1.

दो न्याय अगर तो आधा दो,पर इसमें भी अगर बाधा हो,तो दे दो केवल पाँव गाँव,रखो अपनी धरती तमाम।हम वहीं सुख से खाएँगें,परिजन पर असि न उठाएँगेंदुर्योधन वह भी दे न सका,आशीष समाज की ले न सका,उलटे हरि को बाँधने चला।जब नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है।​

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