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भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा जाति-धर्म से ऊपर किस प्रकार रही है?

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भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा में संकुचित दृष्टिकोण कभी नहीं रहा। यही कारण है कि हमारे देश में कितने ही मुसलमान पहलवानों के हिन्दू शिष्य हैं और हिन्दू पहलवानों के मुसलमान शिष्य हैं। यहाँ व्यक्ति के गुण, साधना और प्रतिभा को परखा जाता है, उसके जाति-संप्रदाय, आचार-विचार और धर्म को नहीं। पुराने जमाने में मौलवी लोग बड़ेबड़े रामायणी होते थे। आज भी भरत मियां, रंजीत मियाँ आदि हिंद मुसलमान गुरुओं के शिष्य हैं। इस प्रकार भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा जाति-धर्म के ऊपर रही है।



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