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| 1. | भारत में सीमेण्ट उद्योग की अवस्थिति एवं विकास के कारकों की विवेचना कीजिए।याभारत में सीमेण्ट उद्योग के स्थानीयकरण के कारकों की विवेचना कीजिए तथा इसके उत्पादन के प्रमुख केन्द्रों का उल्लेख कीजिए।याभारत में सीमेण्ट उद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –(क) स्थानीयकरण के कारक, (ख) प्रमुख केन्द्र, (ग) व्यापार। [2013, 16]याभारत में सीमेण्ट उद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों में कीजिए –(क) स्थानीयकरण के कारक, (ख) उत्पादन, (ग) उद्योग के प्रमुख केन्द्र। | 
| Answer» सीमेण्ट उद्योग का विकास भारत में संगठित रूप से सीमेण्ट तैयार करने का श्रेय चेन्नई को जाता है, जहाँ सन् 1904 में समुद्री सीपियों से सीमेण्ट बनाने का प्रयास किया गया था, परन्तु इसमें पूर्ण सफलता नहीं मिल सकी। इस उद्योग का वास्तविक विकास वर्ष 1912-13 में हुआ, जबकि मध्य प्रदेश में कटनी, राजस्थान में लखेरी-बूंदी तथा गुजरात में पोरबन्दर में तीन कारखाने स्थापित किये गये। इनमें सन् 1914 से उत्पादन प्रारम्भ हुआ। देश में इस उद्योग की प्रगति का श्रेय एसोसिएटिड सीमेण्ट कम्पनी (ए०सी०सी०), कंक्रीट एसोसिएशन ऑफ इण्डिया एवं सीमेण्ट मार्केटिंग कम्पनी को दिया जा सकता है। सीमेण्ट वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए सीमेण्ट उद्योग का विकास अति आवश्यक है। यह अनेक उद्योगों के विकास की कुंजी है। भारत संसार का सातवाँ बड़ा सीमेण्ट उत्पादक देश है। इस उद्योग में लगभग 90,000 व्यक्ति कार्यरत हैं। सन् 2012 में सीमेण्ट उत्पादन 210 मिलियन टन हुआ। सीमेण्ट उद्योग के स्थानीयकरण के भौगोलिक कारक (1) कच्चा माल – सीमेण्ट उद्योग में अधिकांशतः भारी वस्तुओं-चूने का पत्थर, जिप्सम तथा कोयले का उपयोग अधिक किया जाता है। अतः इन्हें ढोने में अधिक व्यय करना पड़ता है। इसी कारण सीमेण्ट उद्योग कच्चे पदार्थों की प्राप्ति के निकटवर्ती स्थानों पर स्थापित किया जाता है। भारत में कोई भी सीमेण्ट कारखाना चूना-पत्थर की खानों से 50 किमी से अधिक दूरी पर स्थित नहीं है। अब सीमेण्ट बनाने के लिए धमन भट्टी का कचरा भी प्रयुक्त किया जाने लगा है। गुजरात, राजस्थान तथा कर्नाटक में कच्चा माल उपलब्ध है। सीमेण्ट का उत्पादन एवं वितरण सीमेण्ट उद्योग का वितरण विकेन्द्रित है। अधिकांश कारखाने देश के पश्चिमी तथा दक्षिणी भागों में विकसित हुए हैं, जबकि सीमेण्ट की अधिकांश माँग उत्तरी एवं पूर्वी क्षेत्रों में अधिक है। तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, राजस्थान, कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश राज्य देश का 74% सीमेण्ट उत्पन्न करते हैं, जबकि कुल उत्पादित क्षमता का 86% भाग इन्हीं राज्यों में केन्द्रित है। निम्नलिखित राज्यों का सीमेण्ट उत्पादन में महत्त्वपूर्ण स्थान है – (1) मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ – मध्य प्रदेश राज्य देश का 15% सीमेण्ट उत्पन्न करता है। यहाँ सीमेण्ट के 8 विशाल कारखाने हैं। कटनी, कैमूर, सतना, जबलपुर, दुर्ग, बनमोर एवं दमोह में प्रमुख कारखाने हैं। इस राज्य में सीमेण्ट के 5 नये कारखाने प्रस्तावित हैं। यहाँ कोयला झारखण्ड से तथा शेष कच्चा माल स्थानीय रूप से उपलब्ध है।’. ” (2) तमिलनाडु – इंसे राज्य को सीमेण्ट के उत्पादन में दूसरा स्थान है। यहाँ पर सीमेण्ट के 7 कारखाने हैं जो बड़े आकार के हैं तथा देश का 12% सीमेण्ट उत्पन्न करते हैं। चूना-पत्थर की पूर्ति स्थानीय क्षेत्रों के साथ-साथ कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश सज्यों से भी की जाती है। तुलुकापट्टी, तिलाईयुथू, : तिरुनलवेली, डालमियापुरम, राजमलायम, संकरी दुर्ग एवं मधुकराई प्रमुख सीमेण्ट उत्पादक केन्द्र हैं। (3) आन्ध्र प्रदेश – आन्ध्र प्रदेश में सीमेण्ट के 18 कारखाने हैं, जो गुण्टूर, कर्नूल, नालगोण्डा, मछलीपट्टनम्, हैदराबाद एवं विजयवाड़ा में केन्द्रित हैं। इस राज्य की सीमेण्ट उत्पादन क्षमता 45 लाख टन तक पहुँच गयी है। (4) राजस्थान – सीमेण्ट के उत्पादन में राजस्थान राज्य का चौथा स्थान है। यहाँ अरावली पहाड़ियों में चूने-पत्थर के पर्याप्त भण्डार हैं। यहाँ सीमेण्ट उत्पादन के 10 कारखाने हैं, जो लखेरी (बूंदी), सवाईमाधोपुर, चित्तौड़गढ़, चुरू, नीम्बाहेड़ा एवं उदयपुर में हैं। (5) बिहार – इस राज्य में सीमेण्ट के 10 बड़े कारखाने हैं। सभी कारखाने कोयला एवं चूना-पत्थर क्षेत्रों के समीप पड़ते हैं। डालमियानगर, सिन्द्री, बनजारी, चायबासी, खलारी, जापला एवं कल्याणपुर प्रमुख केन्द्र हैं। बिहार राज्य में सीमेण्ट के दो कारखाने और लगाये जाने प्रस्तावित हैं। (6) कर्नाटक – इस राज्य में बीजापुर, भद्रावती, गुलबर्गा, उत्तरी कनारा, तुमुकुर एवं बंगलुरु . प्रमुख सीमेण्ट उत्पादक केन्द्र हैं। यहाँ सीमेण्ट उत्पादन के 8 बड़े संयन्त्र स्थापित किये गये हैं। (7) गुजरात – गुजरात राज्य में सीमेण्ट के 10 कारखाने हैं। सीमेण्ट उद्योग का प्रारम्भ इसी राज्य से किया गया था। चूना-पत्थर और समुद्री सीपों का उपयोग यहाँ पर सीमेण्ट बनाने में किया जाता है। सिक्का (जामनगर), अहमदाबाद, राणाबाव, बड़ोदरा, पोरबन्दर, सेवालिया, ओखामण्डल एवं द्वारका प्रमुख सीमेण्ट उत्पादक केन्द्र हैं। यहाँ 20 लाख टन सीमेण्ट का वार्षिक उत्पादन किया जाता है। (8) अन्य राज्य – हरियाणा में सूरजपुर एवं डालमिया-दादरी; केरल में कोट्टायम; उत्तर प्रदेश में चुर्क एवं चोपन; ओडिशा में राजगंगपुर एवं हीराकुड; जम्मू-कश्मीर में वुयाने तथा असम में गुवाहाटी अन्य प्रमुख सीमेण्ट उत्पादक केन्द्र हैं। सन् 1985 के बाद से उत्तर प्रदेश राज्य में लघु संयन्त्रों की स्थापना की ओर विशेष ध्यान आकर्षित हुआ है तथा यहाँ94 लघु संयन्त्र स्थापन की अनुमति प्रदान की जा चुकी है। भारत में सीमेण्ट उद्योग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ कुल उत्पादन क्षमता का 84% सीमेण्ट का ही उत्पादन किया जाता है। सन् 1965 में इस उद्योग के विकास एवं विस्तार हेतु सीमेण्ट निगम की स्थापना की गयी थी। इस निगम का प्रमुख कार्य कच्चे माल के नये क्षेत्रों का पता लगाना तथा इस उद्योग से सम्बन्धित समस्याओं को हल करना था। निगम द्वारा मन्धार (मध्य प्रदेश) तथा करकुन्ता (कर्नाटक) में सीमेण्ट के कारखाने स्थापित किये गये हैं। बोकाजन (असम), पॉवटा साहिब (हिमाचल प्रदेश), अलकतरा एवं नीमच (मध्य प्रदेश), तन्दूर, अदिलाबाद एवं येरागुन्तला (आन्ध्र प्रदेश) तथा बरूवाला (उत्तर प्रदेश) केन्द्रों में नवीन सीमेण्ट कारखाने स्थापित किये गये हैं व्यापार Trade स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय देश में सीमेण्टे का उत्पादन बहुत कम था परन्तु तब से अब तक उसके उत्पादन में निरन्तर प्रगति हुई है। भारत समय-समय पर विदेशों को सीमेण्ट का निर्यात भी करता रहा है। यह निर्यात मुख्यतः पश्चिमी एशियाई देशों को हुआ है। कुछ वर्षों पूर्व तक हम अपनी आवश्यकता का भी सीमेण्ट उत्पादित नहीं कर पाते थे परन्तु अब हम सीमेण्ट उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गए हैं। सन् 1997-98 में भारत ने 42.5 लाख टन, सन् 2001-02 में 51.4 लाख टन तथा सन् 2012 में 210 मिलियन टन सीमेण्ट विदेशों को निर्यात किया था। उत्तम क्वालिटी के कारण भारतीय सीमेण्ट ने बंगलादेश, इण्डोनेशिया, मलेशिया, नेपाल, म्यांमार, अफ्रीका तथा पश्चिमी व दक्षिणी एशिया के देशों के बाजार में महत्त्वपूर्ण स्थान बनाया है। | |