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भारत में प्रजातंत्र की कौन-कौन सी कमियाँ आपको नजर आती हैं? इनके निराकरण के लिए आप क्या करना चाहेंगे?

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भारत में प्रजातन्त्र सन् 1950 में स्वीकार किया गया था। तब से एक लम्बा समय व्यतीत हो चुका है। इस बीच प्रजातंत्र मजबूत हुआ है किन्तु अब भी उसमें अनेक कमियाँ हैं जिनको सुधारना जरूरी है। भारत में अनेक राजनैतिक दल हैं। चुनाव दलविहीन प्रत्याशी भी लड़ सकते हैं। केन्द्र तथा राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें होती हैं। इससे उनमें संघर्ष की स्थिति बनी रहती है तथा जनता के हित प्रभावित होते हैं। राजनैतिक दलों की संख्या कम होनी चाहिए। स्वतन्त्र प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए। केन्द्र तथा राज्यों में चुनाव साथ-साथ होने चाहिए।

भारतीय राजनीतिज्ञ सिद्धान्तहीन हैं। दल-बदल खूब होता है। चुनाव में धनबल, धर्म, जाति तथा अपराधी प्रकृति से लोग प्रभावित करते हैं। इन बातों पर नियंत्रण होना आवश्यक है। राजनैतिक दलों की आय की जाँच होनी चाहिए तथा आय के स्रोतों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

जो दल सत्ता में है, उसको पक्षपातरहित होना चाहिए। उसको अपनी नीति लोकसभा में रखनी चाहिए तथा वहाँ से स्वीकृत नीति को ही कार्यपालिका द्वारा लागू किया जाना चाहिए। सरकार को इसमें हस्त क्षेप नहीं करना चाहिए। किसी अधिकारी तथा कर्मचारी पर अनुचित दबाव भी नहीं डालना चाहिए। लोकसभा तथा विधानसभा में तर्कपूर्ण चर्चा होनी चाहिए। वहाँ सरकारी पक्ष तथा प्रतिपक्ष को एक दूसरे के विरोध के अनुचित तरीके नहीं अपनाने चाहिए। दोनों का आचरण संविधान सम्मत होना चाहिए।

उपर्युक्त कमियों के निराकरण हेतु मैं लोगों को अच्छे जनप्रतिनिधियों को चुनने हेतु प्रेरित करूंगा। साथ ही साथ इस विषय पर अपने अभिभावकों से लोगों से चर्चा करने हेतु आग्रह करूंगा।



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