1.

बचाकर बीच रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत । अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ में हम बढ़े अभीत ।। सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता का विकास । पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास ।। सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह । दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह ।। धर्म का ले लेकर जो नाम, हुआ करती बलि कर दी बंद । हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद ।।meaning of this poem

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SORRY NAHI AATA gjffyswyvjgihojo



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