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भारत के औद्योगिक विकास पर एक निबन्ध लिखिए।

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पंचवर्षीय योजनाओं में औद्योगिक विकास
Industrial Development in Five Year Plans

स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने देश के औद्योगीकरण के लिए ठोस कदम उठाये। 6 अप्रैल, 1948 ई० को औद्योगिक नीति प्रस्तावित की गयी जिसको उद्देश्य “देशवासियों को शिक्षा एवं सार्वजनिक सुविधाएँ विकसित करके देश के प्राकृतिक संसाधनों का विकास एवं देशवासियों का जीवन-स्तर ऊँचा उठाना था।

पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान उद्योगों का विकास निम्नलिखित प्रकार से हुआ –

प्रथम एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं में उद्योग – प्रथम योजना कृषि-प्रधान थी। द्वितीय योजना में देश में समाजवादी अर्थव्यवस्था विकसित करने के लिए उद्योगों पर विशेष बल दिया गया। लोहा-इस्पात, भारी रसायन, उर्वरक, इंजीनियरिंग तथा मशीन निर्माण उद्योगों की स्थापना पर विशेष ध्यान दिया गया। परिणामतः वर्ष 1960-61 में औद्योगिक सूचकांक (वर्ष 1950-51 में = 100) बढ़कर 194 हो गया। अनेक औद्योगिक नगर स्थापित हुए।

तृतीय एवं वार्षिक योजनाओं में उद्योग – तृतीय योजना में कृषि तथा उद्योग के मध्य सन्तुलन लाने का प्रयास किया गया; अतः उद्योगों के क्षेत्र में धीमी प्रगति हुई जो वार्षिक योजनाओं के दौरान स्थिरप्रायः हो गयी। धीमी औद्योगिक प्रगति के अनेक कारण थे-भारत-पाकिस्तान युद्ध, वर्ष 1965-67′ के अकाल, विदेशी सहायता बन्द होना आदि। केवल ऐलुमिनियम, मोटर-वाहन, विद्युत ट्रांसफार्मर, सूती वस्त्र, मशीन उपकरण, चीनी, जूट तथा पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन लक्ष्य ही पूरे किये जा सके। इस्पात, उर्वरक तथा औद्योगिक रसायनों के उत्पादन में बहुत गिरावट आयी।
चौथी योजना में उद्योग – इस अवधि में औद्योगिक उत्पादन तथा पूँजी निवेश दोनों ही कम रहे। लौह धातु, पेट्रोलियम तथा पेट्रो-रसायन उद्योगों में तो पूँजी निवेश सन्तोषजनक रहा, किन्तु इस्पात, अलौह धातुओं, उर्वरक, चीनी तथा कोयले में कमी रही। औद्योगिक इकाइयों में क्षमता के अनुरूप उत्पादन नहीं हो सका, किन्तु मिश्र धातुओं, ऐलुमिनियम, टायर, पेट्रोल शोधन, इलेक्ट्रॉनिक्स; मशीनी उपकरण, ट्रैक्टर, विद्युत उपकरण सम्बन्धी उद्योगों की प्रगति सन्तोषजनक रही।
पाँचवीं योजना में उद्योग – पाँचवीं योजना में आधारभूत उपभोक्ता तथा निर्यात सम्बन्धी उद्योगों को विशेष महत्त्व दिया गया। खाद्यान्नों, उर्वरकों तथा पेट्रोलियम के मूल्यों में तीव्र वृद्धि के कारण उद्योगों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा। औद्योगिक योजनाओं में तदनुसार संशोधन करना पड़ा। सार्वजनिक क्षेत्र में । 39,303 करोड़ में से हैं 10,201 करोड़ (लगभग 26%) खनिज व उद्योगों के लिए प्रावधान किया गया।

छठी योजना में उद्योग – इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्र के कुल १ 97,500 करोड़ में से है 20,407 करोड़ (लगभग 21%) का प्रावधान बड़े उद्योगों कोयला, पेट्रोलियम तथा खनिजों के लिए किया गया। छठी योजना में उत्पादक इकाइयों का पूर्ण क्षमता उपभोग, उपभोक्ता, पूँजीगत व अन्य पदार्थों के उत्पादन की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया। ऐलुमिनियम, जिंक, सीसा, थर्मोप्लास्टिक, पेट्रो-रसायन, विद्युत उपकरण, मोटर वाहन, उपभोक्ता पदार्थों के उत्पादन लक्ष्य प्राप्त हुए किन्तु कोयला, इस्पात, अलौह धातुओं, सीमेण्ट, टेक्सटाइल, जूट, व्यापारिक वाहन, रेल वैगन, चीनी आदि का उत्पादन लक्ष्य से कम रहा। छठी योजना की निम्नलिखित प्राविधिक उपलब्धियाँ उल्लेखनीय हैं-500 मेगावाट शक्ति उत्पादन की इकाई का आरम्भ, 500 मेगावाट टब-जेनरेटर तथा बॉयलर का उत्पादन, 800 cc वाली (कम पेट्रोल खपत वाली) मारुति कार, 1,350 टने प्रतिदिन क्षमता का उर्वरक प्लाण्ट आदि। इस्पात, इलेक्ट्रॉनिक आदि के क्षेत्र में भी विशेष उपलब्धियाँ प्राप्त की गयीं।

सातवीं योजना में उद्योग – इस अवधि में सार्वजनिक क्षेत्र के कुल १ 1,80,000 करोड़ में से 30%

ऊर्जा पर, 11% बड़े व मध्यम उद्योगों पर तथा 1.5% छोटे व घरेलू उद्योगों पर व्यय करने का प्रावधान किया गया। इस योजना में समेकित विकास द्वारा उपभोक्ता उद्योगों, प्राविधिक सुधार, इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों के विकास द्वारा निर्यात में वृद्धि तथा रोजगार के पर्याप्त अवसर विकसित करने के उद्देश्य निर्धारित किये गये। सातवीं योजना में औद्योगिक क्षेत्र में 8.7% वार्षिक वृद्धि की दर निश्चित की गयी।

आठवीं योजना में उद्योग – इस अवधि में सभी क्षेत्र के उद्योगों में सुधार हुआ। विनिर्माण के 17 क्षेत्रों में उच्च वृद्धि दर्ज की गयी। 5.7% की वार्षिक वृद्धि दर निर्धारित की गयी।
नौवीं योजना में उद्योग – इस योजना में उद्योगों तथा खनिजों के लिए है 69,972 करोड़ का प्रावधान किया गया जो कुल आयोजना व्यय का 8% से अधिक था। उद्योगों में उदारीकरण तथा वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया गया तथा विदेशी पूँजी विनिवेश को उदार बनाया गया। कम्प्यूटर, सॉफ्टवेयर, इलेक्ट्रॉनिक, संचार, परिवहन उपस्कर आदि उद्योगों को अधिक प्रोत्साहन दिया गया। मोटर वाहन उद्योग में विशेष रूप से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारत में उद्योग स्थापित करने का अवसर दिया गया।

दसवीं योजना में उद्योग – इस योजना में ग्रामीण तथा लघु उद्योगों में नीतिगत सुधार तथा लघु उद्योग को चरणबद्ध रूप में आरक्षण देना, बिजली-कोयला तथा संचार विधेयकों को लागू कराना, सूचना प्रौद्योगिकी का विकास आदि प्राथमिकताएँ निर्धारित की गयी हैं।
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में उद्योग – इस योजना में निर्माण के सिलसिले में योजना आयोग ने संवृद्धि में सभी राज्यों तथा समाज के सभी वर्गों को उचित भागीदारी देने की बात कही है तथा Inclusive growth की अवधारणा सामने रखी है। इसी सन्दर्भ में सबकी पहुँच बुनियादी सेवाओं तक बनाने पर जोर दिया गया है। सबको शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ पेयजल आदि प्राप्त होना चाहिए। इसके अतिरिक्त

अन्य चुनौतियाँ भी निर्धारित की गयी हैं; जो निम्नलिखित हैं –

⦁    कृषि क्षेत्र के विकास में गत्यात्मकता लाना
⦁    विनिर्माण के क्षेत्र को प्रतिस्पर्धात्मक बनाना
⦁    मानव संसाधनों को विकसित करना
⦁    पर्यावरण की सुरक्षा आदि।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना में उद्योग – भारत की 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के निर्माण की दिशा का मार्ग अक्टूबर, 2011 में उस समय प्रशस्त हो गया जब इस योजना के दृष्टि पत्र (दृष्टिकोण पत्र/दिशा पत्र/Approach Paper ) को राष्ट्रीय विकास परिषद् (NDC) ने स्वीकृति प्रदान कर दी। 1 अप्रैल, 2012 से प्रारम्भ हो चुकी इस पंचवर्षीय योजना के दृष्टि पत्र को योजना आयोग की 20 अगस्त, 2011 की बैठक में स्वीकार कर लिया गया था तथा केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् ने इसका अनुमोदन 15 सितम्बर, 2011 की अपनी बैठक में किया था। तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय विकास परिषद् की नई दिल्ली में 22 अक्टूबर, 2011 को सम्पन्न हुई इस 56वीं बैठक में दिशा पत्र को कुछेक शर्तों के साथ स्वीकार किया गया। राज्यों द्वारा सुझाए गए कुछ संशोधनों का समायोजन योजना दस्तावेज तैयार करते समय योजना आयोग द्वारा किया जायेगा। 12वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 9 प्रतिशत है।

इस लक्ष्य को प्राप्त करने में राज्यों के सहयोग की अपेक्षा तत्कालीन प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने की है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कृषि, उद्योग व सेवाओं के क्षेत्र में क्रमश: 4.0 प्रतिशत, 9.6 प्रतिशत व 10.0 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि प्राप्त करने के लक्ष्य तय किये गये हैं। इनके लिए निवेश दर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की 38.7 प्रतिशत प्राप्त करनी होगी। बचत की दर जीडीपी के 36.2 प्रतिशत प्राप्त करने का लक्ष्य दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है। समाप्त हुई 11वीं पंचवर्षीय योजना में निवेश की दर 36.4 प्रतिशत तथा बचत की दर 34.0 प्रतिशत रहने का अनुमान था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) में औसत वार्षिक वृद्धि लगभग 6.0 प्रतिशत अनुमानित था, जो 12वीं पंचवर्षीय योजना में 4.5-5.0 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य है। योजनावधि में केन्द्र सरकार का औसत वार्षिक राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.25 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य इस योजना के दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है।



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