InterviewSolution
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भारत में बेरोजगारी के उत्पन्न होनेवाले कारणों की चर्चा कीजिए । |
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Answer» श्रमपूर्ति और श्रम की माँग के बीच असंतुलन बेरोजगारी का कारण है । अर्थात् श्रम की माँग की अपेक्षा पूर्ति अधिक हो तब बेरोजगारी सर्जित होती है । भारत में बेरोजगारी के निम्नलिखित कारण हैं : (1) जनसंख्या वृद्धि का ऊँचा दर : भारत में जनसंख्या वृद्धिदर ऊँची होने से श्रमपूर्ति में वृद्धि होती है । परंतु उतने प्रमाण में रोजगार के अवसर धीमी गति से बढ़ते हैं परिणाम स्वरूप बेरोजगारी और अर्धबेरोजगारी की समस्या बढ़ती है । एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 1.70 करोड़ जनसंख्या बढ़ती है जो ऑस्ट्रेलिया के बराबर है । इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि का ऊँचा दर बेरोजगारी का एक कारण है । (2) रोजगारी के धीमे अवसर : रोजगारी वृद्धि का आर्थिक विकास के साथ गहरा सम्बन्ध है । परंतु आयोजन काल दरम्यान आर्थिक विकास दर बढ़ने पर भी रोजगारी के अवसर पर्याप्त मात्रा में सर्जित नहीं हुये हैं । इस प्रकार भारत का ‘आर्थिक विकास रोजगारी बिना का विकास रहा है ।’ भारत में आयोजन के तीन दशकों में आर्थिक विकास औसत 3.5% की दर से बढ़ा है । 10वीं एवं 11वीं पंचवर्षीय योजना में आर्थिक विकास की औसत वृद्धिदर 7.6% और 7.8% रही परंतु रोजगार के अवसर धीमे रहे है । जिससे बेरोजगारी की समस्या तीव्र बनी है । (3) बचत और पूंजीनिवेश की नीची दर : भारत में आयोजनकाल के दरम्यान राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुयी है । परंतु जनसंख्या वृद्धिदर भी ऊँची रही है । परिणाम स्वरूप प्रतिव्यक्ति आय में धीमी गति से वृद्धि हयी है । नीची प्रतिव्यक्ति आय और बोझरूप जनसंख्या के पीछे निभाव खर्च अधिक होने से बचत कम होती है । तथा पूँजीनिवेश भी कम होता है । जिससे उद्योग क्षेत्र और कृषि क्षेत्र या अन्य क्षेत्र में पर्याप्त प्रमाण में रोजगार के अवसर सर्जित नहीं होते हैं । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । (4) पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति : भारत में पूँजी की कमी और श्रम खूब है । इस परिस्थिति में बेरोजगारी की समस्या को हल करने में श्रमप्रधान उत्पादन पद्धति अधिक अनुकूल है । परंतु में दूसरी पंचवर्षीय योजना से बड़े और आधारभूत उद्योगों के विकास की नीति अपनायी है । जिनमें पूँजीप्रधान उत्पादन पद्धति का अधिक उपयोग किया जाता है । परिणाम स्वरूप रोजगार के अवसर कम सर्जित होते हैं । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । (5) व्यावसायिक शिक्षा का नीचा प्रभाव : भारत में शिक्षित बेरोजगारी का एक महत्त्वपूर्ण कारण क्षतियुक्त शिक्षण पद्धति है । देश में प्रत्येक क्षेत्र में बदलती हुयी कार्य पद्धति के अनुरूप काम कर सके ऐसे श्रमिक तैयार करने में वर्तमान शिक्षा प्रणाली सफल नहीं हुयी है । आर्थिक विकास बढ़ाने के लिए उद्योग, क्षेत्र, कृषि क्षेत्र तथा अन्य क्षेत्रों में नयी टेक्नोलोजी का उपयोग किया जा रहा है । परंतु उसीके अनुरूप व्यावसायिक शिक्षा न होने से अनुकूल श्रम न होने से शिक्षित बेरोजगारी सर्जित होती है । जो भारत के लिए अधिक चिंताजनक बात है । (6) मानवशक्ति के आयोजन का अभाव : भारत में आयोजनकाल के दरम्यान मानवशक्ति का उचित आयोजन नहीं हुआ है । देश में वर्तमान समय में जिस प्रकार के श्रम की माँग है उस संदर्भ में पर्याप्त योग्य श्रमपूर्ति प्राप्त हो इस प्रकार का मानवशक्ति आयोजन करने की शिक्षण व्यवस्था नहीं है । देश के आर्थिक विकास के लिए कितने और किस प्रकार के मानवश्रम की आवश्यकता होगी इसका अनुमान लगाये बिना शिक्षा का विस्तार किया जा रहा है । परिणाम स्वरूप प्रतिवर्ष लाखों शिक्षित युवान डिग्री प्राप्त करते हैं परंतु उनके पास आर्थिक विकास के अनुरूप ज्ञान, प्रशिक्षण या शिक्षण न होने से शिक्षित होने पर भी बेरोजगारी सर्जित होती है । (7) सार्वजनिक क्षेत्रों की अकार्यक्षमता : स्वतंत्रता के बाद भारत में निजी क्षेत्रों की अपेक्षा सार्वजनिक क्षेत्रों के विकास को अधिक महत्त्व दिया गया है । सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाइयों की संख्या और पूंजीनिवेश में वृद्धि हुयी है । परंतु कमजोर कार्यक्षमता के कारण रोजगार के अवसर सर्जित करने में निष्फल गये हैं । परिणाम स्वरूप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । (8) कृषि क्षेत्र के विकास की उपेक्षा : भारत एक कृषिप्रधान देश है । भारत में अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है । जिनके रोजगार का मुख्य आधार कृषि क्षेत्र है । परंतु भारत में आर्थिक विकास के लिए उद्योग क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया गया है । कृषि क्षेत्र पर अधिक ध्यान दिया गया है । कृषि क्षेत्र वह अधिक ध्यान न देने से कृषि क्षेत्र में मौसमी बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी अधिक सर्जित होती है । (9) श्रम की धीमी गतिशीलता : श्रम की धीमी गतिशीलता के कारण भी बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । श्रम की धीमी गतिशीलता के लिए सामाजिक परिबल, पारिवारिक सम्बन्ध, भाषा, धर्म, रीति-रिवाज, संस्कृति, जानकारी का अभाव, अपर्याप्त परिवहन सेवा जवाबदार है । उच्च शिक्षा प्राप्त लोग गाँव, पिछड़े विस्तारों में जाने की बजाय बेरोजगार रहना पसंद करते हैं । अधिकांशत: लोग शहरों में रोजगार प्राप्त करने की इच्छा रखते है जो संभव नहीं होता है । परिणाम स्वरुप बेरोजगारी की समस्या सर्जित होती है । (10) अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधा : ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों को कच्चा माल, श्रमिक, सस्ते दर प्राप्त हो जाते हैं । परंतु पर्याप्त मात्रा में नियमित बिजली प्राप्त नहीं होती है । परिवहन, संचार, बाज़ार की अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधा के कारण उद्योगों का विकास नहीं होता है । परिणाम स्वरूप नये रोजगार के अवसर सर्जित नहीं होते हैं । परिणाम स्वरूप ग्रामीण विस्तारों में अपर्याप्त ढाँचाकीय सुविधाएँ बेरोजगारी की समस्या का एक कारण है । उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त भारत में राष्ट्रीय रोजगार नीति का अभाव, उद्योग-व्यवसाय को प्रोत्साहन मिले ऐसे वातावरण का अभाव, प्राकृतिक संसाधनों का अपर्याप्त उपयोग भी बेरोजगारी की समस्या बढ़ाने के लिए जवाबदार होते हैं । |
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