प्रबल सम्भावना रहती है कि विवादी राष्ट्रों द्वारा सुरक्षा के आदेशों या सिफारिशों को ठुकरा दिया जाए। इण्डोनेशिया और डचों, यहूदियों और अरबों, साइप्रस के यूनानियों तथा तुर्को और दो अवसरों पर भारतीयों तथा पाकिस्तानियों के बीच युद्ध रोकने में सुरक्षा परिषद् की युद्ध विराम की आज्ञाएँ प्रभावी मानी गईं। अनुच्छेद 41 के अंतर्गत यह व्यवस्था है कि सुरक्षा परिषद् अपने निर्णयों पर अमल करने के लिए कोई भी कार्यवाही कर सकती है, जिसमें सशस्त्र सेना का प्रयोग न हो। यह संघ-सदस्यों में इस प्रकार की कार्यवाही करने की माँग कर सकती है। इन कार्यवाहियों के अनुसार आर्थिक संबंध पूर्णरूपेण या आंशिक रूप से समाप्त किए जा सकते हैं। समुद्र, वायु, डाक-तार, रेडियो और यातायात के अन्य साधनों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है और कूटनीतिक संबंधों को समाप्त किया जा सकता है। अनुच्छेद 42 में चर्चा की गई है कि शांति तथा सुरक्षा के लिए की जाने वाली कार्यवाहियाँ यदि अपर्याप्त सिद्ध हो गई हों तो जल, थल और वायु सेनाओं द्वारा आवश्यक कार्यवाही की जा सकती है। इस कार्यवाही में विरोध प्रदर्शन माकेबन्दी तथा संघ के सदस्य राष्ट्रों की जल, थल तथा वायु सेनाओं द्वारा की जाने वाली कोई भी कार्यवाही सम्मिलित है। अनुच्छेद 43 के अनुसार परिषद् इस बात को निश्चित करती है कि उपयुक्त कार्यवाही संघ के कुछ सदस्यों द्वारा की जाए या सभी सदस्यों द्वारा। जो कार्य किया जाए वह स्वतन्त्र रूप से हो या प्रत्यक्ष हो या फिर उसे क्रियान्वित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहायता ली जाए। सदस्य राष्ट्रों को यह कर्तव्य है कि वे सुरक्षा परिषद् के माँगने पर तथा विशेष समझौते के अनुसार अपनी सशस्त्र सेनाएँ, सहायता तथा अन्य सुविधा उपलब्ध कराएँगे। संघ की व्यवस्था के अनुसार जिस प्रकार के समझौतों द्वारा यह निश्चिय किया जाना था कि संघ का प्रत्येक सदस्य कितनी सहायता देगा, सेनाओं की उपलब्धता क्या होगी, ये अविलम्ब कार्यवाही करने के लिए कैसे तैयार होंगी तथा प्रत्येक सदस्य किस प्रकार अन्य सुविधाएँ प्रदान करेगा-परन्तु ऐसे समझौते अभी तक हुए नहीं हैं। उस दशा में अनुच्छेद में यह कहा गया है-“जब सुरक्षा परिषद् बल प्रयोग करने का निश्चय कर ले तो किसी ऐसे सदस्य से, जिसे इसमें प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है, सशस्त्र सेनाएँ जुटाने के लिए कहने से पूर्व वह उस देश को, यदि संबंधित देश चाहे तो उसकी सशस्त्र सेनाओं के प्रयोग से संबंधित निर्णयों में भाग लेने को आमंत्रित करेगी।” |
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