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दहेज प्रथा पर निबंध लिखिए :

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दहेज और दायज शब्द समानार्थी हैं जिनका अर्थ विवाह के अवसर पर कन्या के संरक्षकों द्वारा वर पक्ष को दिये जानेवाली धनादि से लगाया जाता है। दहेज या दायज शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। परंतु संस्कृत में दायज शब्द देखने को अवश्य मिलता है। उपहार या दान विवाह में शिष्टाचार के रूप में वर को सामान्य उपहार आदि देना दहेज है। साधारणतया दहेज वह संपत्ति है जो एक व्यक्ति विवाह के अवसर पर कन्या पक्ष से प्राप्त करता है। सरल शब्दों में हम यह कह सकते है कि कन्या पक्षवाले वर पक्षवालों को जो संपत्ति आदि विवाह के अवसर पर देते हैं उसे ही दहेज का नाम दिया जाता है।

प्राचीन भारतीय ग्रंथों से यह संकेत मिलता है कि अति प्राचीनकाल में भारत में दहेज प्रथा का प्रचलन था। परंतु वह दहेज प्रथा आधुनिक युग की दहेज प्रथा से भिन्न थी। प्राचीन भारतीय समाज में दहेज प्रथा के पीछे लालच एवं सौदेबाजी की भावना नहीं थी।

आजकल दहेज की कुप्रथा भारतीय समाज के ऊपर एक लांछन है। यह हमारी संस्कृति और सभ्यता का एक कलंक है, एक कोढ़ है। यों तो संसार के प्रत्येक देश और प्रत्येक समाज में विवाह के अवसर पर वर को वधू को या दोनों को कुछ भेंट देने की प्रथा है परंतु उसमें और दहेज प्रथा में जमीन – आसमान का अंतर हैं।

ज्ञान विज्ञान में उन्नति करके विश्व के अन्य लोग कहाँ से कहाँ पहुँच गए है और हम हैं कि उसी घिसी – पिटी रूढ़ि – रीति के पालन में मर रहे हैं। आजकल के नवयुवक दहेज पाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं। यह प्रथा केवल ग्रामीणों में ही नहीं हैं बल्कि पढ़े – लिखे सुसभ्य, सुसंस्कृत लोगों में भी है। लड़के का पद, विद्या, सामाजिक स्थिति पर दहेज मांगा जाता है। लेकिन दहेज जुटाने में वधू के माँ – बाप कंगाल हो जाते हैं। जन्म – मरण के लिए कर्जदार बन जाते हैं।

सरकार ने इस प्रथा को दूर करने के लिए कानून बनाया है। आजकल के नौजवानों को बिना दहेज के विवाह करने की शपथ लेनी चाहिए। तभी नर और नारी की समानता की स्थापना हो सकेगी। जब तक हमारे समाज के मस्तक पर दहेज का लांछन है तब तक हम सिर उठाकर नहीं चल सकते।



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