1.

इस भुज, इस प्रज्ञा के सम्मुख कौन ठहर सकता है,कौन विभव वह, जो कि पुरुष को दुर्लभ रह सकता है।इतना कुछ है भरा विभव का कोष प्रकृति के भीतरनिज इच्छित सुख - भोग सहज ही पा सकते नारीसब, हो सकते तुष्ट, एक सा सब सुख पा सकते है,चाहे तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते है ।छिपा दिए सब तत्व आवरण के नीचे ईश्वर ने,संघर्षोमें खोज निकाला उन्हे उद्यमी नर ने |ब्रह्मा से कुछ लिखा - भाग्य में मनुज नही लाया है,अपना सुख उसने अपने भुजबल से ही पाया है।सुखभोग पा सकते है ?२) धरती को स्वर्ग बनाने से क्या तात्पर्य है ?३) ईश्वर ने दौलत कहाँ छिपाई है और क्या तात्पर्य है ?१) मनुष्यकैसे​

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