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भारत के सूती वस्त्र उद्योग की विवेचना निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –(i) स्थानीयकरण के कारक, (ii) उद्योग के क्षेत्र, (iii) कोई दो समस्याएँ। याभारत में सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण का विवरण दीजिए।याभारत में सूती वस्त्रोद्योग के स्थानीयकरण के कारक बताइए तथा इस उद्योग के दो प्रमुख केन्द्रों का उल्लेख कीजिए।याभारत में सूती वस्त्र उद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –(अ) स्थानीयकरण के कारक, (ब) प्रमुख केन्द्र। 

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भारत में सूती वस्त्र उद्योग का विकास
Development of Cotton Textile Industry in India

सूती वस्त्र उद्योग भारत का एक प्राचीन उद्योग है। यह एक ऐसा उद्योग है जिसने लगभग सौ वर्ष पूर्व भारत में औद्योगीकरण का आधार प्रस्तुत किया था। देश का यह सबसे बड़ा उद्योग है। सन् 1854 में प्रथम भारतीय सूती वस्त्र कारखाना मुम्बई में स्थापित किया गया तथा भारतीय वस्त्र उद्योग प्रारम्भ हुआ। सन् 1900 तक भारत में 193 मिलें खुल चुकी थीं। सन् 1945 में 417 मिलें हो गयी थीं जिनमें 10.2 करोड़ तकुएँ तथा2 लाख करघे कार्य कर रहे थे। सन् 1947 में विभाजन के फलस्वरूप देश के 15 कारखाने तथा 73% कपास उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान में चले जाने के कारण 402 मिलें ही भारत में रह गयी थीं।

सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के कारक
Factors of Localization of Cotton Textile Industry

सूती वस्त्र उद्योग के लिए कपास एक शुद्ध कच्चा माल है जो निर्माण प्रक्रिया में अपना अस्तित्व नहीं खोता। इसी कारण सूती वस्त्र उद्योग का स्थापन केवल कच्चे माल के क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा। इसका स्थापन उन क्षेत्रों में भी हो गया है जहाँ पर इस उद्योग के लिए अन्य सुविधाएँ; जैसे—बाजार, श्रमिक, शक्ति-संसाधन, रासायनिक पदार्थ आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसी कारण यह उद्योग बाजार की समीपता से प्रभावित होता है न कि कच्चे माल की निकटता से। भारत में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना में निम्नलिखित कारक उत्तरदायी रहे हैं –

(1) कपास के रूप में शुद्ध कच्चे माल की स्थानीय प्राप्ति – सूती वस्त्र उद्योग के लिए कच्चे माल के रूप में पर्याप्त मात्रा में कपास की आवश्यकता होती है। यह कच्चा माल इस उद्योग को आसानी से उपलब्ध हो जाता है। प्रायद्वीपीय पठार की लावा निर्मित काली मिट्टी के क्षेत्र में देश का सर्वाधिक कपास उत्पादन किया जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात तथा पंजाब राज्य मिलकर देश के कुल उत्पादन का 55% से भी अधिक कपास का उत्पादन करते हैं। कपास के अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पादक राज्य हैं-आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, कर्नाटक आदि। तमिलनाडु राज्य में कपास के आर्थिक उत्पादन तथा पायकारा परियोजना से सस्ती जल-विद्युत की उपलब्धता के कारण देश की संर्वाधिक (439) मिलों की स्थापना की गयी है, जिनमें से अधिकांश केवल सूत का ही निर्माण करती हैं। इसके अतिरिक्त उत्तम रेशे की कपास मिस्र, सूडान एवं संयुक्त राज्य अमेरिका से भी आसानी से उपलब्ध हो जाती है।

(2) आर्द्र जलवायु का होना।
(3) पर्याप्त संख्या में सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की प्राप्ति।
(4) कपास उत्पादक क्षेत्रों का देश के अन्य भागों से तीव्रगामी परिवहन साधनों द्वारा जुड़ा होना।
(5) शक्ति-संसाधनों के रूप में जल-विद्युत शक्ति का पर्याप्त विकास तथा कोयले की उपलब्धि।
(6) सघन जनसंख्या के कारण पर्याप्त खपत तथा विदेशों में भी भारी माँग।
(7) उद्योग के लिए रासायनिक पदार्थों की सुलभता।
(8) सरकारी संरक्षण एवं अनुदानों की उपलब्धि।
(9) विदेशी सूती वस्त्रों पर भारी आयात कर का लगाया जाना।
(10) विदेशों से मिलों के लिए मशीनों एवं उपकरणों का आयात।
(11) निर्यात व्यापार से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति।
इस प्रकार यह उद्योग कच्चे माल के उत्पादन क्षेत्रों में ही सीमित न रह सका, बल्कि बाजार एवं शक्ति जैसी सुविधाओं ने वस्त्र उद्योग के कारखानों को अपनी ओर आकर्षित किया है। दिल्ली, कानपुर व कोलकाता जैसे महानगरों में यह उद्योग इन्हीं कारणों से पनपा है। देश में सूती वस्त्रों की अधिक माँग होने के कारण सघन जनसंख्या ने यह उद्योग गंगा के मैदान में भी आकर्षित किया है, जबकि यहाँ पर कच्चे माल का उत्पादन नगण्य ही है। कपास के व्यापार ने ही मुम्बई के सूती वस्त्र उद्योग को विकसित करने में सुविधा प्रदान की है।

भारत में सूती वस्त्रों का उत्पादन एवं वितरण
Production and Distribution of Cotton Textile in India

सूती वस्त्र उद्योग भारत का एक विकेन्द्रीकृत उद्योग है। महाराष्ट्र एवं गुजरात राज्य सूती वस्त्र उद्योग में अग्रणी हैं। देश में सूती वस्त्र उत्पादक राज्यों का विवरण निम्नलिखित है –

(1) गुजरात – गुजरात भारत में प्रथम बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक राज्य है, जहाँ सूती वस्त्रों की 120 मिलें हैं। इस राज्य द्वारा देश के एक-तिहाई सूती वस्त्रों का उत्पादन किया जा रहा है। अहमदाबाद सूती वस्त्र उद्योग की राजधानी है, जहाँ पर 72 मिलें केन्द्रित हैं। इसे ‘भारत का मानचेस्टर’ कहा जाता है। राजकोट, मोरवी, बीरमगाँव, कलोल, नवसारी, भावनगर, अंजार सिद्धपुर, नाडियाड, सूरत, भड़ौंच, पोरबन्दर एवं बड़ोदरा अन्य प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।

(2) महाराष्ट्र – इस राज्य का सूती वस्त्र उत्पादन में दूसरा स्थान है, जहाँ 112 मिलों में वस्त्रों का उत्पादन किया जाता है। देश के एक-चौथाई सूती वस्त्र इसी राज्य में तैयार किये जाते हैं। अकेले मुम्बई महानगर में ही सूती वस्त्र की 62 मिले हैं। इसी कारण इसे ‘सूती वस्त्रों की राजधानी’ कहा जाता है। महाराष्ट्र राज्य के इस उद्योग में 3 लाख से अधिक श्रमिक कार्य करते हैं। बरसी, अकोला, अमरावती, वर्धा, शोलापुर, पुणे, ठाणे, हुबली, सतारा, कोल्हापुर, जलगाँव, सांगली, बिलमोरिया, नागपुर, आलमेनेर इस उद्योग के अन्य प्रधान केन्द्र हैं। यहाँ पर लट्ठा, मलमल, वॉयले, छींट, चद्दर, सूटिंग एवं शर्लिंग, धोतियाँ आदि अनेक प्रकार के रंगीन कपड़ों का निर्माण किया जाता है।

(3) पश्चिम बंगाल – पश्चिम बंगाल राज्य का देश के सूती वस्त्र उत्पादन में तीसरा स्थान है। इस राज्य में बाजार की सुविधा (जनाधिक्य) ने इस उद्योग को आकर्षित किया है। यहाँ सूती वस्त्र की 45 मिले हैं। यहाँ पर कुछ प्रमुख अनुकूल भौगोलिक सुविधाएँ पायी जाती हैं; जैसे-शक्ति संसाधनों के रूप में रानीगंज एवं झरिया की खानों से कोयला; कोलकाता पत्तन की निकटता से मशीनें मँगाने की सुविधा, पूँजी एवं अन्य व्यापारिक सुविधाएँ, सघन जनसंख्या के कारण उपभोक्ता बाजार की सुविधा, वस्त्र उद्योग के अनुकूल जलवायु आदि, परन्तु कपास देश के अन्य भागों से आयात की जाती है। श्यामनगर, पानीहाटी, कोलकाता, सिरामपुर, मौरीग्राम, शिवपुर, पाल्टा, फूलेश्वर, लिलुआ, रिशरा, बेलघरिया, घुसरी प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।

(4) उत्तर प्रदेश – सूती वस्त्र के उत्पादन की दृष्टि से इस राज्य का चौथा स्थान है। सम्पूर्ण प्रदेश में मिलों की संख्या 41 है। कानपुर इस उद्योग का प्रमुख केन्द्र है जहाँ सूती वस्त्र की 14 मिलें हैं तथा यह उत्तरी भारत को मानचेस्टर’ कहलाता है। यहाँ गंगा घाटी में छोटे रेशे वाली कपास उगायी जाती है; अत: मोटा कपड़ा ही अधिक बनाया जाता है। मुरादाबाद, वाराणसी, आगरा, बरेली, अलीगढ़, मोदीनगर, हाथरस, सहारनपुर, रामपुर, इटावा, लखनऊ आदि अन्य प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं। उत्तर प्रदेश में बाजार एवं यातायात की सुविधाओं के कारण इस उद्योग का विकास हुआ है।

(5) तमिलनाडु – भारत में सूती वस्त्र की मिलें तमिलनाडु राज्य में सबसे अधिक मिलती हैं। जिनकी संख्या 215 है, परन्तु उत्पादन की दृष्टि से इस राज्य का देश में पाँचवाँ स्थान है। यहाँ सूती वस्त्र उद्योग का विकास पायकारा जल-विद्युत परियोजना से सस्ती जलशक्ति की प्राप्ति, कपास का स्थानीय उत्पादन, पर्याप्त श्रमिक तथा उपभोक्ता सुविधाओं के कारण हुआ है। कोयम्बटूर इस राज्य की वस्त्र राजधानी है, जहाँ 105 सूती वस्त्र की मिले हैं। अन्य प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र मदुराई, सलेम, चेन्नई, पेराम्बूर, तिरुचिरापल्ली, रामनाथपुरम्, तूतीकोरिन, तंजौर, काकीनाडा एवं तिरुनेलवेली हैं।

(6) मध्य प्रदेश – मध्य प्रदेश राज्य में वर्धा एवं पूर्णा नदियों की घाटियों में पर्याप्त मात्रा में कपास का उत्पादन किया जाता है। आदिवासी जनसंख्या की अधिकता के कारण श्रमिक पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हो जाते हैं। रामकोला एवं तातापानी की खानों से कोयले की प्राप्ति तथा चम्बल परियोजना से सस्ती जलविद्युत शक्ति की प्राप्ति होती है। रतलाम, इन्दौर, ग्वालियर, देवास, निमाड़, सतना, भोपाल, उज्जैन, बुरहानपुर, अचलपुर एवं जबलपुर प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं। यहाँ पर सूती वस्त्रों की 24 मिलें हैं।

(7) अन्य राज्य – आन्ध्र प्रदेश में 21, कर्नाटक में 32, केरल में 26, राजस्थान में 19, पंजाब में 9, ओडिशा में 5, बिहार में 6, दिल्ली में 4, असोम में 2 तथा गोआ में 1 सूती वस्त्र की मिलें हैं।
निर्यात व्यापार – भारत से सूती कपड़े का निर्यात मुख्यतः अदन, म्यांमार, सूडान, कीनिया, तंजानिया, ऑस्ट्रेलिया, इण्डोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, सिंगापुर, इराक, ईरान, सीरिया, थाईलैण्ड, अरब देश, रूस, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, नेपाल, नाइजीरिया, बांग्लादेश आदि देशों को किया जाता है। देश के कुल निर्यात का 90 से 92 प्रतिशत कपड़ा मोटा एवं मध्यम श्रेणी का होता है जिसे आयातक देश पुनर्निर्यात के लिए मॅगाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका व रूस भारतीय सूती वस्त्र के प्रमुख ग्राहक हैं।

सूती वस्त्रोद्योग की समस्याएँ – सूती वस्त्रोद्योग की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

⦁    भारत में उत्तम किस्म की लम्बे और मुलायम रेशे वाली कपास का अभाव है। अधिकतर राज्यों में घटिया किस्म की कपास ही उगायी जाती है, जिससे उत्पादन भी घटिया ही होता है।
⦁    उत्पादन प्रक्रिया में आज भी अधिकांश कारखानों में उत्पादन प्रक्रिया में परम्परागत तकनीकी का ही प्रयोग हो रहा है जिससे उत्पादित माल को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है।
⦁    भारतीय सूती मिलों की मशीनें पुरानी व निम्न स्तर की हैं जो आये दिन खराब होती रहती हैं, जिससे उत्पादन कम होता है।
⦁    भारतीय सूती वस्त्र महँगा और घटिया होने के कारण विदेशी वस्त्रों की टक्कर में नहीं टिक पाता है।
⦁    भारतीय मिलों में काम करने वाले मजदूरों को उचित पारिश्रमिक नहीं दिया जाता, जिससे वे अपनी माँगों को लेकर हड़ताल कर देते हैं और उत्पादन कई दिनों तक बन्द रहता है।



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