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"एकै संग धाए नंदलाल औगुलाल दोऊ,दृगनि गए जु भरि आनंद मढ़े नहीं।धोय-धोय हारी, 'पद्माकर'तिहारी सौंह,अब तौ उपाय एक चित्त में चढ़े नहीं।कैसी करौं, कहाँ जाऊँ, कासे कहूँ, कौन सुनै,कोऊतो निकासो, जासै दरद बढ़ नहीं।।"(1) पाठ का नाम एवं कवि का नाम।(2) पद्यांश की व्याख्या।(3) इसमें किस पर्व के प्रसंग की चर्चा है? |
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