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भारत का संघात्मक स्वरूप अन्य संघों से किस प्रकार भिन्न है?

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विश्व के अनेक राज्यों में संघात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया गया है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उपरान्त भारत में भी संघात्मक शासन व्यवस्था की नींव डाली गई। हमने अपनी संघात्मक व्यवस्था को अमेरिका से न लेकर कनाडा से ग्रहण किया है। हमने संघ के लिए यूनियन शब्द का प्रयोग किया है। भारत के संघ को विद्वानों ने कमजोर संघ अथवा अर्द्ध-संघ के नाम से सम्बोधित किया है। भारत के संघ में संघात्मक सरकार के सभी लक्षणों का समावेश किया गया है परन्तु फिर भी भारत का संघात्मक स्वरूप अन्य संघों से अनेक प्रकार से भिन्न है। जैसे

(1) भारतीय संविधान में कहीं पर भी संघात्मक शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, इसमें केवल यह कहा गया है कि भारत राज्यों का संघ है।
(2) दूसरे संघों में केन्द्र की तुलना में राज्यों को अधिक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं परन्तु भारत में राज्यों की तुलना में केन्द्र को अधिक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। संघ की सूची में वर्णित विषयों की संख्या 97 है जबकि राज्यों को मात्र 62 विषय प्रदान किए गए हैं। समवर्ती सूची में 52 विषयों को सम्मिलित किया गया है। समवर्ती सूची पर केन्द्र तथा राज्यों (दोनों) को कानून-निर्माण करने की शक्ति प्रदान की गई है परन्तु यदि इन दोनों के निर्मित कानूनों में। टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो केन्द्र के कानून को मान्यता प्राप्त होती है।
(3) आपातकालीन स्थिति में भारतीय संघीय व्यवस्था एकात्मक में परिवर्तित हो जाती है।
(4) हमारे संघ का निर्माण इस प्रकार से नहीं हुआ है, जैसे अमेरिका के संघ का निर्माण हुआ था। हमने भारत के विभिन्न राज्यों का समय-समय पर विभाजन करके नए-नए राज्यों का निर्माण किया है जबकि अन्य संघात्मक राज्यों में स्वतन्त्र तथा सम्प्रभु राज्य सम्मिलित हुए थे।
(5) केन्द्रीय विधायिका (संसद) किसी भी राज्य की सीमा में परिवर्तन कर सकती है, यहाँ तक कि वह किसी भी राज्य को समाप्त करके नए राज्य का निर्माण कर सकती है जबकि अन्य संघात्मक राज्यों में इस स्थिति को नहीं अपनाया गया है।



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