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चिन्तन (Thinking) से आप क्या समझते हैं ? अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। चिन्तन के विषयक में स्पीयरमैन द्वारा प्रतिपादित नियमों का भी उल्लेख कीजिए। चिन्तन से आप क्या समझते हैं?याचिन्तन का स्वरूप स्पष्ट कीजिए। याचिन्तन को परिभाषित कीजिए। 

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जीवन के विकास क्रम में मनुष्य की सर्वोच्च स्थिति (पशुओं की तुलना में) बुद्धि, विवेक एवं चिन्तन जैसी उच्च मानसिक क्रियाओं के कारण है। पशु किसी चीज को देखकर उसका प्रत्यक्षीकरण कर पाते हैं, किन्तु मनुष्य उस वस्तु के अभाव में न केवल उसका प्रत्यक्षीकरण कर लेते हैं अपितु उसके विषय में पर्याप्त रूप से सोच-विचार भी सकते हैं। यह सोच-विचार या चिन्तन (Thinking) मनुष्य का ऐसा स्वाभाविक गुण है जिसकी बढ़ती हुई प्रबलता उसे अधिक-से-अधिक श्रेष्ठता की ओर उन्मुख करती है।

चिन्तन का अर्थ

कल्पना एवं प्रत्यक्षीकरण के समान ही चिन्तन भी एक महत्त्वपूर्ण ज्ञानात्मक मानसिक प्रक्रिया है। जो वस्तुओं के प्रतीकों (Symbols) के माध्यम से चलती है। इस आन्तरिक प्रक्रिया में प्रत्यक्षीकरण एवं कल्पना दोनों का ही मिश्रण पाया जाता है। मनुष्य अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों का सामना करता है। कुछ परिस्थितियाँ सुखकारी होती हैं तो कुछ दु:खकारी। दुःखकारी परिस्थितियाँ समस्या पैदा करती हैं और उनका समाधान खोजने के लिए सर्वप्रथम मनुष्य विभिन्न मानसिक प्रयास करता है। दूसरे शब्दों में, शारीरिक रूप से प्रचेष्ट होने से पहले वह उस समस्या का समाधान अपने मस्तिष्क में खोजता है। इसके लिए मस्तिष्क उस समस्या के विभिन्न पक्षों का विश्लेषण प्रस्तुत कर सम्बन्धित विचारों की एक श्रृंखला विकसित करता है। समुद्र की लहरों के समान एक के बाद एक विचार उठते हैं जिनके बीच से समस्या का सम्भावित समाधान प्रकट होता है। समस्या का समाधान मिलते ही चिन्तन की मानसिक प्रक्रिया रुक जाती है। अतएव चिन्तन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत कोई मनुष्य किसी समस्या का समाधान खोजता है।

चिन्तन की परिभाषा

मनोवैज्ञानिकों ने चिन्तन को निम्न प्रकार परिभाषित किया है

⦁    जे०एस०रॉस के अनुसार, “चिन्तन ज्ञानात्मक रूप में एक मानसिक प्रक्रिया है।

⦁    वुडवर्थ के शब्दों में, “किसी बाधा पर विजय प्राप्त करने का तरीका चिन्तन कहलाता है।”

⦁    बी०एन० झा के मतानुसार, “चिन्तन एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसमें मन किसी विचार की गति को प्रयोजनात्मक रूप में नियन्त्रित एवं नियमित करता है।”
⦁    रायबर्न के अनुसार, “चिन्तने ईच्छा सम्बन्धी वह प्रक्रिया है, जो असन्तोष के फलस्वरुप उत्पन्न होती है और प्रयास एवं त्रुटि के आधार पर उक्त इच्छा की सन्तुष्टि करती है।”
⦁    वारेन के अनुसार, “चिन्तन एक विचारात्मक प्रक्रिया है, जिसका स्वरूप प्रतीकात्मक होता है। इसका प्रारम्भ व्यक्ति के समक्ष उपस्थित किसी समस्या अथवा क्रिया से होता है। इसमें प्रयास-मूल की क्रियाएँ निहित रहती है, किन्तु समस्या के प्रत्यक्ष प्रभाव से प्रभावित होकर चिन्तन प्रक्रिया अन्तिम रूप से समस्या समाधान की ओर उन्मुख होती है।”
⦁    जॉनड्यूवी के अनुसार, “चिन्तन किसी विश्वास या अनुमानित ज्ञान का उसके आधारों एवं निष्कर्षों के माध्यम से सक्रिय सतत् तथा सतर्कतापूर्वक विचार करने की प्रक्रिया होती है।

चिन्तन का स्वरूप

चिन्तन में व्यक्ति किन्हीं समस्याओं का हल अपने मस्तिष्क में खोजता है; अतएव वुडवर्थ नामक मनोवैज्ञानिक ने चिन्तन को मानसिक खोज (Mental Exploration) का नाम दिया है। हल खोजने की इस क्रियात्मक प्रक्रिया में प्रयास एवं भूल विधि के अन्तर्गत मन में कई प्रकार के विचार जन्म लेते हैं जिनमें से सर्वाधिक उपयुक्त विचार छाँटकर ग्रहण कर लिया जाता है। चिन्तन को प्रतीकात्मक व्यवहार (Symbolic Behaviour) इसलिए कहा जा सकता है, क्योकि यह प्रतीकों के प्रति प्रतिक्रिया है न कि प्रत्यक्ष वस्तु के प्रति। वस्तुओं का प्रत्यक्ष रूप से अभाव होने पर भी उनकी स्मृति/प्रतीक की उपस्थिति में चिन्तन का जन्म सम्भव है। इस दृष्टि से चिन्तन में अमूर्तकरण का भी सहयोग रहता है। चिन्तन प्रतीकों के मानसिक समायोजन (या प्रहस्तन) की क्रिया है जिसमें विचारों के विश्लेषण के साथ-साथ उनका संश्लेषण भी उपयोगी है। चिन्तन के दौरान व्यक्ति के मन में उपस्थित विचार क्रमबद्ध रूप से निहित रहते हैं तथा उन विचारों में एक तारतम्य एवं सम्बन्ध पाया जाता है। जैसे ही व्यक्ति के सम्मुख कोई समस्या उपस्थित होती है, चिन्तन का यह स्वरूप क्रियाशील हो जाता है। तथा विचार सम्बन्धी मानसिक प्रहस्तन के द्वारा व्यक्ति उपयुक्त हल खोज लेता है।

चिन्तन के विषय में स्पीयरमैन के नियम 

चिन्तन की जटिल प्रक्रिया में विश्लेषण और संश्लेषण और इस प्रकार पृथक्करण और संगठन ये दोनों प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं। संश्लेषणात्मक दृष्टि से ज्ञान का संगठन होता है जिसका आधार स्मृति एवं कल्पनाएँ हैं। विश्लेषणात्मक दृष्टि से कल्पनाओं का आधार पृथक्करण है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्पीयरमैन द्वारा प्रतिपादित पृथक्करण सम्बन्धी नियमों का अध्ययन, चिन्तन की व्याख्या में महत्त्वपूर्ण माना जाता है। स्पीयरमैन द्वारा पृथक्करण के दो मुख्य नियम बताये गये हैं
(I) सम्बन्धों का पृथक्करण तथा
(II) सह-सम्बन्धों का पृथक्करण।

(I) सम्बन्धों का पृथक्करण

सम्बन्धों का पृथक्करण चिन्तन के विषय में स्पीयरमैन द्वारा प्रतिपादित पहला नियम है। यह नियम बताता है कि चिन्तन की प्रक्रिया में जब किसी व्यक्ति के सामने कुछ वस्तुएँ रखी जाती हैं तो वह उनके बीच सम्बन्धों की खोज कर लेता है। इन सम्बन्धों का आधार आकार, निकटता व दूरी आदि होते हैं। ये सम्बन्ध ‘वास्तविक सम्बन्ध हैं।

वास्तविक सम्बन्ध–प्रमुख वास्तविक सम्बन्धों के आधार निम्नलिखित हैं

(1) गुण– प्रत्येक वस्तु का अपना एक विशेष गुण होता है और इस गुण के साथ ही वस्तु का वास्तविक सम्बन्ध बोध होता है। नींबू खट्टा होता है। खट्टापन नींबू का विशेष गुण है तथा नींबू व खट्टेपन में एक ऐसा वास्तविक सम्बन्ध है जिसे किसी भी दशा में पृथक् नहीं किया जा सकता।

(2) कालगत सम्बन्ध- कालगत सम्बन्ध वस्तुओं के बीच समय का वास्तविक सम्बन्ध है। राम प्रतिदिन 9.30 बजे प्रात: स्कूल के लिए रवाना होता है। 9.30 बजते ही उसके मन में चलने का विचार आ जाता है। यह 9.30 बजे तथा स्कूल चलने का कालगत सम्बन्ध है।

(3) स्थानगत सम्बन्ध- कुछ वस्तुएँ एक ही स्थान पर साथ-साथ पायी जाती हैं। उदाहरणार्थ-फाउण्टेन पेन और उसका ढक्कन एक ही जगह साथ-साथ मिलते हैं। अब जब वस्तुएँ स्थान के आधार पर सम्बन्धित हों तो यह विशेष सम्बन्ध होता हैं।

(4) कार्य-कारण सम्बन्ध– प्रत्येक क्रिया किसी-न-किसी कारणवश होती है। यदि वर्षा हो रही है तो आसमान में बादल अवश्य होंगे। बादल वर्षा का कारण है। इस भॉति किसी घटना को उसके कारण-विशेष से वास्तविक सम्बन्ध कार्य कारण सम्बन्ध कहलाएगा।

(5) वस्तुगत सम्बन्ध– हिमालय की ऊँची चोटियों पर चाँदी जैसी बर्फ चमक रही है। यहाँ पहाड़ की चोटी तथा बर्फ में वस्तुगत वास्तविक सम्बन्ध बोध होता है। |

(6) निर्माणात्मक सम्बन्ध- किसी भी वस्तु का निर्माण अन्य सहायक सामग्रियों द्वारा होता है। इस प्रकार निर्माणक एवं निर्मित वस्तु के मध्ये एक अभिन्न तथा वास्तविक सम्बन्ध पाया जाता है। कुर्सी का लकड़ी से तथा घड़े का मिट्टी से वास्तविक सम्बन्ध है।

विचारात्मक सम्बन्ध–विचारात्मक सम्बन्ध हृदयगत एवं आन्तरिक होते हैं। इनके निम्नलिखित आधार हो सकते हैं
⦁    समानता—इसके अन्तर्गत विभिन्न वस्तुओं में गुणों की समानता के आधार पर चिन्तन का जन्म होता है।
⦁    समीपता-वस्तुओं के समीप रहने पर उनमें सम्बन्ध बोध होता है; जैसे–चाँद-तारा।
⦁    पूर्वपक्ष एवं निष्कर्ष-पूर्वपक्ष एवं निष्कर्ष के बीच विचारात्मक सम्बन्ध पाया जाता है। रात के समय कुत्ते के लगातार भौंकने का सम्बन्ध किसी अजनबी वस्तु या व्यक्ति की उपस्थिति से होता है। यहाँ कुत्ते का भौंकना पूर्वपक्ष है तथा अजनबी विषय-वस्तु की उपस्थिति का बोध निष्कर्ष है।

⦁    नियोजनात्मक सम्बन्ध-कुछ सम्बन्ध नियोजन के आधार पर होते हैं। बहन और भाई के मध्य नियोजनात्मक सम्बन्ध है।

(II) सह-सम्बन्धों का पृथक्करण
स्पीयरमैन के अनुसार, सह-सम्बन्धों के पृथक्करण की प्रक्रिया को सरल बनाने की दृष्टि से किसी शब्द को सम्बन्ध के संकेत के साथ उपस्थित किया जाना आवयश्यक है। उदाहरण के तौर पर–यदि कहें कि गाजर का रंग लाल है और मूली का रंग? तो उत्तर मिलेगा-सफेद। इसी प्रकार मिर्च तीखी है और चीनी? तो उत्तर होगा-मीठी। मिलने वाला उत्तर सह-सम्बन्धों के पृथक्करण पर आधारित होता है।



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