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फसल की अदलाबदली को समझाइए ।

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फसल की अदलाबदली यह देश में लिये जानेवाले अलग-अलग फसलों के लिए उपयोग में ली जानेवाली जोती गयी जमीन के विस्तार द्वारा प्राप्त कर सकते हैं । फसल की अदला-बदली खेती के कार्यों के स्वरूप को दर्शाती है । सामान्य रूप से फसल के मुख्य रूप से दो स्वरूप है –

(1) अनाज की फसल जिसमें गेहूँ, चाबल, बाजरा, ज्वार, मक्का तथा तिलहन का समावेश होता है ।

(2) नगदी फसल या अनाजेतर फसल जिसमें विविध तिलहन, गन्ना, रबर, कपास, सन आदि का समावेश होता है ।

फसल की अदला-बदली के मुख्य दो कारण है :

(1) टेक्नोलॉजिकल परिबल
(2) आर्थिक परिबल

(1) टेक्नोलोजिकल परिबल : किसी एक विस्तार में फसल की अदलाबदली यह जमीन, जलवायु, वरसाद आदि बातों पर आधारित है । जैसे : मध्य प्रदेश में वर्षों तक बाजरे की फसल के बाद चाबल की फसल ली जाती है । भारत में बहुत से राज्यों में सिंचाई की सुविधाओं के आधार पर गन्ना, तमाकू जैसी फसल ली जाती है । इस प्रकार फसल की अदला-बदली पूँजी, नये बीज, खाद, ऋण की सुविधा आदि पर आधार रखता है ।

(2) आर्थिक परिबल : फसल की अदलाबदली लिए आर्थिक परिबल भी महत्त्वपूर्ण है । यह आर्थिक परिबल निम्नानुसार है :

  1. कीमत और आय को महत्तम बनाना
  2. कृषिजन्य साधनों की उपलब्धता
  3. खेत का कद
  4. वीमा रक्षण
  5. समय (जमीन मालिक पास से प्राप्त जमीन का समय) आदि ।

इन परिबलों के आधार पर फसल की अदला-बदली के लिए जवाबदार होते हैं । 1950-’51 में लगभग 75% अनाज और 25% नगदी फसलें ली जाती थी । उसके बाद 1966 से हरित क्रांति के बाद 1970’71 में अनाज 74% और नकदी फसलें 26% ली जाती थी । यह अनुपात 2006-’07 में 64% और 34% हो गया । और 2010-’11 में लगभग अनाज की फसल 66% और नकदी फसलें 34% ली जाती थी ।



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