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Bharth ke prmukh dhratliy saqrupo ka warnn kijiye

Answer» ORG नाम भारत की भौतिक संरचनामिथिलेश वामनकरआपने कभी सोचा है कि मिट्टी की उर्वरता, गठन व स्वरूप अलग क्यों है? आपने यह भी सोचा होगा कि अलग-अलग स्थानों पर चट्टानों के प्रकार भी भिन्न हैं। चट्टानें व मिट्टी आपस में संबंधत हैं क्योंकि असंगठित चट्टानें वास्तव में मिट्टियाँ ही हैं। पृथ्वी के धरातल पर चट्टानों व मिट्टियों में भिन्नता धरातलीय स्वरूप के अनुसार पाई जाती है। वर्तमान अनुमान के अनुसार पृथ्वी की आयु लगभग 46 करोड़ वर्ष है। इतने लम्बे समय में अंतर्जात व बहिर्जात बलों से अनेक परिवर्तन हुए हैं। इन बलों की पृथ्वीक.- प्रायद्वीपीय खंडख.- हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वत मालाएँग.- सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदानप्रायद्वीपीय खंडहिमालय और अन्य अतिरिक्त-प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँकठोर एवं स्थिर प्रायद्वीपीय खंड के विपरीत हिमालय और अतिरिक्त-प्रायद्वीपीय पर्वतमालाओं की भूवैज्ञानिक संरचना तरूण, दुर्बल और लचीली है। ये पर्वत वर्तमान समय में भी बहिर्जनिक तथा अंतर्जनित बलों की अंत र्क्रियाओं से प्रभावित हैं। इसके परिणामस्वरूप इनमें वलन, भ्रंश और क्षेप जीतनेज बनते हैं। इन पर्वतों की उत्पत्ति विवर्तनिक हलचलों से जुड़ी हैं। तेज बहाव वाली नदियों से अपरदित ये पर्वत अभी भी युवा अवस्था में हैं। गॉर्ज, ट-आकार घाटियाँ, क्षिप्रिकाएँ व जल-प्रपात इत्यादि इसका प्रमाण हैं।सिंधु-गंगा-बह्मपुत्र मैदानभारत का तृतीय भूवैज्ञानिक खंड सिंधु, गंगा और बह्मपुत्र नदियों का मैदान है। मूलत: यह एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6-4 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादों से पाट रही हैं। इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है। ऊपरलिखित वृतांत से पता चलता है कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों की भूवैज्ञानिक संरचना में महत्वपूर्ण अंतर है। इसके कारण दूसरे पक्षों जैसे धरातल और भूआकृति पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है।भूआकृतिकिसी स्थान की भूआकॄति, उसकी संरचना, प्रक्रिया और विकास की अवस्था का परिणाम है। भारत में धरातलीय विभिन्नताएँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसके उत्तर में एक बड़े क्षेत्र में ऊबड़-खाबड़ स्थलाकॄति है। इसमें हिमालय पर्वत श्रृंखलाएँ हैं, जिसमें अनेकों चोटियाँ, सुंदर घाटियाँ व महाखड्‌ड हैं। दक्षिण भारत एक स्थिर परंतु कटा-फटा पठार है जहाँ अपरदित चट्टान खंड और कगारों की भरमार है। इन दोनों के बीच उत्तर भारत का विशाल मैदान है। मोटे तौर पर भारत को निम्नलिखित भूआकॄतिक खंडों में बाँटा जा सकता है।1- उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला2- उत्तरी भारत का मैदान3- प्रायद्वीपीय पठार4- भारतीय मरुस्थल5- तटीय मैदान6- द्वीप समूहउत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमालाउत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला में हिमालय पर्वत और उत्तरी-पूर्वी पहाड़ियाँ शामिल हैं। हिमालय में कई समानांतर श्रृंखलाएँ है जिसमें बहृत हिमालय, पार हिमालय श्रृंखलाएँ, मध्य हिमालय और शिवालिक प्रमुख श्रेणियाँ हैं। भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग में हिमालय की ये श्रेणियाँ उत्तर-पश्चिम दिशा से दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर फैली हैं। दार्जलिंग और सिक्किम क्षेत्रों में ये श्रेणियाँ पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हैं जबकि अरुणाचल प्रदेश में ये दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पश्चिम की ओर घूम जाती हैं। मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर में ये पहाड़ियाँ उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली हैं।बृहत हिमालय श्रृंखला, जिसे केंद्रीय अक्षीय श्रेणी भी कहा जाता है, की पूर्व-पश्चिम लंबाई लगभग 2,500 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण इसकी चौड़ाई 160 से 400 किलोमीटर है। जैसाकि मानचित्र से स्पष्ट है हिमालय, भारतीय उपमहाद्वीप तथा मध्य एवं पूर्वी एशिया के देशों के बीच एक मजबूत लंबी दीवार के रूप में खड़ा है। हिमालय पर्वतमाला में भी अनेक क्षेत्रीय विभिन्नताएँ हैं। उच्चावच, पर्वत श्रेणियों के सरेखण और दूसरी भूआकॄतियों के आधार पर हिमालय को निम्नलिखित उपखंडों में विभाजित किया जा सकता है।1- कश्मीर या उत्तरी-पश्चिमी हिमालय2- हिमाचल और उत्तरांचल हिमालय3- दा र्जलिंग और सिक्किम हिमालय4- अरुणाचल हिमालय5- पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वतकश्मीर हिमालय में अनेक पर्वत श्रेणियाँ हैं, जैसे – कराकोरम, लद्दाख, जास्कर और पीरपंजाल। कश्मीर हिमालय का उत्तरी-पूर्वी भाग, जो बृहत हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के बीच स्थित है, एक ठंडा मरुस्थल है। बृहत हिमालय और पीरपंजाल के बीच विश्व प्रसिद्ध कश्मीर घाटी और डल झील हैं। दक्षिण एशिया की महत्वपूर्ण हिमानी नदियाँ बलटोरो और सियाचिन इसी प्रदेश में हैं। कश्मीर हिमालय करेवा के लिए भी प्रसिद्ध है, जहाँ जाफरान की खेती की जाती है। बृहत हिमालय में जोजीला, पीर पंजाल में बानिहाल, जास्कर श्रेणी में फोटुला और लद्दाख श्रेणी में खदुर्गंला जैसे महत्वपूर्ण दर्रे स्थित हैं। महत्वपूर्ण अलवणजल की झीलें, जैसे- डल और वुलर तथा लवणजल झीलें, जैसे- पाँगाँग सो और सोमुरीरी भी इसी क्षेत्र में पाई जाती हैं। सिंधु तथा इसकी सहायक नदियाँ, झेलम और चेनाब, इस क्षेत्र को अपवाहित करती हैं। कश्मीर और उत्तर-पश्चिमी हिमालय विलक्षण सौंदर्य और खूबसूरत दृश्य स्थलोंplz mark my answer as brain listist


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