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बेरोजगारी के स्वरूप की चर्चा कीजिए ।

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प्रस्तावना : भारत में आयोजन के वर्षों में बेकारी के प्रमाण में क्रमशः वृद्धि होती गयी है । बेकारी के कारण देश में कई सामाजिक, आर्थिक समस्याओं का जन्म हुआ है । भारत सरकार द्वारा इस समस्या को हल करने के अनेक प्रयासों के बावजूद अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो सके हैं । बेकारी की समस्या भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है । भारत में बेकारी अनेक रुपों में दिखाई पड़ती है ।

भारत में बेकारी का अर्थ : “प्रवर्तमान वेतन दर पर काम करने की इच्छा तथा शक्ति होने के बावजूद व्यक्ति को काम न मिले तो वह व्यक्ति बेकार है, ऐसा कहा जाता है ।”

बेकारी के लक्षण : “भारत में दिखाई देनेवाली बेकारी की लाक्षणिकताएँ नीचे दर्शाये अनुसार हैं –

  • व्यक्ति प्रवर्तमान वेतनदर पर काम करने के लिए तैयार होना चाहिए । उदा. बाज़ार में प्रवर्तमान दैनिक वेतन दर 100 रु. हो और व्यक्ति 200 रु. की अपेक्षा रखता हो और रु. 100 पर काम को स्वीकार न करे तो वह बेकार नहीं कहा जा सकता । बेकारी के इस प्रकार को स्वैच्छिक बेकारी कहते हैं । जिसे अर्थशास्त्र की दृष्टि से बेकारी में शामिल नहीं किया गया है ।
  • व्यक्ति प्रवर्तमान वेतन दर पर काम करने के लिए तैयार हो किंतु काम करने के लिए शक्तिमान न हो तो भी वह बेकार नहीं कहा जायेगा ।
  • व्यक्ति प्रवर्तमान वेतन दर पर काम करने के लिए शक्तिमान हो किंतु काम करने की तैयारी न हो तो भी वह व्यक्ति बेकार नहीं कहा जायेगा ।”

भारत में बेकारी का स्वरूप : अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान जैसे विकसित देशों में बेकारी का स्वरूप तथा भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे विकासशील देशों में बेकारी का स्वरूप अलग-अलग है । विकसित देशों में सामान्य रूप से असरकारक मांग के अभाव में काम अवधि की बेकारी अस्तित्व में आती है, जबकि विकासशील देशों में बेकारी का स्वरूप भिन्न है । विकसित देशों में नवीन संशोधनों के कारण किसी वस्तु की मांग घट जाय तो उससे संबंधित अन्य वस्तु की मांग बढ़ जाती है । इस प्रकार जिस वस्तु की मांग घट जाती है उस वस्तु के उत्पादन की इकाई में से श्रम उस उत्पादन इकाई की ओर गति लाते हैं कि जिस इकाई द्वारा उत्पादित वस्तु की मांग बढ़ी होती है । इस प्रकार एक उत्पादन इकाई में से दूसरी उत्पादन इकाई में जाने तक अत्यंत कम अवधि के लिए बेकारी की समस्या उपस्थित होती है ।

भारत जैसे विकासशील देशों में प्रवर्तमान बेकारी लंबी अवधि की तथा ढाँचागत होती है । भारत में एक ओर जनसंख्या वृद्धि का दर ऊँचा होने के कारण रोजगारी मांगनेवालों की संख्या में वृद्धि हुई है तो दूसरी ओर पूँजी की कमी, टेक्निकल तालिम प्राप्त व्यक्ति की कमी, साहसिक नियोजकों की कमी, आधारभूत सुविधाओं का अभाव, अत्यंत पिछड़ा हुआ सामाजिक-आर्थिक ढाँचा, रोजगारी के अवसरों का अभाव इत्यादि के कारण लंबी अवधि की बेकारी देखने को मिलती है । विकसित देशों में उत्पन्न बेकारी का प्रश्न असरकारक मांग के अभाव में उपस्थित होता है, जिसे मांग में वृद्धि के द्वारा दूर किया जा सकता है । जबकि भारत जैसे देशों में बेकारी की समस्या आर्थिक ढाँचे में रही हुई कमी के कारण उपस्थित होता है । अर्थतंत्र के ढाँचे में परिवर्तन करके बेकारी के प्रश्न को हल किया जा सकता है । यह प्रक्रिया अत्यंत लंबी होने के कारण भारत में लंबी अवधि की बेकारी अस्तित्व में है ऐसा कहा जाता है ।

भारत में मौसमी तथा प्रच्छन्न बेकारी का भी अस्तित्व देखने को मिलता है । भारत में मिश्र अर्थतंत्र की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है । इसके बावजूद सार्वजनिक क्षेत्रों को ज्यादा तथा निजी क्षेत्रों को कम महत्त्व दिया गया है । भारत में सार्वजनिक क्षेत्रों की बिनकार्यक्षमता तथा निजी क्षेत्रों की उपेक्षा होने के कारण औद्योगिक विकास मंद रहा है । परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र पर रोजगारी का बोझ बढ़ जाने के कारण कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेकारी की समस्या उपस्थित हुई है । भारत में कृषि वर्षा पर आधारित होती है । भारत में वर्षा अनियमित तथा अपर्याप्त होती है, जिसके कारण कृषि क्षेत्र में मौसमी बेकारी की समस्या उपस्थित हई है । भारत में शिक्षित बेकारों की संख्या भी खूब अधिक है । शिक्षित बेकारी की समस्या सामान्य रूप से शहरी विस्तारों में तथा मौसमी एवं प्रच्छन्न बेकारी की समस्या ग्रामीण विस्तारों में देखने को मिलती है । भारत में बेकारी की समस्या को समझने के लिए मुख्य चार मापदंड निम्नानुसार दर्शाये गये हैं :

  1. समय का मापदंड : जिस व्यक्ति के पास काम करने की शक्ति तथा वृत्ति दोनों हो किंतु सप्ताह में 24 घंटे से कम समय तक ही उसे रोजगारी प्राप्त हो तो वह समय की दृष्टि से बेकार है, ऐसा कहा जायेगा ।
  2. आय का मापदंड : व्यक्ति को काम में से इतनी कम आय प्राप्त हो कि जिससे वह अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को भी संतुष्ट न कर सके तो वह आय की दृष्टि से बेकार है, ऐसा कहा जायेगा ।
  3. सहमति का मापदंड : व्यक्ति को अपनी सहमति के अनुसार काम न मिले तो वह सहमति की दष्टि से बेकार है, ऐसा कहा जायेगा । बेकारी के इस स्वरूप को अर्ध बेकारी भी कहते हैं ।
  4. उत्पादकता का मापदंड : किसी भी व्यक्ति को प्रवर्तमान रोजगारी में से दूर करने के बावजूद कुल उत्पादन में कोई परिवर्तन न हो तो इसे उत्पादकता की दृष्टि से बेकारी कहते हैं । बेकारी के इस स्वरूप को प्रच्छन्न बेकारी भी कहते हैं ।

विकसित देशों में बेकारी मुख्य रुप से चक्रीय बेकारी एवं घर्षणयुक्त बेकारी देखने को मिलती है । चक्रीय बेकारी अर्थात तेजी – मंदी के समय में अल्पकालीन समय के लिए अस्थायी रूप से जो बेकारी सर्जित होती है उसे चक्रीय बेकारी कहते है । पुरानी टेक्नोलॉजी के स्थान पर नई टेक्नोलॉजी का उपयोग करने से अस्थायी रूप से अल्पकालीन समय में जो बेकारी सर्जित होती है उसे घर्षणजन्य बेकारी कहते हैं ।



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