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‘बिछुड़न के समय बड़ा करुणोत्पादक होता है।’ समझाइए।

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बिछुड़न के समय मनुष्य निर्मल, पवित्र और बड़ा कोमल हो जाता है। यह समय ऐसा होता है, कि आपसे घृणा-नफरत करनेवाले भी प्रेम करने लगते हैं। इसे बालमुकुन्द गुप्त ने लॉर्ड कर्जन के विदाई-संभाषण में व्यक्त किया है। भारतीय प्रजा लॉर्ड कर्जन के आगमन से खुश नहीं थी। उसकी इच्छा थी कि वह कब चले जायें। लॉर्ड कर्जन ने भी भारतीय निवासियों को दुख देने में कुछ भी कमी नहीं की।

उनकी एक नहीं सुनी थी। परंतु लॉर्ड कर्जन ने जब इस्तीफा दे दिया तो वे यहाँ से जाने लगे, तब यहाँ के लोग दुःखी हो गये। लेखक ने स्पष्ट किया है कि हमारी संस्कृति कृतज्ञता की संस्कृति है। मनुष्य तो छोड़ो यहाँ के पशु-पक्षियों में भी यह भाव है। और इसे स्पष्ट करने के लिए शिवशंभु के दो बैलों की कथा सुनाते हैं। जिसमें बलशाली बैल दुर्बल बैल को गिरा देता है।

वह दुःखी है, परंतु बलशाली बैल को पुरोहित को दे देने पर दुर्बल बैल दुखी हो जाता है। वह उस दिन चारे का तिनका भी नहीं छूता है। अर्थात् हमारी संस्कृति में है कि बिछुड़न के समय यहाँ पशु-पक्षी भी सब कुछ भूलकर निर्मल, पवित्र और कोमल होकर दाखी हो जाते हैं। इसी प्रकार लॉर्ड कर्जन ने इस देश के निवासियों को दुःख, पीड़ा, परेशानियाँ ही दी। परंतु वही प्रजा लॉर्ड कर्जन के जाने पर दुःखी हो जाती है। इस प्रकार बिछुड़न का समय बड़ा करुणोत्पादक होता है।



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