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हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिनदिल के खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है।दुष्यंत की गज़ल का चौथा शेर पढ़ें और बताएँ कि गालिब के उपर्युक्त शेर से वह किस तरह जुड़ता है ?

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इस प्रश्न के सटीक उत्तर के लिए पहले तो हमें गालिब एवं दुष्यंत के शेर को प्रस्तुत करना होगा – हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है। खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही, कोई हसीन नजारा तो है नज़र के लिए। भाव साम्यता की दृष्टि से दुष्यंत कुमार का शेर गालिब के शेर से जुड़ता है।

गालिब के शेर में ‘जन्नत’ (स्वर्ग) मन बहलाने की सुंदर कल्पना है। वैसे ही दुष्यंत के शेर में खुदा (ईश्वर) मनुष्य की सर्वचिन्ताओं का समाहार है। खुदा एक ऐसी रम्य कल्पना है जो मनुष्य को तमाम प्रकार की मुसीबतों से त्राण देनेवाला (बचानेवाला) है। दोनों ही कल्पनाएँ मनुष्य को आश्वस्त करती है, आस्था जगाती है।



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