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दुष्यंत की इस गज़ल का मिज़ाज बदलाव के पक्ष में है। इस कथन पर विचार करें।

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निःसंदेह दुष्यंत की प्रस्तुत गज़ल का मिज़ाज बदलाव के पक्ष में है। आजादी के बाद की राजनैतिक सामाजिक, आर्थिक, शोषण, मूल्यहीनता के माहौल में जीना मुश्किल हो गया है। आम आदमी के सपने बिखर गये। प्रशासन, राजनैतिक कठमुल्ले, धार्मिक पाखण्डी एवं कथित समाजवादी आम आदमी के घर के चिराग गुल करते रहे हैं।

ऐसी विद्रूपता एवं विडम्बनायुक्त करतूतों को देखकर उसकी सहनशीलता के बाँध टूट जाते हैं। वह यथास्थिति को बदलना चाहता है। प्रस्तुत गज़ल में व्यक्त कयि आक्रोश एवं क्रांतिकारी विचार इस बात के प्रमाण हैं। वह क्रांति चाहता है, बदलाव चाहता है इसलिए वह जनता की आवाज में असर लाने के लिए बेकरार दिखाई देता है। इस प्रकार कवि की सामाजिक चेतना न केवल तीव्र है वरन् मर्मस्पर्शी भी है।



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