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Answer» काश वो बचपन की,गर्मियों की छुट्टियाँ फिर एकबार आ जाएं काश कि वो बेफिक्र समय फिर एकबार लौट आए वो नानी के घर जाने का इंतज़ार रेल का सफ़र और आँखो में पड़ती कोयले की किरकिरी वो लोटपोट, चंपक और चंदामामा वो सुराही का ठंडा पानी और केरी की लौंजी के साथ नमकीन पूड़ी का खाते जाना ट्रेन के डिब्बे की वो अंताक्षरी वो सब से घुलमिल जाना नानी के घर तक वो ताँगे की सवारी बाट जोहती बूढी नानी की बेकरारी ताश खेल खेल दोपहर थे बिताते पानी छिड़क छत पर ठंडी करते थे रातें वो शमिजो़ं और बनियानों में दौड़ते रहते बर्फ लाने आम चूसकर ठंडाई पीने बैठजाते कतार बनाके पूरा मोहल्ला ही तो बन जाता था घर नानी का कहीं भी खा लेते संकोच नहीं था कहीं जाने का न होमवर्क के प्रोजेक्ट होते थे न कोई नोवल की समरी लिखने का कम्पलशन अल्हड़ छुट्टियाँ होती थी बस होता था हमउम्र भाई बहनों का हुल्लड़ काश मैं ना सही मेरे घर वैसी छुट्टियाँ आ जाए मासूम वक्त फिर एकबार लौट आए।
second STORY
न लौट के आयेंगे वो दिन बचपन वाले, न लौट के आयेंगे वो चेहरे भोले भाले, उन चेहरों में न जाने कितनी सच्चाई थी, न भविष्य की चिंता, न बीते कल की परछाई थी, रोज सुबह स्कूल जाना , आज भी याद आता है, जब बचपन की याद आती है , तो दिल भर सा आता है, दोपहर को स्कूल से जब, घर पे आना होता था, तो दिल में हमारे , ख़ुशी का ठिकाना ना होता था, बस्ता फ़ेंक घर से बाहर , खेलने निकल जाया करते थे, शाम होते होते घर वापस आया करते थे, न लौट के आयेंगे वो खेल अजब निराले, न लौट के आयेंगे वो दिन बचपन वाले। जिंदगी की दौड़ में, बचपन के दोस्त खो गए, अब सोचते हैं हम , न जाने क्यों बड़े हो गए, अब तो बस भविष्य की चिंता, और नौकरी की तलाश है, मगर आज भी दिल के किसी कोने में, बचपन की बारिश की प्यास है, रिश्तों के बंधन ने हमको जकड लिया है, ईर्ष्या द्वेष तनाव ने हमको पकड़ लिया है, न लौट के आयेंगे वो दिन खुशियों वाले , न लौट के आयेंगे वो दिन बचपन वाले.
third story
बचपन मे 1 रु. की पतंग के पीछे २ की.मी. तक भागते थे... न जाने कीतने चोटे लगती थी...
वो पतंग भी हमे बहोत दौड़ाती थी...
आज पता चलता है, दरअसल वो पतंग नहीं थी; एक चेलेंज थी...
खुशीओं को हांसिल करने के लिए दौड़ना पड़ता है... वो दुकानो पे नहीं मिलती...
शायद यही जिंदगी की दौड़ है ...!!!
FORTH story
जब हम अपने शर्ट में हाथ छुपाते थे और लोगों से कहते फिरते थे देखो मैंने अपने हाथ जादू से हाथ गायब कर दिए ! ★ जब हमारे पास चार रंगों से लिखने वाली एक पेन हुआ करती थी और हम सभी के बटन को एक साथ दबाने की कोशिश किया करते थे | ★ जब हम दरवाज़े के पीछे छुपते थे ताकि अगर कोई आये तो उसे डरा सके.. ★ जब आँख बंद कर सोने का नाटक करते थे ताकि कोई हमें गोद में उठा के बिस्तर तक पहुचा दे | ★ सोचा करते थे की ये चाँद हमारी साइकिल के पीछे पीछे क्यों चल रहा हैं | ★ टोर्च On/Off वाले स्विच को बीच में अटकाने की कोशिश किया करते थे | ★ फल के बीज को इस डर से नहीं खाते थे की कहीं हमारे पेट में पेड़ न उग जाए | ★ बर्थडे सिर्फ इसलिए मनाते थे ताकि ढेर सारे गिफ्ट मिले | ★ फ्रिज को धीरे से बंद करके ये जानने की कोशिश करते थे की इसकी लाइट कब बंद होती हैं | ★ सच , बचपन में सोचते हम बड़े क्यों नहीं हो रहे ? और अब सोचते हम बड़े क्यों हो गए ? ★ ये दौलत भी ले लो..ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी.. ★ मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन ...।। वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी..।
fifth story
दुनिया में कोई भी चीज़ अपने आपके लिए नहीं बनी है।
जैसे : दरिया - खुद अपना पानी नहीं पीता।
पेड़ - खुद अपना फल नहीं खाते।
सूरज - अपने लिए हर रात नहीं देता।
फूल - अपनी खुशबु अपने लिए नहीं बिखेरते।
मालूम है क्यों?
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क्योंकि दूसरों के लिए ही जीना ही असली जिंदगी है।
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