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भारत में कृषि की वर्तमान स्थिति की समीक्षा कीजिए ।

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भारत प्राचीनकाल से ही कृषिप्रधान देश है । भारतीय अर्थतंत्र कृषि पर आधारित है । इसलिए कृषि अर्थतंत्र की रीड की हड्डी है । कृषि क्षेत्र के महत्त्व को समझने के लिए हम कृषि क्षेत्र की वर्तमान स्थिति की चर्चा करेंगे :

(1) राष्ट्रीय आय : भारत की राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण योग गान है । कृषि क्षेत्र को प्राथमिक क्षेत्र भी कहते हैं । जिसमें कृषि फसल, मुर्गीपालन, मत्स्यपालन, पशुपालन आदि का समावेश होता है । 2011-’12 के आर्थिक सर्वे के अनुसार भारत की राष्ट्रीय आय में 1950-51 में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 53.1% था जो घटकर 2011-’12 में 13.9% रह गया है । जो भारत में बिन कृषि क्षेत्र के विकास का निर्देश है । भारत में कृषि क्षेत्र का विकास भी एक जटिल प्रश्न बन गया है ।

(2) रोजगार : भारत में कृषि क्षेत्र सबसे अधिक रोजगार देनेवाला क्षेत्र है । स्वतंत्रता के समय 72% कृषि क्षेत्र और उससे सम्बन्धित प्रवृत्तियों से रोजगार प्राप्त करते थे । स्वतंत्रता के बाद उद्योग क्षेत्र और कृषि क्षेत्र का विकास होने से रोजगारी का प्रमाण घटा है । जैसे – 2001-’02 में कृषि क्षेत्र 58% और 2014-’15 में 49% रोजगार उपलब्ध करवाता है ।

(3) जो अन्य क्षेत्रों से अधिक है। निर्यात आय : भारत कृषि उत्पादनों का निर्यात करके विदेशी मुद्रा प्राप्त करता है । जैसे चाय, मिर्च-मसाला, फल आदि कृषि उत्पादों का निर्यात करता है । स्वतंत्रता के समय 70% विदेशी मुद्रा कृषि निर्यात से प्राप्त होती थी । जो घटकर 2013-’14 . में 14.2 प्रतिशत रह गयी ।

(4) जीवनस्तर : लोगों के जीवनस्तर में सुधार के लिए कृषि क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है । कृषि उत्पादन बढ़ाकर हम कम कीमत में कृषिजन्य आवश्यकता को पूर्ण कर सकते हैं । तथा उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध करवाकर औद्योगिक विकास को भी गति प्रदान करता है । वर्तमान समय कृषि क्षेत्र भारत में स्वनिर्भर बना है । जैसे 1951 में प्रतिव्यक्ति अनाज की प्राप्ति 395 ग्राम थी वह बढ़कर 2013 में 511 ग्राम होग गयी । जिससे हम कह सकते हैं कि लोगों के जीवनस्तर में सुधार हुआ है और लोगों की औसत आयु भी बढ़ी है ।

(5) कृषि उत्पादन में वृद्धि : स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने कृषि विकास पर ध्यान दिया परिणाम स्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुयी है जैसे अनाज, दलहन, गन्ना और तिलहन का उत्पादन 1950-’51 में क्रमश: 51.0, 8.4, 69.0 और 5.1 मेट्रिक टन था जो बढ़कर क्रमश: 2013-’14 में 264.4, 19.6, 348.0 और 32.4 मेट्रिक टन हो गया । इस प्रकार अनाज के उत्पादन में पाँच गुना, दलहन में ढाई गुना, गन्ना में पाँच गुना तथा तिलहन का उत्पादन 6.35 गुना वृद्धि हुयी है । कपास का उत्पादन 1950’51 मे 2.1 मेट्रिकस वेल्स (गांठ) था वह बढ़कर 2013-’14 में 36.5 मेट्रिक वेल्स(गांठ) हो गया अर्थात् 17 गुना वृद्धि हुयी है । कृषि उत्पादन के साथ-साथ कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुयी है।

(6) औद्योगिक विकास का आधार : कृषि क्षेत्र का विकास औद्योगिक विकास के लिए भी महत्त्वपूर्ण है । उद्योगों को कच्चा माल । कृषि क्षेत्र उपलब्ध करवाती है । और औद्योगिक विकास को गति प्रदान करती है । दूसरी दृष्टि से देखें तो 69 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण विस्तार में रहती है, जिसकी आय का मुख्य स्रोत कृषि क्षेत्र है । तो कृषि क्षेत्र का विकास होने से ग्रामीण लोगों की आय बढ़ेगी जिससे टी.वी., फ्रीज, मोटर साइकल आदि औद्योगिक वस्तुओं की मांग बढ़ेगी और उद्योगों का विकास होगा ।



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