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चिन्तन के सन्दर्भ में प्रत्यय और प्रतिमा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

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चिन्तंन की प्रक्रिया में प्रत्यय (Concept) तथा प्रतिमा (Image) का विशेष महत्त्व होता है। प्रत्यय को चिन्तन की पहली प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है। ये प्रक्रियाएँ पृथक्-पृथक् लगने वाली वस्तुओं, अनुभवों, घटनाओं तथा परिस्थितियों के बीच समानताओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रत्यय चिन्तन से उत्पन्न होकर पुनः चिन्तन की प्रक्रिया को क्रियाशील बनाते हैं। प्रतिमाएँ व्यक्ति के भूतकालीन अनुभवों तथा स्मृतियों द्वारा बनती हैं।
स्पर्श, गन्ध, स्वाद तथा श्रवण इत्यादि की प्रतिमाएँ बनती हैं जो धूमिल होती हैं। ये चिन्तन में सहायक हैं, किन्तु अधिक नहीं। इनकी जगह प्रतीक से काम लिया जाता है। प्रत्यय मानसिक, अमूर्त (Abstract) तथा सामान्य होता है किन्तु प्रतिमा मूर्त तथा विशिष्ट होती है। चिन्तन की प्रक्रिया में प्रतिमा के बिना तो काम चल सकता है, किन्तु प्रत्यय के बिना नहीं। प्रत्यय, चिन्तन का अनिवार्य यन्त्र होता है।प्रत्यय तथा प्रतिमा के अन्तर को अग्रलिखित रूप से भी प्रस्तुत किया जा सकता है ।

⦁     समस्त प्रत्यय सदैव अमूर्त तथा सामान्य होते हैं तथा इनसे भिन्न प्रतिमाएँ सदैव मूर्त तथा विशेष होती हैं। |

⦁    प्रत्ययों के अभाव में चिन्तन की प्रक्रिया सम्पन्न नहीं हो सकती, परन्तु प्रतिमाओं के अभाव में चिन्तन की प्रक्रिया सम्पन्न हो सकती है।

⦁    कोई एक प्रत्यय एक से अधिक वस्तुओं का प्रतिनिधित्व कर सकता है, परन्तु एक प्रतिमा का सम्बन्ध केवल एक ही वस्तु से होता है।

⦁    प्रत्ययों का विकास एक दीर्घकालिक प्रक्रिया के माध्यम से होता है, जबकि प्रतिमा का विकास सरल प्रक्रिया द्वारा होता है।

⦁    प्रत्यय के निर्माण की प्रक्रिया जटिल होती है, जबकि प्रतिमा के निर्माण की प्रक्रिया अपेक्षाकृत रूप से सरल होती है।



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