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भारत में कागज उद्योग के दो प्रमुख केन्द्रों के नाम बताइए तथा उनमें इस उद्योग के स्थानीयकरण के भौगोलिक कारकों की विवेचना कीजिए।याभारत में कागज उद्योग के स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले कारकों तथा वितरण का वर्णन कीजिए।

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भारत में कागज उद्योग का विकास
Development of Paper Industry in India

कागज आधुनिक सभ्यता का मूलाधार है। ऐसा माना जाता है कि ईसा से 300 वर्ष पूर्व कागज निर्माण की कला का विकास सर्वप्रथम चीन में हुआ था। भारत में कागज का निर्माण अति प्राचीन काल से
कुटीर उद्योग के रूप में किया जा रहा है जिसके प्रमुख केन्द्र कालपी, मथुरा एवं सांगानेर तथा आरवल में थे। आधुनिक ढंग का प्रथम प्रयास 1716 ई० में ट्रंकुबार (चेन्नई के समीप) नामक स्थान पर किया गया, परन्तु इसमें असफलता हाथ लगी। 1840 ई० में हुगली नदी के किनारे सिरामपुर में भी असफलता ही मिली, परन्तु इस उद्योग का वास्तविक विकास तब हुआ जब 1879 ई० में लखनऊ में अपर इण्डिया पेपर मिल्स तथा 1881 ई० में पश्चिम बंगाल में टीटागढ़ पेपर मिल्स की स्थापना की गयी। इसके बाद कारखानों की संख्या में वृद्धि होती गयी। शिक्षा में प्रगति के साथ-साथ कागज की माँग में भी वृद्धि होती रही है; फलतः उत्पादन में भी वृद्धि हुई। वर्तमान में देश में कागज के 380 कारखाने कार्यरत हैं।

कागज उद्योग के स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक
Geographical Factors Affecting to Localisation of Paper Industry

भारत में कागज उद्योग परम्परागत कच्चे माल (वन-आधारित लकड़ी) से मुक्त है, क्योंकि बाजार का 62% कागज गैर-परम्परागत कच्चे माल से तैयार किया जाता है। इनमें कृषि-कचरा एवं पुनः उपयोग में आने वाला कागज सम्मिलित है। देश में कागज उद्योग को निम्नलिखित भौगोलिक सुविधाएँ
उपलब्ध हैं –

(1) कच्चा माल – कागज उद्योग की स्थापना में कच्चे माल का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। कागज बनाने में सवाईघास, गन्ने की खोई,फटे-पुराने चीथड़े, रद्दी कागज, बाँस तथा कोमल लकड़ी प्रयुक्त की जाती है। भारत के तराई क्षेत्र में कागज उद्योग में प्रयुक्त की जाने वाली घास अधिक उगती हैं। इनसे लगभग 9% लुग्दी तैयार की जाती है। उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र में गन्ने की खोई पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है जिससे लगभग 4% लुग्दी तैयार की जाती है। पश्चिम बंगाल तथा दक्षिणी भारत में बाँस की लुगदी से कागज बनाया जाता है। यह कागज मोटा और घटिया किस्म का होता है। भारत में कोमल लकड़ी के वृक्ष कम उगते हैं; अत: केवल घास से ही कागज बनाया जाता है। अल्प मात्रा में लुगदी पश्चिमी यूरोपीय देशों से आयात की जाती है।

(2) स्वच्छ जल – कागज उद्योग के लिए स्वच्छ जल की आवश्यकता बहुत अधिक होती है। कागज उद्योग में प्रयुक्त पदार्थों को गलाने व साफ करने में स्वच्छ जल उपयोग में लाया जाता है। यही कारण है कि यहाँ पर अधिकांश कारखानों की स्थापना नदियों के किनारे पर की गयी है।

(3) रासायनिक पदार्थ – कच्चे माल के साथ-साथ कागज उद्योग में अनेक प्रकार के रासायनिक पदार्थों की आवश्यकता होती है। विभिन्न पदार्थों का रंग उड़ाने के लिए ब्लीचिंग पाउडर, गन्धक, सोडाएश, कॉस्टिक सोडा, क्लोरीन गैस, अमोनियम सल्फेट, चूना तथा नमक आदि की आवश्यकता होती है। ये सभी पदार्थ भारत में पर्याप्त मात्रा में स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं।

(4) शक्ति संसाधन – कागज उद्योग में चालक शक्ति के रूप में जल-विद्युत अथवा ताप विद्युत- शक्ति (कोयला) की आवश्यकता होती है। कोयला एक भारी पदार्थ है; अत: उसे दूरवर्ती स्थानों तक ले जाने में कठिनाई तथा अधिक व्यय करना पड़ता है। भारत में जल-विद्युत के उत्पादन में कमी होने के कारण, कागज के कारखानों में उत्पादन बहुत घट गया है। पश्चिम बंगाल में अनेक कारखाने जल-विद्युत के अभाव में बन्द हो गये हैं या आंशिक रूप से चल रहे हैं। वर्तमान समय में 125 कागज मिलें इसी कारण बन्द पड़ी हैं अथवा आंशिक रूप से चल रही हैं। अत: इस उद्योग के विकास में पर्याप्त सस्ती जल-विद्युत शक्ति की अत्यन्त आवश्यकता है।

(5) सस्ते एवं कुशल श्रमिक – कागज की मिलों में कार्य करने के लिए अधिक संख्या में सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। भारत में प्राचीन काल से ही कागज उद्योग कुटीर उद्योग के रूप में चलाया जाता रहा है; अतः कुशल तथा अनुभवी श्रमिक यहाँ पर्याप्त संख्या में सुगमता से उपलब्ध हो जाते हैं। भारत की सघन जनसंख्या इस उद्योग को सस्ते श्रमिक उपलब्ध करा देती है।

(6) परिवहन के साधन – कागज की मिलों तक कच्चा माल लाने तथा तैयार कागज को बाहर भेजने के लिए परिवहन के सस्ते एवं सुगम साधनों की आवश्यकता पड़ती है। यही कारण है कि भारत में कागज के कारखाने प्रायः रेलवे लाइनों, नदियों अथवा सड़कों के सहारे-सहारे स्थापित किये गये हैं

(7) पर्याप्त माँग – भारत में कागज की खपत बहुत अधिक है। इस विशाल देश में विद्यालयों तथा कार्यालयों के लिए कागज की पर्याप्त माँग रहती है। भारत का कागज उद्योग देश की माँग की पूर्ति (केवल 90%) भी नहीं कर पाता है।

(8) सरकारी सहायता एवं संरक्षण – भारत सरकार ने कागज उद्योग को सन् 1982 से संरक्षण प्रदान किया है जिसके फलस्वरूप इस उद्योग में आशातीत प्रगति हुई है। इसके अतिरिक्त सरकार कागज उद्योग को वित्तीय सहायता भी प्रदान करती है।

भारत में कागज का उत्पादन एवं वितरण
Production and Distribution of Paper in India

कागज के उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में बीसवाँ स्थान है। कागज एक विस्तृत उद्योग है। देश का 70% से भी अधिक कागज का उत्पादन पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं मध्य प्रदेश राज्यों से प्राप्त होता है। कागज के उत्पादन का कुछ भाग हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, केरल एवं गुजरात राज्यों से प्राप्त होता है। प्रमुख कागज उत्पादक राज्यों का विवरण निम्नवत् है –

(1) पश्चिम बंगाल – पश्चिम बंगाल राज्य देश का लगभग 20% कागज उत्पन्न कर प्रथम स्थान बनाये हुए है। इस राज्य में कागज की 19 मिले हैं। टीटागढ़, रानीगंज, नैहाटी, त्रिवेणी, कोलकाता, काकिनाड़ा, चन्द्रहाटी (हुगली), आलम बाजार (कोलकाता), बड़ा नगर, बांसबेरिया तथा शिवफूली कागज उद्योग के प्रमुख केन्द्र हैं। टीटागढ़ में देश की सबसे बड़ी कागज मिल है जिसमें बाँस का कागज निर्मित किया जाता है।

(2) महाराष्ट्र – यह दूसरा बड़ा कागज उत्पादक राज्य है। यहाँ पर 14 कागज एवं 3कागज-गत्ते के सम्मिलित कारखाने हैं जो देश का लगभग 13% कागज का उत्पादन करते हैं। यहाँ पर कोमल लकड़ी की लुगदी विदेशों से आयात की जाती है। इसके अतिरिक्त बाँस, खोई एवं फटे-पुराने चिथड़ों का उपयोग कागंज बनाने में किया जाता है। गन्ने की खोई एवं धान की भूसी से गत्ता बनाया जाता है। पुणे, खोपोली, मुम्बई, बल्लारपुर, चन्द्रपुर, ओगेलवाडी, चिचवाडा, रोहा, कराड़, कोलाबा, कल्याण, वाड़ावाली, काम्पटी, नन्दुरबार, पिम्परी, भिवंडी एवं वारसनगाँव कागज उद्योग के प्रधान केन्द्र हैं। बल्लारपुर एवं सांगली में अखबारी कागज की मिलें भी स्थापित की गयी हैं।।

(3) आन्ध्र प्रदेश – कागज के उत्पादन में आन्ध्र प्रदेश राज्य का देश में तीसरा स्थान है, जहाँ देश का 12% कागज तैयार किया जाता है। कागज उद्योग के लिए बॉस इस राज्य का प्रमुख कच्चा माल है; अतः यहाँ पर यह उद्योग इसी कच्चे माल पर आधारित है। सिरपुर, कागजनगर, तिरुपति तथा राजमहेन्द्री प्रमुख कागज उत्पादक केन्द्र हैं।

(4) मध्य प्रदेश – इस राज्य में वनों का विस्तार अधिक है। यहाँ बाँस एवं सवाई घास पर्याप्त मात्रा में उगती है। इस राज्य में इन्दौर, भोपाल, सिहोर, शहडोल, रतलाम, मण्डीद्वीप, अमलाई एवं विदिशा प्रमुख कागज उत्पादक केन्द्र हैं। नेपानगर में अखबारी कागज तथा होशंगाबाद में नोट छापने के कागज बनाने का सरकारी कारखाना स्थापित है।

(5) उत्तर प्रदेश – उत्तर प्रदेश राज्य का यह उद्योग शिवालिक एवं तराई क्षेत्रों में सवाई, भाबर एवं मूंज घास तथा बॉस की प्राप्ति के ऊपर निर्भर करता है। यहाँ देश का 4.3% कागज उत्पन्न किया जाता है। लखनऊ, गोरखपुर एवं सहारनपुर कागज उत्पादन के प्रमुख केन्द्र हैं। इनके अतिरिक्त मेरठ, मुजफ्फरनगर, उझानी, पिपराइच, मोदीनगर, नैनी, लखनऊ तथा सहारनपुर प्रमुख गत्ता उत्पादक केन्द्र हैं।

(6) कर्नाटक – इस राज्य में भद्रावती, बेलागुला तथा डांडेली केन्द्रों पर कागज की मिलें हैं।

(7) अन्य राज्य – भारत के अन्य कागज उत्पादक राज्यों में बिहार, गुजरात, ओडिशा, केरल, हरियाणा एवं तमिलनाडु प्रमुख हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार – भारत में कागज का उपभोग निरन्तर बढ़ता जा रहा है। अतः उत्पादन की कमी की पूर्ति विदेशों से कागज का आयात कर की जाती है। यह आयात नॉर्वे, स्वीडन, जापान, हॉलैण्ड, पोलैण्ड, जर्मनी, कनाडा आदि देशों से किया जाता है। भारत थोड़ी मात्रा में कागज का निर्यात भी करता है। यह निर्यात अफ्रीकी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों को किया जाता है। वर्ष 2001-2002 में भारत ने ₹ 2,131 करोड़ मूल्य के कागज का आयात किया। इस आयात को देखते हुए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भविष्य में कागज उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लिए देश के भीतर ही सम्भावित स्थानों पर कागज की मिलों का विस्तार किया जाना चाहिए।



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