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भारतीय जलवायु पर चक्रवातीय एवं प्रतिचक्रवातीय तूफानों को क्या प्रभाव पड़ता है?

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चक्रवातों एवं प्रतिचक्रवातों का मौसम व जलवायु पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इनका ऊपरी वायु संचरण से भी गहरा सम्बन्ध होता है। ये कभी-कभी इतने प्रबल हो जाते हैं कि वायु के सामान्य परिसंचरण को अस्पष्ट कर देते हैं। चक्रवात अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी में चलते हैं तथा तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। बंगाल की खाड़ी में चलने वाले चक्रवातों से कभी-कभी भारी धन-जन की हानि होती है। वास्तव में चक्रवात में वायुदाब बाहर से अन्दर की ओर कम होता जाता है। समदाब रेखाएँ वृत्ताकारे या अण्डकार होती हैं। अल्पतम वायुदाब केन्द्र दो गर्त-रेखाओं का प्रतिच्छेदन बिन्दु होती है। इसी कारण इनमें वायु बाहर से अन्दर की ओर चलती है। चक्रवात बहुत बड़े क्षेत्र पर फैले होते हैं जिनका व्यास छोटे क्षेत्रों में कई सौ किमी जबकि बड़े चक्रवातों को कई हजार किमी में होता है। इस प्रकार चक्रवात से प्रभावित क्षेत्र का मौसम बड़ा ही खराब होता है।
प्रतिचक्रवात सामान्यत: साफ मौसम का प्रतीक समझा जाता है, परन्तु इसमें सदैव मौसम साफ नहीं रहता। इसका मौसम इसकी वायुराशि के गुणों और ग्रीष्म एवं शीत ऋतु पर निर्भर रहता है। ग्रीष्म ऋतु में प्रतिचक्रवात में शुष्क, गरम मौसम एवं स्वच्छ आकाश होता है जिसमें उच्च दैनिक ताप परिसर पाए जाते हैं। शीत ऋतु में जिन प्रतिचक्रवातों में ध्रुवीय ठण्डी एवं शुष्क वायु होती है, उनमें निम्न ताप और स्वच्छ आकाश के साथ रात्रि में पाला पड़ता है। परन्तु जिन प्रतिचक्रवातों में ध्रुवीय समुद्री वायु होती है, उनमें आकाश स्तरी मेघों से ढक जाता है, जिसे प्रतिचक्रवाती अंधकार कहते हैं। ऐसी दशा में बड़े नगरों के उद्योगों द्वारा प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो जाती है और कुहरा छाया रहता है।



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