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गृह-परिचर्या की परिभाषा देते हुए उसका महत्त्व स्पष्ट कीजिए।यागृह-परिचर्या का क्या महत्त्व है?

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गृह-परिचर्या का अर्थ एवं परिभाषा

सामान्य स्वस्थ व्यक्ति अपने सभी दैनिक कार्य स्वयं ही किया करते हैं अर्थात् प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति नहाना-धोना, शौच, कपड़े बदलना तथा भोजन ग्रहण करना आदि कार्य स्वयं ही करता है, परन्तु अस्वस्थ अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति अनेक बार अपने इंन व्यक्तिगत कार्यों को स्वयं करने में असमर्थ हो जाता है। इन परिस्थितियों में व्यक्ति के ये सभी साधारण कार्य भी किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ही किए जाते हैं। रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के इन कार्यों तथा कुछ अन्य सहायक कार्यों को ही सम्मिलित रूप से रोगी की परिचर्या कहते हैं। रोगी की परिचर्या के अन्तर्गत रोगी व्यक्ति को आवश्यक औषधि देना, उसकी मरहम-पट्टी करना, उठने-बैठने आदि में सहायता प्रदान करना आदि सभी कुछ सम्मिलित होता है। रोगी के इन सेवा-सुश्रूषा सम्बन्धी समस्त कार्यों को रोगी की परिचर्या कहते हैं। यदि रोगी अथवा दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति अस्पताल में भर्ती हो, तो उसकी परिचर्या का कार्य वहाँ के कर्मचारी ही करते हैं। सामान्य रूप से यह कार्य नस द्वारा किया जाता है। जब रोगी घर पर होता है, उस समय रोगी की परिचर्या या सेवा-सुश्रूषा का कार्य घर पर ही किया जाता है। इस स्थिति में होने वाली परिचर्या को . ‘गृह-परिचय’ कहते हैं। इस प्रकार गृह-परिचय को इन शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है, घर पर रहने वाले रोगी व्यक्ति की चिकित्सक के निर्देशानुसार की जाने वाली सेवा-सुश्रूषा अथवा परिचर्या को ही गृह-परिचर्या कहते हैं। रोगी के रोग-काल में गृह-परिचर्या का विशेष महत्व होता है। गृह-परिचर्या के माध्यम से ही रोगी का सफल उपचार सम्भव हो पाता है। उत्तम गृह-परिचर्या के अभाव में चिकित्सक द्वारा रोगी का सफल उपचार कर पाना प्रायः कठिन ही होता है।

गृह-परिचर्या का महत्त्व

रोगी की स्नेहपूर्वक देख-रेख औषधीय चिकित्सा. के समान ही महत्त्वपूर्ण है, बल्कि कई बार (मानसिक रोग आदि में) तो यह औषधियों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है। औषधियाँ यदि रोग का निवारण करती हैं, तो रोगी से किया जाने वाला प्रेमपूर्ण व्यवहार रोगी को साहस एवं धैर्य बँधाता है। गृह-परिचर्या एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है जिसका निर्वाह करने के लिए विनम्र, हँसमुख, बुद्धिमान एवं कार्यकुशल परिचारिका की आवश्यकता होती है। परिचारिका को स्वास्थ्य के नियमों एवं उनके पालन के महत्त्व को भली-भाँति समझना चाहिए। उसे चिकित्सक से रोगी के लिए देख-रेख एवं औषधि सम्बन्धी आवश्यक निर्देश प्राप्त कर लेने चाहिए, क्योंकि तब ही वह रोगी की नियमित परिचर्या कर सकती है। औषधियों का उचित प्रयोग, विनम्र एवं प्रेमपूर्ण व्यवहार रोगी की रोग की अवधि में अत्यधिक सहायता करता है।

रुग्ण होने की दशा में यदि, उपयुक्त चिकित्सा उपलब्ध हो, तो रोगी को सर्वोत्तम परिचर्या घर पर ही मिलती है। घर पर परिवार के सदस्यों को प्रेमपूर्ण व्यवहार, आस-पास का परिचित वातावरण एवं अन्य सुख-सुविधाएँ रोगी में असुरक्षा की भावनाओं को दूर करती हैं तथा उसकी दशा में सुधार शीघ्रतापूर्वक होता है।

रोग की गम्भीर अवस्था में रोगी डर एवं सदमे का शिकार हो सकता है। इस खतरनाक एवं गम्भीर परिस्थिति में अस्पताल अथवा नर्सिंग होम की परिचारिका की अपेक्षा गृहिणी (गृह-परिचारिका) अधिक प्रभावी ढंग से रोगी को धैर्य बँधा सकती है तथा रोगमुक्त होने के लिए आशान्वित कर सकती है। गृह-परिचारिका को चिकित्सक के निर्देशों का नियमपूर्वक पालन करना चाहिए अन्यथा हानि होने की सम्भावना भी हो सकती है। उसमें पर्याप्त आत्मविश्वास होना चाहिए। रोगी की गम्भीर अवस्था में भी उसे उत्तेजित अथवा घबराना नहीं चाहिए। इस प्रकार के गुणों से युक्त गृह-परिचारिका रोगी की अस्पताल से भी अच्छी परिचर्या कर सकती है।

आधुनिक काल में रोग एवं दुर्घटनाएँ प्रत्येक घर एवं परिवार के लिए सामान्य घटनाओं के समान बन चुकी हैं। अत: गृह-परिचर्या के महत्त्व को भली-भाँति समझा जा सकता है। प्रत्येक गृहिणी एवं परिवार के अन्य सदस्यों को परिचर्या के आवश्यक नियमों का ज्ञान अनिवार्य रूप से प्राप्त करना चाहिए, क्योंकि गृह-परिचर्या में दक्ष गृहिणी किसी भी प्रकार की आपात स्थिति में घर में अस्पताल की सभी सुविधाएँ सुलभ कर परिवार के पीड़ित सदस्य अथवा सदस्यों की उपयुक्त देख-रेख कर सकती है।



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