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भूकम्प विज्ञान से पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में क्या जानकारी मिलती है ?याभूकम्पीय लहरों से पृथ्वी की आन्तरिक संरचना पर क्या प्रकाश पड़ा है? |
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Answer» भूकम्प विज्ञान (Seismology) में भूकम्प की तरंगों का अध्ययन किया जाता है। इन तरंगों के अध्ययन से पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई है। ध्वनि तरंगों के समान ही भूकम्पीय तरंगें ठोस पदार्थ के भीतर तीव्र गति से चलती हैं एवं तरल माध्यम से गुजरते हुए उनकी गति कम हो जाती है। गौण तरंगें (S-waves) तरल पदार्थ को बिल्कुल पार नहीं कर पातीं। यदि भूगर्भ की रचना सर्वत्र समान पदार्थ से होती तो भूकम्प की तरंगों के पथ में भिन्नता न होती। भूगर्भ में जहाँ कहीं भी दो भिन्न घनत्व के स्तर मिलते हैं, वहाँ इन तरंगों में अपवर्तन (Refraction) तथा परावर्तन (Reflection) हो जाता है। भूकम्पीय तरंगों के अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में तरंगों की गति गहराई के अनुसार बढ़ती है। भूपटल से लगभग 2,900 किमी की गहराई तक लहरों की गति लगातार बढ़ती है, इसके आगे एकाएक परिवर्तन होते हैं। आड़ी तरंगें (S-waves) यहाँ पहुँचकर समाप्त हो जाती ‘, हैं। आड़ी तरंगें द्रव पदार्थ में प्रवेश नहीं कर पाती हैं; अतः यह अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी को केन्द्रीय पिण्ड तरल अवस्था में है। प्रधान तरंगें (P-waves) पृथ्वी के केन्द्र तक पहुँचती हैं, किन्तु केन्द्रीय पिण्ड में ये कम वेग से तथा मुड़कर चलती हैं। धरातलीय तरंगें (L-waves) महाद्वीपों की अपेक्षा सागरीय तल के नीचे तेजी से चलती हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि महासागरीय तल भारी या सघन पदार्थों से निर्मित है। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर विद्वानों ने दो निष्कर्ष निकाले-(1) 2,900 किमी से अधिक गहराई पर भूगर्भ की रचना अधिक सघन पदार्थ से हुई है। S-तरंगों के स्वभाव के आधार पर अन्तरतम (Core) अधिक सघन किन्तु लचीली व तरल शैलों से निर्मित है। (2) अन्तरतम (Core) में केवल P-तरंगें ही प्रवेश कर पाती हैं, s-तरंगें प्रविष्ट नहीं होतीं; अत: मध्यवर्ती लौह-अन्तरतम तरल होना चाहिए। भूकम्प विज्ञान के आधार पर पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा गया है 1. ऊपरी परत- यह पृथ्वी का सबसे बाह्य ठोस भाग है। इसकी औसत मोटाई 33 किमी है। इसको निर्माण परतदार व ग्रेनाइट चट्टानों से हुआ है। इस भाग की चट्टानों का औसत घनत्व 2.7 है। यही :- कारण है कि ऊपरी परत में इन लहरों की गति अति मन्द होती है। |
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