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'धरती की आँखें' पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।

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एक राजा था । वह नित्य नये सपने देखता था और उन्हें पूरा करने का प्रयास करता था । दरबार के
गुणी और बुद्धिमान लोगों को सपने सुनाकर उन्हें पूरा करने में उनकी सहायता लेता था । असफलता होने पर निराश नहीं होता था। कमियों को पूरा करके दोबारा प्रयत्न करने को प्रेरित करता था । राजा के नाव व्यापार करते समुद्र में हज़ारों मील दूर जाते थे। उसका यश फैलाते थे। इसके साथ-साथ राजा की कठिनाइयाँ भी बढ गयी थीं। कभी-कभी राजा का नाव संकट में हो तो उसे तुरंत सूचना नहीं मिल पाती थी और सहायता भेजने में भी विलंब होता था ।

एक दिन राजा चांदनी रात का आनंद लेते इस प्रकार सोचता है कि काश मैं चाँद तक पहुँच पाता। तो मैं वहाँ बैठकर अपने पूरे राज्य को आसानी से देख लेता | सोचते-सोचते राजा को नींद आ गयी। उसने विचित्र सपना देखा | राजा को लगा जैसे चाँद की दो आँखें हैं । चाँद अपनी बड़ी-बडी आखों से इधर – उधर देख रहा है और राजा से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में बताकर सहायता भेजने में सावधान करवाया । राजा ने सपने में ही चाँद को धन्यवाद दिया | सुबह राजा दरबारियों को सपना सुनाया और निराश व्यक्त किया । एक वृद्ध दरबारी ने कहा “महाराज निराश न हो’ आपका सपना एक दिन अवश्य सच होगा”।

कुछ दिनों के बाद सभी लोग चल बसे आखिर वह दिन आ ही गया । जब राजा का सपना सचमुच सच हो गया। ”आज सैकडों कृत्रिम उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। ये सचमुच धरती की चक्कर काटती आँखों के समान सब देख लेते हैं। समुद्र में होनेवाले तूफ़ान धरती पर होनेवाले तरह -तरह के विस्फोट और मौसम को पहले ही पहचान लेते हैं और आनेवाले खतरों से सावधान कर देते हैं। अब वे हमारे लिए शिक्षक का कार्य कर रहे हैं। इन उपग्रहों की नज़र बड़ी तेज़ है। इनसे कोई बात छिपी नहीं रहती । सैकडों मील की ऊँचाई से चित्र खींचते हैं।

काश आज वह राजा होता तो अपना सपना सच होते देखकर कितना खुश होता ।



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