1.

बहु-उद्देशीय नदी-घाटी योजना सिंचाई के पारम्परिक साधनों से किस प्रकार अच्छी है ? भारत के विभिन्न क्षेत्रों से उदाहरण दीजिए।

Answer»

सिंचाई के पारम्परिक साधन नहरें, कुएँ, नलकूप और तालाब हैं। देश में सिंचाई के विकास के लिए अनेक सिंचाई परियोजनाएँ विकसित की गयी हैं, जिनसे बड़ी, मध्यम तथा लघु योजनाएँ मुख्य हैं। सिंचाई की बड़ी तथा मध्यम परियोजनाओं के अन्तर्गत देश की अनेक नदियों से नहरें निकाली गयी हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि उत्तरी राज्यों को इनसे सिंचाई की सुविधा सुलभ हुई है। दक्षिणी भारत में भी महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों से डेल्टाई क्षेत्रों में नहरें निकालकर ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में सिंचाई की व्यवस्था की गयी है, किन्तु सिंचाई के लिए पारम्परिक नहरी सिंचाई परियोजनाओं की अपेक्षा बहु-उद्देशीय नदी-घाटी परियोजनाएँ अधिक श्रेष्ठ हैं, क्योंकि इनसे नहरी सिंचाई के अतिरिक्त निम्नलिखित अनेक लाभ प्राप्त होते हैं

1. बाढ़-नियन्त्रण एवं मृदा-संरक्षण- नदियों पर बाँध बनाकर जल-प्रवाह की तीव्रता को नियन्त्रित कर लिया जाता है, जिससे मृदा का संरक्षण होने के साथ-साथ बाढ़-नियन्त्रण भी सम्भव होता है।

2. सिंचाई सुविधाओं का विस्तार- नदियों पर बाँधों के पीछे बड़ी-बड़ी झीलें बनायी जाती हैं, जिनमें वर्षा का जल एकत्र हो जाता है। इस जल का प्रयोग शुष्क ऋतु में नहरों द्वारा सिंचाई के लिए किया जाता है।

3. जल-विद्युत का उत्पादन- बाँधों द्वारा संचित किये गये जल को ऊँचाई से गिराया जाता है, जिससे जल-विद्युत का उत्पादन होता है। जल-विद्युत ऊर्जा प्राप्ति का स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त साधन है।

4. औद्योगिक विकास- इन परियोजनाओं से उद्योगों को सस्ती जल-विद्युत प्राप्त हो जाती है, साथ ही आवश्यक जल की आपूर्ति भी बनी रहती है।

5. जल-परिवहन सुविधा- इन परियोजनाओं के अन्तर्गत नदियों तथा नहरों में अन्त:स्थलीय जल-परिवहन की सुविधा भी सुलभ हो जाती है। भारी वस्तुओं के परिवहन के लिए यह सबसे सस्ता साधन है।

6. मत्स्य उद्योग का विकास- बाँधों के पीछे बने जलाशयों में मछलियों के बीज तैयार किये जाते हैं। तथा कुछ विशेष किस्म की मछलियों को भी पाला जाता है।

7. वन्य भूमि का विस्तार- बाँधों के जलग्रहण क्षेत्र में योजनाबद्ध तरीके से वृक्षारोपण किया जाता है, जिससे न केवल वन्य क्षेत्र का विस्तार होता है, वरन् मृदा अपरदन पर भी रोक लगती है।

8. सूखा-अकाल से मुक्ति- भारतीय जलवायु की मानसूनी प्रवृत्ति के कारण अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि होने से अकाल पड़ना सामान्य बात है। बहु-उद्देशीय परियोजनाओं के अन्तर्गत जलमग्न क्षेत्रों के अतिरिक्त जल को सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भेजकर अकाल की स्थिति से बचने का प्रयास किया जा सकता है।



Discussion

No Comment Found

Related InterviewSolutions