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एजेण्डा-21 से आप क्या समझते हैं? “उत्तरदायित्व संयुक्त, भूमिकाएँ अलग-अलग” का क्या अर्थ है?

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एजेण्डा-21 का अभिप्राय सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण एवं विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो-डी-जनेरियो में हुआ था। इस सम्मेलन को पृथ्वी सम्मेलन के नाम से भी जाना जाता है। इस पृथ्वी सम्मेलन में 170 देशों के प्रतिनिधियों, हजारों स्वयंसेवी संगठनों तथा अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने हिस्सा लिया। इस . सम्मेलन के दौरान विश्व राजनीति में पर्यावरण को एक ठोस स्वरूप मिला।

इस अवसर पर 21वीं सदी के लिए एक विशाल कार्यक्रम अर्थात् एजेण्डा-21 पारित किया गया। सभी राज्यों से निवेदन किया गया कि वे प्राकृतिक सन्तुलन को बनाए रखें, पर्यावरण प्रदूषण को रोकें तथा पोषणीय विकास का रास्ता अपनाएँ।
एजेण्डा-21 के प्रमुख बिन्दु निम्नवत् थे-

⦁    पर्यावरण एवं विकास के मध्य सम्बन्ध के मुद्दों को समझा जाए।
⦁    ऊर्जा का अधिक कुशल तरीके से प्रयोग किया जाए।
⦁    किसानों को पर्यावरण सम्बन्धी जानकारी दी जाए।
⦁    प्रदूषण फैलाने वालों पर भी भारी अर्थदण्ड लगाया जाए।
⦁    इस दृष्टिकोण से राष्ट्रीय योजनाएँ बनाई एवं लागू की जाएँ।
उत्तरदायित्व संयुक्त, भूमिकाएँ अलग-अलग का अर्थ

पर्यावरण एवं संरक्षण को लेकर उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के दृष्टिकोणों में पर्याप्त अन्तर है। उत्तर के विकसित देश पर्यावरण के मामले पर उसी रूप में विचार-विमर्श करना चाहते हैं जिस परिस्थिति में पर्यावरण वर्तमान में विद्यमान है। ये देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में प्रत्येक देश का बराबर का उत्तरदायित्व हो।
दक्षिण के विकासशील देशों का तर्क है कि विश्व में पारिस्थितिकी को अधिकांश क्षति (नुकसान) विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुंची है। यदि विकसित देशों ने पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचाया है तो इन्हें इसकी क्षतिपूर्ति की जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए। इसके अलावा विकासशील देश अभी औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और यह आवश्यक है कि इन पर वे प्रतिबन्ध न लगें जो विकसित देशों पर लगाए जाते हैं।

पृथ्वी सम्मेलन से जुड़े निर्णय अथवा सुझाव
सन् 1992 में सम्पन्न पृथ्वी सम्मेलन में इस तर्क को मान लिया गया और इसे ‘संयुक्त उत्तरदायित्व लेकिन अलग-अलग भूमिका का सिद्धान्त’ कहा गया। इस सन्दर्भ में रियो घोषणा-पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि “पृथ्वी के पारिस्थितिकी तन्त्र की अखण्डता तथा गुणवत्ता की बहाली, सुरक्षा तथा संरक्षण के लिए विभिन्न देश विश्व बन्धुत्व की भावना से परस्पर एक-दूसरे का सहयोग करेंगे। पर्यावरण के विश्वव्यापी अपक्षय में विभिन्न राज्यों का योगदान अलग-अलग है। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न राज्यों के अलग-अलग उत्तरदायित्व होंगे। विकसित देशों के समाजों का वैश्विक पर्यावरण पर दबाव अधिक है तथा इन देशों के पास विपुल प्रौद्योगिकी एवं वित्तीय संसाधन मौजूद हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए टिकाऊ विकास के अन्तर्राष्ट्रीय आयाम में विकसित देश अपना विशेष उत्तरदायित्व स्वीकारते हैं।”



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