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भारतीय ग्राम पंचायत के दोषों की विवेचना कीजिए। |
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Answer» भारतीय ग्राम पंचायत के दोष । भारत के स्वतन्त्र होने के पश्चात् ग्रामीण विकास तथा प्रगति के लिए ग्राम पंचायतों के महत्त्व को सर्व-सम्मति से स्वीकार किया गया तथा देशभर में ग्राम पंचायतों की स्थापना की गई। इन पंचायतों को विभिन्न प्रकार के अधिकार तथा कर्त्तव्य सौंपे गए। परन्तु पिर भी ग्राम पंचायतों को आशा से काफी कम सफलता मिली है। कुछ क्षेत्रों में तो ग्राम पंचायतें पूर्णरूप से असफल रही हैं। अब प्रश्न उठता है कि सरकार द्वारा स्थापित तथा जनता के हित के लिए कार्य करने वाली इन संस्थाओं (पंचायतों) को अपने कार्य में सफलता क्यों नहीं मिली। भारतीय ग्राम पंचायतों की असफलता के मुख्य दोष (कारण) निम्नलिखित हैं 1. सामान्य निर्धनता – भारतीय ग्रामीण समाज की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। आम व्यक्ति को अपने जीविकोपार्जन की ही चिन्ता लगी रहती है। ऐसी स्थिति में योग्य व्यक्ति पंचायत के कार्यों को करने से कतराते हैं। पंचायत के कार्य करने से कोई आर्थिक लाभ तो होता नहीं। अतः वे इसे केवल समय की बरबादी मानते हैं। योग्य व्यक्तियों के अभाव में अयोग्य व्यक्ति 2. परस्पर पार्टीबाजी और गुटबन्दी – पंचायतों के निर्वाचन के समय गाँव में परस्पर गुटबन्दी और पार्टीबाजी से काम लिया जाता है। गाँव, जो कि इन दोषों से बचे हुए थे, पंचायतों के कारण गुटबन्दी और पार्टीबाजी के शिकार हो गए हैं। हारा हुआ समूह जीते हुए संमूह को कोई काम नहीं करने देता; यहाँ तक कि रचनात्मक कार्यों में भी उसका सहयोग नहीं मिल पाता है। 3. बिरादरीवाद – अनेक पंचायतें भाई-भतीजावाद तथा पक्षपात का अड्डा बन गई है। पंचायती चुनाव ने जातिवाद को और अधिक विकसित कर दिया है। जातिवाद व बिरादरीवाद के कारण 4. अशिक्षा – पंचायत के अधिकांश सदस्य एवं पंच ज्यादा शिक्षित नहीं होते; अतः वे अपना उत्तरदायित्व ठीक प्रकार से नहीं निभा पाते। पंचायतों पर हुए अध्ययनों से पता चलता है कि ग्रामीण जनता पंचायतों के प्रति अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के विषय में जागरूक नहीं है। तथा इसे अपनी संस्था न मानकर एक सरकारी संगठन मात्र मानती है। 5. घमण्ड – प्रायः गाँवों की पंचायतों के सरपंच घमण्डी होते हैं। वे अपने को एक शासक के रूप में समझते हैं और अपनी स्थिति का दुरुपयोग करते हैं। वे गाँव वालों को विकास कार्यों 6. राजनीतिक हस्तक्षेप – ग्रामीण समाज में ग्राम पंचायत का काफी महत्त्व होता है, अतः विभिन्न राजनीतिक दल ग्राम पंचायत को अपने स्वार्थ पूर्ति का साधन बनाना चाहते हैं। इस स्थिति में पंचायत के विभिन्न पदाधिकारियों को गुमराह किया जाता है तथा अपने निहित स्वार्थों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। ऐसी स्थिति में पंचायत अपने वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति से चूक जाती है तथा असफल हो जाती है। 7. पेशेवर नेता – योग्य एवं इज्जतदार व्यक्ति की उदासीनता के कारण कुछ अवसरवादी लोग लाभ उठाते हैं। प्रत्येक गाँव में कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें साधारण भाषा में पेशेवर नेता कहा जा सकता है। ये पेशेवर नेता ही ग्राम पंचायत के सभी पद प्राप्त कर लेते हैं तथा अपनी नेतागीरी को अधिक महत्त्व देते हैं। इन्हें समाज कल्याण एवं सुधार से कोई सरोकार नहीं होता ” है। ऐसी स्थिति में पंचायत का असफल होना स्वाभाविक ही है। 8. चुनावों में प्रभावशाली लोगों का दबाव – आज भी गाँव में सामन्तशाही और जमींदारी प्रथा के अंश पाए जाते हैं। ऐसे प्रभावशाली लोगों के दबाव के कारण ग्रामीण सच्चे प्रतिनिधि नहीं |
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