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| 1. | धन्धाकीय पर्यावरण का अर्थ समझाकर इनका महत्त्व स्पष्ट कीजिए । | 
| Answer» पर्यावरण का अर्थ : धन्धाकीय इकाई को असर करने वाले आस-पास के समूहों को धन्धाकीय पर्यावरण (Business Environment) कहते हैं । पर्यावरण यह सामाजिक, राजकीय, आर्थिक और कानूनों का समूह है जो धंधे के विकास एवं पतन का सर्जन करता है ।। आर्थर एम विमर के मतानुसार ‘धन्धाकीय पर्यावरण अर्थात् आर्थिक, सामाजिक, राजकीय, कानूनी और तकनीकि परिबलों का समूह है । जिससे धंधाकीय प्रवृत्ति की जाती है ।’ धंधाकीय इकाई के संचालकों के द्वारा धंधाकीय पर्यावरणों का ध्यान में रखते हुए संचालन करना होता है । जैसे सन 1986 में ग्राहक सुरक्षा एक्ट अमल में आया तब से मालिकों, उत्पादकों एवं व्यापारियों के द्वारा ग्राहकों को योग्य सेवा प्रदान करने का निर्णय लिया गया । इससे ग्राहकों का शोषण से मुक्ति एवं योग्य लाभ प्राप्त हुआ है । कई इकाईयों में कम्प्यूटर द्वारा कार्य किया जाता है । तथा इकाईयों ने प्रदुषण अंकुश के हेतु का पालन करने के लिए प्रदूषण निराकरण के कई पहलूओं को अपनाया गया है । धन्धाकीय/व्यवसायिक पर्यावरण का महत्त्व (उपयोगिता) : (1) लाभ के अवसर का सृजन : धंधाकीय पर्यावरण अनेक लाभ के अवसरों का सर्जन करता है । जो संचालक इन अवसरों को ध्यान में लेकर प्रवृत्ति करते हैं । वे अपनी स्पर्धात्मक इकाई की स्पर्धा में आगे रहते हैं । और अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं । जैसे लोहे के अधिक उपयोग के स्थान पर फाइबर की सामग्री का उपयोग वाहनो में करने से वाहन बनानेवाली कंपनी बाजार में अधिक लाभ प्राप्त करती है । (2) महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना अथवा संचालकों की संवेदनशीलता : धंधाकीय पर्यावरण द्वारा धंधे की सफलता के लिए योग्य निर्णय लेने में सहायक (मददरूप) बनते हैं । योग्य निर्णय लेने से धंधे का विकास एवं प्रगति निश्चित होती है । जैसे वस्तु बाजार में ग्राहकों की व्हील साबुन की मांग कम होने पर उत्पादक व्हील पावडर का अधिक उत्पादन करते हैं । जिससे उत्पादक ग्राहकों की मांग के अनुसार वस्तु की पूर्ति करने में सफल बनता है । (3) नीति विषय निर्णय लेने में आधार रूप पर्यावरण की पहचान : धंधाकीय नीतियों की रचना, नीतियों का पालन तथा नीतियों की सफलता एवं निष्फलता के संजोगो का मूल्यांकन किया जा सकता है । और इकाई भविष्य के लिए आयोजन कर सकता है । जैसे वर्तमान समय में भारत का प्रवासन उद्योग यह विशाल उद्योग है । इसके बावजूद भी समग्र विश्व की तुलना में भारत का स्थान काफी पीछे है । अत: इस समय पर कोई कंपनी अलग-अलग स्थानों पर होटलों की स्थापना करने का नीतिविषयक निर्णय लेकर अन्य स्पर्धात्मक कंपनी का सामना कर सकती है । वर्तमान में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) भी स्वीकारा गया है । (4) सतत अध्ययन हेतु पर्यावरण : धंधाकीय संचालकों को सतत नए-नए पहलूओं के अध्ययन हेतु आधार प्रदान करता है । इन नवीनतम पहलूओं का विशेष अध्ययन करके इकाई में संचालन की प्रवृत्ति की जाए तो इकाई का विकास एवं लाभ के अवसर प्राप्त कर सकते हैं । जैसे कम्प्यूटर के क्षेत्र में नई-नई टेक्नोलोजी का उपयोग होता है । इसका लगातार अध्ययन किया जाए और नए परिवर्तनों के साथ प्रवृत्ति की जाए तो कम्प्यूटर के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त कर सकते हैं । (5) हानिकारक जोखिमों से बचने के लिए : धंधाकीय पर्यावरण में इकाई को असर करने वाले आंतरिक एवं बाहरीय परिबलों पर विचार किया जाता है । पर्यावरण से इकाई को भविष्य में कोई नुकसान हो सकता है । इसका अध्ययन किया जाता है । जिसके संचालक इकाई और पर्यावरण के बीच संकलन रखते हैं । (6) पूँजी विनिमय के निर्णय हेतु : धंधाकीय पर्यावरण के परिबलों का अध्ययन करने से पूँजी विनियोग करना योग्य है या नहीं इसका निर्णय लिया जा सकता है । जैसे स्थिर पूँजी, कार्यशीलपूँजी, सार्वजनिक बचत, ऋणपत्र, प्रेफेरेन्स शेयर इन समग्र पूँजी प्राप्त करने के प्राप्ति स्थान तथा विनियोग को की रूचि की जानकारी धंधाकीय पर्यावरण के अध्ययन से प्राप्त होती है । (7) भय स्थानों की पहचान : निरन्तर बदलने रहता धन्धाकीय पर्यावरण में कई भयस्थान रखता है । कई उत्पादों अथवा सेवाओं को ग्राहक अमुक समय के पश्चात स्वीकार नहीं करते । ऐसे भय स्थानों की पहचान होने से धन्धा में आवश्यक परिवर्तन अनिवार्य हो जाता है । जैसे भारत में रेडियो की प्रचलितता आरम्भ के वर्षों में बहुत अधिक थी, लेकिन रंगीन टेलीविजन के आने से रेडियो का महत्त्व घटने लगा था । रेडियो की सेवा में परिवर्तन लाया गया । वर्तमान में रेडियो की सेवा FM द्वारा प्राप्त बनी है । FM रेडियो की विविध चेनलों द्वारा उद्घोषक अपने को RJ (Radio- Jockey) या MJ (Music Jockey) के रूप में पहचाना जाता है और FM बेन्ड रेडियो उनकी विविध चेनलो द्वारा प्रचलित बना है । | |