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बालारुण की मुद् किरणें थीं। अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे। |
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Answer» बाल्यावस्था में सूर्य का गोला धीरे-धीरे पर्वत-शिखरों के बीच उभरकर ऊपर उठता हुआ दिखाई दे रहा था। सूर्य की कोमल सुनहरी किरणों से पर्वत-शिखर सोने की भाँति चमक रहे थे। सूर्योदय हो गया था। सूर्योदय का यह समय चकवा-चकवी पक्षियों के लिए वरदान स्वरूप था। उनके विरह की रात समाप्त हो गई थी। उनका क्रंदन बंद हो गया था। वे रातभर के बिछोह के बाद अब फिर एक-दूसरे मिलकर प्रणय-कलह में लीन थे। |
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