

InterviewSolution
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Apathit gadyansh with full answer |
Answer» ans for these que<br>हर मनुष्य की अपनी कुछ कल्पनाएँ होती हैं। कल्पना करने और सपने देखने में फर्क है। कल्पना में उत्सुकता जुड़ने के साथ यदि मनुष्य अपनी इन्द्रियों पर संयम न रखे तो यहीं से प्रलोभन आरम्भ होता है। जीवन में प्रलोभन आया और नैतिक दृष्टि से आप ज़रा भी कमज़ोर हुए तो पतन की पूरी सम्भावना बन जाती है। देखते ही देखते आदमी विलासी, नशा करने वाला, आलसी, भोगी हो जाता है। प्रलोभन इन्द्रियों को खींचते हैं। इनका कोई स्थायी आकार नहीं होता, न ही कोई स्पष्ट स्वरूप होता है। इनके इशारे चलते हैं और इन्द्रियाँ स्वतंत्र होकर दौड़ भाग करने लगती हैं। गुलामी इन्द्रियों को भी पसंद नहीं। वे भी स्वतंत्र होना चाहती हैं। दुनिया में हरेक को स्वतंत्रता पसंद है और उसका अधिकार है, लेकिन जिस दिन इन्द्रियों का स्वतंत्रता दिवस शुरू होता है, उसी दिन से मनुष्य की गुलामी के दिन शुरू हो जाते हैं। इन्द्रियाँ सक्रिय हुई और मनुष्य की चिंतनशील सहप्रवृत्तियाँ विकलांग होने लगती हैं। देखा जाए तो बाहरी संसार की वस्तुओं में आकर्षण नहीं होता, लेकिन जब हमारी कल्पना और उत्सुकता उस वस्तु से जुड़ती हैं, तब उसमें आकर्षण पैदा हो जाता है। विवेक का नियंत्रण ढीला पड़ने लगता है, इन्द्रियों के प्रति हमारी सतर्कता गायब होने लगती है और वे दौड़ पड़ती हैं। इन्द्रियों को रोकने के लिए दबाव न बनाएँ। रुचि से उनका सदुपयोग करें। इसमें सत्संग बहुत काम आता है। सत्संग में मनुष्य की इन्द्रियाँ डायबर्ट होनी शुरू होती हैं। उनके आकर्षण के केन्द्र बदलने लगते हैं। उसमें एक ऐसी सुगंध होती है कि इन्द्रियाँ फिर उसी के आसपास मँडराने लगती हैं और यह हमारी कमज़ोरी की जगह ताकत बन जाती है।\xa0उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। (2)इन्द्रियों के स्वतंत्र होने पर उसका परिणाम क्या होता है?\xa0(2)इन्द्रियों के उपयोग की बात किस रूप में की गई है?\xa0(2)सहप्रवृत्ति से क्या तात्पर्य है?\xa0(2)\'आकर्षण\' और \'स्वतंत्र\' का विलोम शब्द लिखिए। (2)<br>पत्र | |