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एक जमींदार जो काफी जमीन का मालिक है और एक छोटा किसान जिसके पास कम भूमि है-क्या ये दोनों एक ही वर्ग से संबंधित होंगे यदि वे एक ही गाँव में रहते हों तथा दोनों जमींदार हों?

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यह सही है कि एक ही गाँव में रहने वाले दो व्यक्ति-पहला जो काफी जमीन का मालिक है। तथा दूसरा जो एक छोटा किसान है जिसके पास कम भूमि है-भू-स्वामित्व के आधार पर जमींदार हैं। इस दृष्टि से उन्हें एक ही वर्ग का माना जा सकता है। इसे देखने का एक दूसरा दृष्टिकोण भी है, जिसके अनुसार दोनों जरूरी नहीं है कि एक ही वर्ग के हों। जो जमींदार काफी जमीन का मालिक है। उसका रहन-सहन एवं जीवन पद्धति उस जमींदार से कहीं ऊँची होगी जिसके पास कम भूमि है।

यदि दोनों भू-स्वामित्व के कारण अपनी सम्मान स्थिति के प्रति सचेत हैं तथा भूमिहीन कृषि मजदूरों के असंतोष एवं रोष का सामना कर रहे हैं तो दोनों एक वर्ग के भी सदस्य हो सकते हैं। मार्क्स ने जिस ‘बुर्जुआ’ वर्ग का उल्लेख किया है उसमें पूँजीपति सम्मिलित हैं, चाहे वे किसी एक छोटे कारखाने के मालिक हों या अनेक बड़े कारखानों के मालिक। अपने वर्ग के प्रति चेतना उन्हें एक वर्ग का तथा चेतना को अभाव उन्हें भिन्न वर्ग का सदस्य बना सकता है। वस्तुत: इस प्रकार के उदाहरणों में प्रमुख बात यह है कि वर्ग ‘अपने में वर्ग’ है अथवा ‘अपने लिए वर्ग है। अपने में वर्ग समान लक्षणों वाला हो सकता है जिसमें चेतना न हो। अपने लिए वर्ग समान विशेषताओं के साथ-साथ चेतनायुक्त भी होता है।



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