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देशी बैंकर्स कौन होते हैं? भारत में देशी बैंकरों के गुण व दोषों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। 

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देशी बैंकर्स से आशय

देशी बैंकर्स से आशय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में देशी बैंकर्स का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये बैंकर्स किसानों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। देशी बैंकर्स को भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंक जाँच समिति (1929) के अनुसार, “देशी बैंकर वह व्यक्ति या व्यक्तिगत फर्म है, जो जमाओं को स्वीकार करती है, हुण्डियों में व्यापार करती है अथवा ऋण देने का कार्य करती है।”

भारतीय बैंकिंग आयोग (1972) के अनुसार, “वे व्यक्ति अथवा फर्म, जो निक्षेप स्वीकार  करते हैं अथवा अपने व्यवसाय के लिए बैंक साख पर निर्भर करते हैं, संगठित मुद्रा बाजार से निकट का सम्बन्ध रखते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए अल्पकालीन साख-पत्रों की व्यवसाय करते हैं, ‘देशी बैंकर’ कहलाते हैं।”
देशी बैंकर्स के दोषदेशी बैंकर्स के दो दोष निम्नलिखित हैं-

⦁    बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।

⦁    ऋणियों का शोषण इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

देशी बैंकर्स के गुण देशी बैंकर्स के प्रमुख गुण निम्नलिखित होते हैं-

⦁    बिना जमानत के ऋण प्रदान करना ये किसानों, कारीगरों, व्यापारियों, आदि को व्यक्तिगत जमानत के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं। ये उन्हें अपने पास किसी वस्तु को धरोहर के रूप में रखने के लिए बाध्य नहीं करते हैं।

⦁    कार्य-प्रणाली सरल और लचीली इनकी कार्यप्रणाली सरल और लचीली होती है, जिससे अशिक्षित व्यक्ति भी इससे सरलतापूर्वक लेन-देन कर सकता है।

⦁    बीज, खाद व यन्त्र, आदि की सुविधा देना देशी बैंकर्स किसानों के लिए बीज, खाद व कृषि यन्त्रों, आदि को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाते हैं व उन्हें आवश्यक ऋण भी प्रदान करते हैं।

⦁    गोपनीयता इनके द्वारा किए गए लेन-देन को गोपनीय रखा जाता है।

⦁    अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना देशी बैंकर्स निर्धन, गरीब किसानों व कारीगरों को उनके सामाजिक उत्सवों; जैसे-विवाह, मुण्डन, श्राद्ध, मृत्यु भोज, आदि अनुत्पादक कार्यों के लिए भी ऋण प्रदान करते हैं।

⦁    कुटीर उद्योगों के लिए ऋण ये कुटीर उद्योगों; जैसे-मछलीपालन, मुर्गीपालन, आदि के लिए भी ऋण प्रदान करके इनके विकास में सहायक होते हैं।

⦁    किस्तों में भुगतान स्वीकार करना देशी बैंकर्स ऋण का भुगतान ऋणी की  सुविधानुसार सरल किस्तों में प्राप्त करते हैं।

⦁    माल का क्रय करना ये किसानों की फसल उचित मूल्य पर क्रय करके उन्हें मण्डी या बाजार में जाने की परेशानी से बचाते हैं।

⦁    घरेलू उद्योगों को पूँजी प्रदान करना ये घरेलू उद्योगों को चलाने हेतु ऋण प्रदान करते हैं

देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ देशी बैंकर्स के दोष/कमियाँ निम्नलिखित हैं

⦁    बैंकिंग सिद्धान्तों की उपेक्षा देशी बैंकर्स बैंकिंग सिद्धान्तों की अवहेलना करते हैं। ये बिना जमानत के ही ऋण प्रदान कर देते हैं।

⦁    ऊँची ब्याज दर इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक एवं चक्रवृद्धि ब्याज दर होती है, जिससे ऋणियों का शोषण होता है।

⦁    धोखापूर्ण कार्य-प्रणाली इस कार्य-पद्धति में धोखेबाजी की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि इसमें लेन-देन करने वाले सभी ग्राहक अशिक्षित होते हैं। देशी बैंकर्स ऋण देते समय अनुचित व्यवहार करते हैं।

⦁    दोषपूर्ण कार्य-प्रणाली यह प्रणाली शोषण एवं धोखेबाजी के कार्यों से भरपूर है। इसमें ऋण लेने वालों के साथ अनुचित व्यवहार किया जाता है।

⦁    पूँजी का अभाव इनके पास पर्याप्त पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिससे किसानों  को उनकी आवश्यकता के समय पर्याप्त मात्रा में ऋण उपलब्ध नहीं हो पाता है।

⦁    सामाजिक बुराइयों को बढ़ावा ये उपभोग कार्यों के लिए भी ऋण देते हैं, जिससे लोगों में अपव्ययिता व फिजूलखर्ची में वृद्धि होती है। अत: इससे सामाजिक बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है।

⦁    मजदूरी लेना ये किसानों व अन्य ऋणियों से विवाह आदि के अवसर पर मजदूरी या बेगार भी लेते हैं।

⦁    परिकल्पना अथवा सट्टे का कार्य करना इनके द्वारा सट्टे का कार्य करने से इनकी बैंकिंग कार्यक्षमता में कमी होती है।

⦁    खातों का अप्रकाशन देशी बैंकर्स खातों का नियमित रूप से अंकेक्षण नहीं करते हैं व खातों की सूचनाओं का प्रकाशन भी नहीं करते हैं, जिससे इनकी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है।

⦁    परम्परागत कार्य-प्रणाली देशी बैंकर्स द्वारा परम्परागत आधार पर कार्य किया जाता है, जिससे इनका निरीक्षण भी नहीं किया जा सकता है।

⦁    जमाओं को प्रोत्साहन प्रदान न करना ये लोगों की बचत को जमा कराने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं।

⦁    सरकारी अनियन्त्रण देशी बैंकर्स पर सरकारी नियन्त्रण नहीं होने के कारण ये मनमानी करते हैं।



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