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Hindi essay on the topic-पुसतक प्रदर्शन में एक घंटा​

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मुझे बचपन से पुस्तकों का शौक रहा है। अपने इसी शौक के कारण में जब भी शहर में पुस्तक प्रदर्शनी आयोजित होती,अवश्य जाया करता। हाल ही में हमारे शहर में पुस्तकों का एक बृहद मेला आयोजित हुआ । मैंने पिताजी से आज्ञा लेकर अवकाश के दिन उसे देखने जाने की आज्ञा मांगी। उस प्रदर्शनी के अंदर जब मैंने पुस्तकों का अंबार देखा तो मेरी आंखें खुशी से चमक उठी हर तरफ किताबें ही किताबें । पुस्तकों से मुझे बेहद लगाव था। मेरे मन में हमेशा यह होता कि पुस्तकें मेरे आस-पास सतत बनी रहे और उनकी खुशबू से मुझे एक प्रकार का सुकून मिलता । कौन सी किताब लूँ ,नहीं लूँ। इसी उधेड़बुन में मैंने पुस्तक प्रदर्शनी में प्रवेश किया और मैंने वहां पर अपने पसंदीदा लेखक की किताबें देखनी आरंभ कर दी। प्रदर्शनी में किताबों पर कुछ प्रतिशत की छूट दी जा रही थी। इसे जानकर मैं अधिकाधिक किताबें अपने साथ ले जाने के लिए लालायित हो गया था इसीलिए मैंने साहित्य की बहुतेरी किताबें लेना आरंभ कर दी। मेरे पसंदीदा लेखक प्रेमचंद थे उनका लगभग सारा हिंदी साहित्य वहां उपलब्ध था । मैंने सोचा पूरा नहीं तो कम से कम जो नामी प्रकाशन है उन्हें तो मैं अवश्य खरीद लूंगा। यही कारण था कि मैंने प्रेमचंद के मानसरोवर प्रेमाश्रम, गबन , सेवासदन, गोदान और रंगभूमि खरीदी । पुस्तक प्रदर्शनी बहुत बड़ी होने के कारण जगह-जगह पर किताबों के रॅक रखे गये थे।ऐसी कम से कम पांच बड़ी-बड़ी रॅक थी। जिसमें छोटी -मोटी सभी किस्म की पुस्तकें लगभग आठ-नौ भाषाओं में उपलब्ध थी मैंने देखा कई लोग पुस्तक बड़े ध्यान से खरीद रहे है। जबकि कई लोग केवल पुस्तकें देख देख कर रखते जा रहे थे। मैंने मोबाइल की ओर देखा एक घंटा बीत चुका है। एकाएक फोन की घंटी बज उठी । पिताजी ने जल्दी घर लौटने का फरमान सुना दिया था। मैं त्वरित गति से काउंटर पर बिल चुकाने पहुँच गया । मै आज बहुत खुश था मुझे मेरी पसंद की पुस्तकें जो मिल गई थी।



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