InterviewSolution
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भारत की थारू प्रजाति के निवासस्थान, अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक जीवन का विवरण लिखिए। |
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Answer» सामान्य परिचय – उत्तर प्रदेश व बिहार में नेपाल की सीमा से संलग्न 25 किमी चौड़ी व 600 किमी लम्बी तराई व भाबर की सँकरी पट्टी में थारू जनजाति निवास करती है। इस क्षेत्र में नैनीताल जिले के किच्छा, खटिमा, रामपुरा, सितारगंज, नानक-भट्टा, बनवासा आदि क्षेत्र, पीलीभीत व खीरी जिलों से लेकर बिहार में मोतीहारी जिले तक के क्षेत्र सम्मिलित हैं। ‘थारू’ शब्द की उत्पत्ति काफी विवादास्पद है। कुछ विद्वानों के अनुसार, ये पहले ‘अथरु कहलाते थे, बाद में थारू कहलाये। थारू’ का अर्थ है ‘ठहरे हुए’–कठिन भौगोलिक वातावरण के बावजूद ये सदियों से इस क्षेत्र में विद्यमान हैं, कदाचित इसलिए थारू कहलाते हैं। एक अन्य मतानुसार, ‘थारू’ नामक मदिरा का सेवन करने तथा ‘थारू’ नामक अपहरण विवाह प्रथा अपनाने के कारण भी इन्हें ‘थारू’ कहा जाता है। इनके शारीरिक लक्षण मंगोलॉयड प्रजाति से मिलते हैं। तिरछे नेत्र, उभरी गालों की हड्डियाँ, पीली त्वचा, शरीर वे चेहरे पर कम बाल, सीधे सपाट केश, मध्यम नाक व कद इनके प्रमुख लक्षण हैं। वास्तव में इनमें मंगोलॉयड व अन्य प्रजातियों का मिश्रण हो गया है। जलवायु – सामान्यतः इस क्षेत्र की जलवायु तथा प्राकृतिक वातावरण अस्वास्थ्यकर हैं, किन्तु स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् वनों को साफ कर कृषि-फार्म बना लिये गये। दलदलों को सुखाकर कृषि योग्य बनाया गया। मलेरिया उन्मूलन के भी प्रयास किये गये। वनों पर आधारित लघु उद्योगों की भी स्थापना की गयी। अव्यदध – थारु लोग स्थायी कृषक हैं। यहाँ भूमि अपरदन की बहुत समस्या है, तथापि विभिन्न उपायों द्वारा थारूः लोग चावल, मक्का, गेहूँ, चना, दालें, आलू, प्याज, शाक-सब्जियाँ आदि उगाते हैं। कृषि-कार्य में स्त्रियाँ भी सक्रिय योग देती हैं। सामाजिक व्यवस्था – थारुओं में स्त्रियों की प्रतिष्ठा पुरुषों से अधिक है तथा वे पर्याप्त स्वतन्त्र हैं। स्त्रियाँ अपने को रानी तथा पुरुषों को सेवक या सिपाही समझती हैं। विवाह तय करते समय लड़के एवं लड़की की सहमति आवश्यक होती है। विवाह-संस्कार चार चरणों में सम्पन्न होता है, जो क्रमश: अपना-पराया, बटकाही, भाँवर तथा चाल हैं। थारुओं में विवाह पूर्व यौन स्वच्छन्दता पायी जाती है। पत्नी के विनिमय तथा तलाक प्रथा का प्रचलन है। धार्मिक दृष्टिकोण से थारू हिन्दुओं के अधिक निकट हैं। ये स्वयं को सूर्यवंशी राजपूतों के वंशज समझते हैं तथा सीता एवं राम की आदरपूर्वक पूजा करते हैं। ये जादू-टोनों में विश्वास करते हैं। इसी कारण इनमें व्यवस्थित धर्म नहीं मिलता। इनमें पशुओं की बलि देने की प्रथा भी पायी जाती है। |
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