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भारतीय समाज के उत्थान में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की भूमिका की विवेचना कीजिए।

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सती–प्रथा के बन्द होने से विधवाओं की समस्या पहले से भी अधिक गम्भीर रूप में सामने आयी। सती–प्रथा के प्रचलन के कारण विधवाओं की संख्या उतनी अधिक नहीं थी, लेकिन जब यह प्रथा अवैध घोषित हो गयी तो विधवाओं की संख्या में काफी वृद्धि हुई। 19वीं सदी के समाज-सुधारक विधवा-विवाह के लिए आन्दोलन करने लगे। संस्कृत के महान् विद्वान् पंडित ईश्वरचन्द विद्यासागर ने. विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए प्रबल आन्दोलन किया। उन्होंने शास्त्रों से उदाहरण देकर यह प्रमाणित कर दिया कि हिन्दू शास्त्रों के द्वारा विधवा पुनर्विवाह निषिद्ध नहीं है। बड़ी संख्या में हस्ताक्षर इकट्ठे करके सरकार के पास एक प्रार्थना-पत्र भेजा गया। उनके प्रयत्नों से 1856 ई० में विधवा-विवाह जायज घोषित कर दिया गया। सामाजिक संस्थाओं के द्वारा अनेक विधवा-आश्रम भी देश में कायम किये गये।



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