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Answer»  गाँवों में जल-प्राप्ति के साधन नगरों की अपेक्षा गाँवों में पेयजल की व्यवस्था अधिक जटिल है। इसके प्रमुख कारण हैं सुदूर देहात क्षेत्र में नगरपालिका जैसी व्यवस्थित संस्थाओं का न होना तथा उपयुक्त स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा का अभाव। अतः ग्रामीण क्षेत्र में न तो गन्दगी के निकास की समुचित व्यवस्था पर कोई विशेष ध्यान दिया जाता है और न ही पेयजल की शुद्धता बनाए रखने के आवश्यक उपाय किए जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल के साधन निम्नलिखित हैं – (1) नदियाँ (2) तालाब (3) कुएँ (4) नलकूप जल-प्राप्ति के इन स्रोतों का जल अशुद्ध होने तथा उसे अशुद्धि से बचाने के उपायों का संक्षिप्त विवरण अग्रलिखित है (1) नदी का जल: तीव्र प्रवाह वाली नदियों को जल प्राय: शुद्ध होता है, परन्तु मानवीय क्रियाएँ इसे अशुद्ध कर देती हैं। जल की अशुद्धि के कारण: ⦁    नदी के किनारे बसे नगरों एवं गाँवों की गन्दगी नदी में बहा दिए जाने के कारण इसका जल पीने योग्य नहीं रहता। ⦁    नदी के किनारे की जाने वाली खेती से रासायनिक पदार्थ; खाद तथा कीटनाशक ओषधियाँ; नदी के पानी में मिलकर उसे दूषित करते रहते हैं। ⦁     नदी के किनारों पर स्नान करने तथा वस्त्रादि धोने से भी इसका जल अशुद्ध होता रहता है। ⦁    पशुओं को नदी में घुसाकर स्नान कराने से जल में गन्दगी की वृद्धि होती है। ⦁    नदियों के किनारे पर शवदाह करने तथा अस्थियाँ एवं राख सीधे जल में विसर्जित करने से भी यह जल पीने योग्य नहीं रह जाता। ⦁    विभिन्न औद्योगिक संस्थानों द्वारा औद्योगिक अवशेषों तथा व्यर्थ पदार्थों को भी निकटवर्ती नदियों के जल में सीधे प्रवाहित कर दिया जाता है। इससे भी नदियों का जल अशुद्ध एवं दूषित हो जाता है। बचाव के उपाय: नदियों के जल को कुछ सामान्य उपाय अपनाकर दूषित होने से बचाया जा सकता है, जो निम्नलिखित हैं ⦁    नदियों के जल में मल-मूत्र व अन्य प्रकार की गन्दगी प्रवाहित नहीं करनी चाहिए। ⦁    औद्योगिक अवशेषों एवं व्यर्थ पदार्थों से नदियों के जल का बचाव किया जाना चाहिए। ⦁     नदी के किनारे पर स्नान नहीं करना चाहिए तथा नदी के जल में वस्त्रादि धोकर उसकी गन्दगी में वृद्धि नहीं करनी चाहिए। ⦁     पशुओं को नदी में नहीं घुसने देना चाहिए। ⦁    नदियों में अस्थियों की राख विसर्जित नहीं करनी चाहिए। ⦁     नदी के किसी साफ तट को छाँटकर वहीं से पेयजल प्राप्त करना चाहिए। नदी के जल को उबालकर पीना स्वास्थ्य के लिए हितकर रहता है। (2) तालाब का जल: अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब उपलब्ध होते हैं। तालाबों में मूल रूप से वर्षा का ही जल एकत्र होता है, परन्तु विभिन्न आन्तरिक एवं बाहरी कारणों से तालाबों का जल दूषित हो जाता है; अत: सामान्य रूप से पीने योग्य नहीं रह जाता। जल की अशुद्धि के कारण: ⦁    ग्रामीण इनमें स्नान करते हैं तथा वस्त्रादि धोते हैं। ⦁    पशुओं को नहाने व पानी पीने के लिए सीधे ही तालाब में उतार दिया जाता है। ⦁    गाँव की नालियों के गन्दे पानी का निकास भी प्राय: तालाब में ही होता है। ⦁    पेड़ों की टहनियाँ और पशु-पक्षियों के मल-मूत्र भी तालाब में सड़ते रहते हैं। ⦁    स्थिर अवस्था में रहने के कारण तालाब के जल में मच्छर एवं कुछ कीड़े भी पनपते रहते हैं। बचाव के उपाय: तालाब के जल को कुछ सामान्य उपाय अपनाकर दूषित होने से बचाया जा सकता है। ये महत्त्वपूर्ण उपाय निम्नलिखित हैं ⦁    तालाब का निर्माण ऐसे स्थान पर होना चाहिए कि जहाँ पर सार्वजनिक गन्दगियों का निष्कासन क्षेत्र न हो। ⦁    तालाब की चहारदीवारी ऊँची होनी चाहिए। इससे आस-पास का गन्दा पानी तालाब में नहीं जा पाता है। ⦁    तालाब के चारों ओर काँटेदार बाड़ लगा देनी चाहिए जिससे कि इसमें जानवर न घुस सकें। ⦁    नहाने व कपड़े धोने की व्यवस्था तालाब के बाहर इस प्रकार होनी चाहिए कि गन्दा पानी : तालाब में न गिरे। ⦁    तालाब से जल प्राप्त करते समय स्वच्छ बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए। ⦁    तालाब के जल को शुद्ध बनाये रखने के लिए इसमें छोटी-छोटी मछलियाँ छोड़ देनी चाहिए। ये कई प्रकार के हानिकारक कीट-पतंगों को खाकर नष्ट कर देती हैं। ⦁    समय-समय पर तालाब की गन्दगी; जैसे–पेड़-पौधों की पत्तियों व टहनियों आदि: को साफ करते रहना चाहिए। इन सभी उपायों को अपनाकर तालाब के पानी को और अधिक अशुद्ध होने से बचाया जा सकता है। वैसे स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह आवश्यक माना जाता है कि तालाब के पानी को किसी घरेलू विधि द्वारा शुद्ध करके ही पीने एवं खाना पकाने के काम में लाना चाहिए। (3) कुओं का जल: गहरे कुएँ पेयजल के श्रेष्ठ साधन हैं। जल की अशुद्धि के कारण: ⦁    कुओं के कम गहरे व कच्चे बने होने पर इसके जल के अशुद्ध होने की अधिक सम्भावनाएँ रहती हैं। ⦁    ऊपर से ढका न होने के कारण आस-पास के पेड़-पौधों की पत्तियाँ एवं पक्षियों के मल-मूत्र इसके अन्दर सीधे गिरकर सड़ते रहते हैं। ⦁     कुएँ की मेंढ़ पर बैठकर स्नान करने व वस्त्रादि धोने से इनमें गन्दा पानी गिरता रहता है और जल को दूषित करता है। ⦁    गन्दे नाले आदि के पास स्थित होने पर कुएँ के पानी में कीड़े व कीटाणु आसानी से पनप जाते हैं। ⦁    गन्दे बर्तन व गन्दी रस्सी द्वारा कुएँ से पानी प्राप्त करने से कुएँ के जल की अशुद्धियों में वृद्धि होती है बचाव के उपाय: आदर्श कुएँ का निर्माण कुएँ के जल को पीने योग्य बनाये रखने का एकमात्र उपाय है। आदर्श कुएँ की विशेषताओं का उल्लेख विगत प्रश्न के अन्तर्गत किया जा चुका है। (4) नलकूप का जल: नलकूप कुओं का आधुनिकतम एवं सुरक्षित रूप है। नलकूप के जल के अशुद्ध होने के मूल कारण कुएँ से मिलते-जुलते हैं। अतः नलकूप के जल को पीने योग्य बनाए रखने के उपाय भी लगभग उसी प्रकार के हैं; जैसे कि ⦁     नलकूप एक स्वच्छ स्थान (गन्दे नाले व तालाब आदि से दूर) पर निर्मित किए जाने चाहिए। ⦁    अधिकाधिक गहराई तक खुदाई करके नलकूप लगाने चाहिए। ⦁    नलकूप ऊपर से ढके रहने चाहिए। 
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