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चेक का अर्थ, व्याख्या और लक्षणों की संक्षेप में चर्चा कीजिए ।

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आज चैक के द्वारा रकम का लेन-देन भारतीय उद्योग-धंधे में भी एक सामान्य बात गिनी जाती है । परंतु यह विकास मुश्किल से अंतिम पच्चीस वर्षों का कहलायेगा । इसके पहले चैक के द्वारा द्रव्य के लेन-देन का प्रमाण देश में खूब कम था । परंतु इंग्लैण्ड, अमेरिका और युरोप, के विकसित देशों में चैक ही मुख्य साधन था । सौदा पूर्ण करने का यह एक महत्त्वपूर्ण स्थान बन गया था । इसका कारण स्पष्ट है – एक तो चैक के द्वारा पैसा चुकाने से इसके बारे में हिसाब रखने की आवश्यकता नहीं रहती, बैंक ही चैक के द्वारा हुए लेन-देनों का हिसाब रखते हैं । इतना ही नहीं, परंतु बैंक की नोंध कोर्ट में साक्षी के रूप में भी चल सकती है । निगोशियेबल इन्स्ट्रमेन्ट एक्ट की कलम 6 में “चैक” की व्याख्या निम्न अनुसार दी गई है :

“चैक एक विनिमय है, जो निश्चित बैंकर पर लिखा हुआ है और जो माँग होने पर तुरंत चुकाया जाता है तथा अन्य रूप से यह चुकाने के पात्र नहीं है ।”

लक्षण : इस व्याख्या से स्पष्ट होता है कि चैक एक प्रकार का विनिमयपत्र है । अर्थात् उसमें विनिमयपत्र के सभी लक्षण तो होने ही चाहिए । जैसे –

  1. यह लिखित होना चाहिए ।
  2. इस पर लिखनेवाले की सही होनी चाहिए ।
  3. इसमें किसी निश्चित बैंकर या शर्राफ पर आदेश होना चाहिए ।
  4. यह आदेश बिनशरती होना चाहिए ।
  5. इसमें निश्चित रकम चुकाने का आदेश होना चाहिए ।
  6. इस आदेश के अनुसार द्रव्य अमुक निश्चित व्यक्ति को अथवा वह आदेश करे उसे अथवा खतपत्र धारण करनेवाले को – बैंकर को चुकाना होना चाहिए ।
    इसके उपरांत चैक के अतिरिक्त लक्षण निम्नानुसार हैं :
  7. यह हमेशा माँग होने पर चुकाने के पात्र (Payable on demand) होता है । अन्य प्रकार से इसमें द्रव्य चुकाने को कहा नहीं जा सकता ।
  8. जिस व्यक्ति पर चैक लिखा जाये वह शर्राफ (banker) ही हो सकता है । अन्य व्यक्ति पर चैक नहीं लिखा जा सकता ।


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