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| 1. | भूकम्प से आप क्या समझते हैं? भूकम्प के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए। भूकम्प से होने वाली क्षति से बचाव के उपायों का भी उल्लेख कीजिए। | 
| Answer» भूकम्प : एक प्राकृतिक आपदा भूकम्प भूतलकी आन्तरिक शक्तियों में से एक है। भूगर्भ में प्रतिदिन कम्पन होते हैं। जब ये कम्पन तीव्र होते हैं तो ये भूकम्प कहलाते हैं। भूकम्प मूल एवं भूकम्प केन्द्र- भूगर्भ में भूकम्पीय लहरें चलती रहती हैं। जिस स्थान से इन लहरों का प्रारम्भ होता है, उसे भूकम्प मूल कहते हैं। जिस स्थान पर भूकम्पीय लहरों का अनुभव सर्वप्रथम किया जाता है, उसे अभिकेन्द्र या भूकम्प केन्द्र कहते हैं। (भूकम्प की तीव्रता की माप के लिए रिक्टर स्केल’ का निर्धारण किया गया है।) (Causes of Earthquake) 1. ज्वालामुखी उद्गार- जब विवर्तनिक हलचलों के कारण भूगर्भ में गैसयुक्त द्रवित लावा भूपटल की ओर प्रवाहित होती है तो उसके दबाव से भू-पटल की शैलें हिल उठती हैं। यदि लावा के मार्ग में कोई भारी चट्टान आ जाए तो प्रवाहशील लावा उस चट्टानं को वेग से ढकेलता है, जिससे भूकम्प आ जाता है। 2. भू-असन्तुलन में अव्यवस्था- भू-पटल पर विभिन्न बल समतल समायोजन में लगे रहते हैं जिससे भूगर्भ की सियाल एवं सिमा की परतों में परिवर्तन होते रहते हैं। यदि ये परिवर्तन एकाएक तथा तीव्र हो जाएँ तो पृथ्वी का कम्पन प्रारम्भ हो जाता है तथा उस क्षेत्र में भूकम्प के झटके आने प्रारम्भ हो जाते हैं। 3. जलीय भार- मानव द्वारा निर्मित जलाशय, झील अथवा तालाब के धरातल के नीचे की चट्टा के भार एवं दबाव के कारण अचानंक़ परिवर्तन आ जाते हैं तथा इनके कारण ही भूकम्प आ जाता है। 1967 ई० में कोयना भूकम्प (महाराष्ट्र) कोयना जलाशय में जले भर जाने के कारण ही आया था। 4. भू-पटल में सिकुड़न– विकिरण के माध्यम से भूगर्भ की गर्मी धीरे-धीरे कम होती रहती है। जिसके कारण पृथ्वी की ऊपरी पपड़ी मैं सिकुड़न आती है। यह सिकुड़न पर्वत निर्माणकारी क्रिया को जन्म देती है। जब यह प्रक्रिया तीव्रता से होती है, तो भू-पटल पर कम्पन प्रारम्भ हो जाता है। 5. प्लेट विवर्तनिकी- महाद्वीप तथा महासागरीय बेसिन विशालकाय दृढ़ भूखण्डों से बने हैं, जिन्हें प्लेट कहते हैं। सभी प्लेटें विभिन्न गति से सरकती रहती हैं। कभी-कभी दो प्लेटें परस्पर टकराती हैं तब भूकम्प आते हैं। 26 जनवरी, 2001 को गुजरात के भुज क्षेत्र में उत्पन्न भूकम्प की उत्पत्ति का कारण प्लेटों का टकरा जाना ही था। भूकम्प से भवन-सम्पत्ति की क्षति का बचाव भूकम्प अपने आप में किसी प्रकार से नुकसान नहीं पहुँचाता, परन्तु भूकम्प के प्रभाव से हमारे भवन एवं इमारतें टूटने लगती हैं तथा उनके गिरने से जान-माल की अत्यधिक हानि होती है। अतः भूकम्प से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए भवन-निर्माण में ही कुछ सावधानियाँ अपनायी जानी चाहिए तथा आवश्यक उपाय किये जाने चाहिए। | 1. भवनों की आकृति- भवन का नक्शा साधारणतया आयताकार होना चाहिए। लम्बी दीवारों को सहारा देने के लिए ईंट-पत्थर या कंक्रीट के कॉलम होने चाहिए। जहाँ तक हो सके T, LL, U और X आकार के नक्शों वाले बड़े भवनों को उपयुक्त स्थानों पर अलग-अलग खण्डों में बाँटकर। आयताकार खण्ड बना लेना चाहिए। खण्डों के बीच खास अन्तर से चौड़ी जगह छोड़ दी जानी चाहिए ताकि भूकम्प के समय भवन हिल-डुल सके और क्षति न हो। 2. नींव- जहाँ आधार भूमि में विभिन्न प्रकार की अथवा नरम मिट्टी हो वहीं नींव में कॉलमों को भिन्न-भिन्न व्यवस्था में स्थापित करना चाहिए। ठण्डे देशों में मिट्टी में आधार की गहराई जमाव-बिन्दु क्षेत्र के काफी नीचे तक होनी चाहिए, जबकि चिकनी मिट्टी में यह गहराई दरार के सिकुड़ने के स्तर से नीचे तक होनी चाहिए। ठोस मिट्टी वाली परिस्थितियों में किसी भी प्रकार के आधार का प्रयोग कर सकते हैं। चूने या सीमेण्ट के कंक्रीट से बना इसका ठोस आधार होना चाहिए। 3. दीवारों में खुले स्थान- दीवारों में दरवाजों और खिड़कियों की बहुलता के कारण, उनकी भार-रोधक क्षमता कम हो जाती है। अत: ये कम संख्या में तथा दीवारों के बीचोंबीच स्थित होने चाहिए। 4. कंक्रीट से बने बैंडों का प्रयोग- भूकम्प संवेदनशील क्षेत्रों में, दीवारों को मजबूती प्रदान करने तथा उनकी कमजोर जगहों पर समतल रूप से मुड़ने की क्षमता को बढ़ाने के लिए कंक्रीट के मजबूत बैंड बनाए जाने चाहिए जो स्थिर विभाजक दीवारों सहित सभी बाह्य तथा आन्तरिक दीवारों पर लगातार काम करते रहते हैं। इन बैंडों में प्लिन्थ बैंड, लिटल बैंड, रूफ बैंड तथा गेबल बैंड आदि सम्मिलित हैं। 5. वर्टिकल रीइन्फोर्समेंट- दीवारों के कोनों और जोड़ों में वर्टिकल स्टील लगाया जाना चाहिए। भूकम्पीय क्षेत्रों, खिड़कियों तथा दरवाजों की चौखट में भी वर्टिकल रीइन्फोर्समेंट की व्यवस्था की जानी चाहिए। | |