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गौरी के विदा होकर न आने पर जीवनलाल की सोच में क्या परिवर्तन आया?​

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अंत में स्वयं उनकी बेटी जब दहेज़ के कारण ही विदा करने से इनकार कर दी जाती है तो जीवनलाल आखें खुल जाती हैं ,वह कहते हैं की चाहे जीवन भर की कमाई दे दो ,पर लड़की वालों की माँग पूरी नहीं होती है . अतः उनका ह्रदय परिवर्तन हो जाता है . लेखक ने दहेज़ प्रथा को समाज के लिए अभिशाप माना है .

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