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बिहारी के श्रृंगार रस के दोहों की विशेषता पाठ्यपुस्तक में संकलित दोहों के आधार पर बताइए।

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शृंगार रस के दो दोहों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाये।
सौंह करै भौंहनु हसै, दैन कहै नटि जाय।।

इस दोहे में नायिका या गोपी द्वारा श्रीकृष्ण से बाते करने के लालच से उनकी मुरली छिपा दी है। स्पष्ट है कि नायिका श्रीकृष्ण से प्रेम करती है। दोहा इस प्रेम व्यापार को बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत कर रहा है। यहाँ श्रृंगार रस के आलम्बन श्रीकृष्ण हैं। नायिका की प्रेममयी चेष्टाएँ अनुभाव है। सौगंध खाना, होंठों से हँसना, माँगने पर मुकर जाना आदि ऐसी ही चेष्टाएँ हैं। अतः कवि ने संयोग शृंगार । रस के सभी अंगों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करके श्रृंगार रस वर्णन में अपनी कुशलता का परिचय दिया है।

(2) कागद पर लिखत न बनत, कहत संदेसु लजात।
कहि हैं सब तेरौ हियौ, मेरे हिय की बाते ।।

इस दोहे में नायिका अपने हृदय का प्रेम नायक पर व्यक्त करना चाहती है। अपनी बात वह कागज पर लिख पाने में असमर्थ है। और मुँह से कहने में उसे लज्जा आ रही है। अत: वह सोच कर मन को धीरज बँधा रही है कि यदि नायक उस से सच्चा प्रेम करता है तो उसके मन की बात को वह अपने मन में अवश्य अनुभव कर लेगी। सच्चे प्रेमभाव को लेख या वाणी से प्रकट करने की आवश्यकता नहीं होती। उसे तो दोनों पक्ष सहज ही अपने हृदयों में अनुभव कर लिया करते हैं। नायिका की सरल हृदयता ही इसे प्रेम-प्रसंग की विशेषता है।



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