InterviewSolution
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इस समय कालिमामयी में किस ओर संकेत किया गया है। |
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Answer» माखनलाल चतुर्वेदी कैदी और कोकिला क्या गाती हो? क्यों रह जाती हो कोकिल बोलो तो! क्या लाती हो? सन्देश किसका है? कोकिल बोलो तो! इस कविता में जेल में बंद स्वाधीनता सेनानी की व्यथा को दर्शाया गया है। कैदी कोयल से पूछता है कि वह क्या गाती और बीच में चुप क्यों हो जाती है। कैदी यह जानना चाहता है कि कोयल किसका संदेश लेकर आई है।
ऊँची काली दीवारों के घेरे में डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में जीने को देते नहीं पेट भर खाना जीवन पर अब दिन रात कड़ा पहरा है शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है? हिमकर निराश कर चला रात भी काली इस समय कालिमामयी क्यूँ आली? कवि ने जेल के माहौल का बड़ा सटीक वर्णन किया है। जेल डाकू, चोरों जैसे खतरनाक अपराधियों का बसेरा होता है। जेल में भर पेट भोजन भी नसीब नहीं होता है। वहाँ ना जीने दिया जाता है और ना ही मरने दिया जाता है। जीवन की हर गतिविधि पर कड़ा पहरा लगा होता है। ऐसा लगता है जैसे शासन नहीं बल्कि अंधेरे का प्रभाव पड़ा हुआ है। रात इतनी बीत चुकी है कि अब चाँद भी निराश करके जा चुका है। ऐसे में कवि को आश्चर्य होता है कि कोयल जैसा निरीह प्राणि वहाँ क्या कर रहा है। क्यों हूक पड़ी? वेदना बोझ वाली सी कोकिल बोलो तो क्या लुटा? मृदुल वैभव की रखवाली सी कोकिल बोलो तो! कवि को लगता है कि कोयल की आवाज में एक वेदना से भरी हूक उठ रही है। ऐसा लगता है कि कोयल का संसार लुट गया है। मनुष्य जिस मानसिक स्थिति में होता है उसी तरह के मतलब वह अपने परिवेश से भी निकालता है। यदि आप खुश हैं तो सुबह के सूरज की लाली आपको सुंदर लगेगी। दूसरी ओर, यदि आप दुखी हैं तो वही लाली आपको रक्तरंजित लगने लगेगी। क्या हुई बावली? अर्ध रात्रि को चीखी कोकिल बोलो तो! किस दावानल की ज्वालायें हैं दीखी? कोकिल बोलो तो! कवि को लगता है कि शायद कोयल ने आधी रात में जंगल की आग की भयावहता देख ली है इसलिए चीख रही है। क्या? देख न सकती जंजीरों का गहना? हथकड़ियाँ क्यों? ये ब्रिटिश राज का गहना। कोल्हू का चर्रक चूं जीवन की तान। गिट्टी पर अंगुलियों ने लिखे गान! हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआ दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली इसलिए रात में गजब ढ़ा रही आली? कैदी के जीवन पर जेल के असर का चित्रण यहाँ हुआ है। वहाँ पर बेड़ियाँ और हथकड़ियाँ ही कैदी का गहना बन जाती हैं। कोल्हू चलने से जो चर्र चूँ की आवाज आती है वही कैदी का जीवन गान बन जाती है। कोल्हू के डंडे पर कैदियों की अंगुलियों के निशान इस तरह पड़ गये हैं जैसे उस पर गाने उकेर दिये गये हों। कवि को लगता है कि जुआ खींच कर वह अंग्रेजों की अकड़ का कुआँ साफ कर रहा है। दिन में शायद करुणा को जागने का समय नहीं मिल पाया होगा, इसलिए रात में वह कोयल के रूप में कैदियों का ढ़ाढ़स बंधाने आई है।
इस शांत समय में, अंधकार को बेध, रो रही हो क्यों? कोकिल बोलो तो चुप चाप मधुर विद्रोह बीज इस भाँति बो रही हो क्यों? कोकिल बोलो तो! यहाँ पर कवि को लगता है कि कोयल चुपचाप विद्रोह के बीज बो रही है। मनुष्य की एक असीम क्षमता होती है और वो है कठिन से कठिन परिस्थिति में भी उम्मीद की किरण देखने की। कवि को यहाँ पर कोयल के गाने में उम्मीद की किरण दिख रही है। काली तू रजनी भी काली, शासन की करनी भी काली, काली लहर कल्पना काली, मेरी काल कोठरी काली, टोपी काली, कमली काली, मेरी लौह श्रृंखला खाली, पहरे की हुंकृति की व्याली, तिस पर है गाली ए आली! यहाँ पर जेल की हर चीज को कालिमा लिए बताया गया है। काला रंग हमारे यहाँ दु:ख और बुरी भावना का प्रतीक होता है। उस कालिमापन में जब पहरे का बिगुल बजता है तो वह गाली के समान लगता है। इस काले संकट सागर पर मरने की, मदमाती! कोकिल बोलो तो! अपने चमकीले गीतों को क्योंकर हो तैराती! कोकिल बोलो तो!
कवि का मानना है कि कोयल अपना मधुर संगीत उस काले संकट के सागर पर बेकार खर्च कर रही है। कवि को लगता है कि कोयल अपनी जान देने को आमादा है। तुझे मिली हरियाली डाली मुझे मिली कोठरी काली! तेरा नभ भर में संचार मेरा दस फुट का संसार! तेरे गीत कहावें वाह रोना भी है मुझे गुनाह! देख विषमता तेरी मेरी बजा रही तिस पर रणभेरी! यहाँ पर एक गुलाम और एक आजाद जिंदगी का अंतर दिखाया गया है। यह बताया गया है कि इनमे जमीन आसमान का अंतर है। जहाँ एक चिड़िया खुले नभ में घूमने को स्वच्छंद है वहीं एक कैदी को दस फुट की छोटी सी जगह में रहना पड़ता है। लोग कोयल के गाने की प्रशंसा करते हैं वही पर एक कैदी के लिए रोना भी मना है। इस विषमता को देखकर कवि का मन अंदर तक हिल जाता है। इस हुंकृति पर, अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ? कोकिल बोलो तो! मोहन के व्रत पर, प्राणों का आसव किसमें भर दूँ? कोकिल बोलो तो! अब कवि कहता है कि कोयल की पुकार पर वह कुछ भी करने को तैयार है। मोहन का अर्थ है मोहनदास करमचंद गाँधी। कवि चाहता है कि जेल के बाहर जो भी आजाद प्राणि मिले, कोयल के द्वारा उसमें गुलामी के खिलाफ लड़ने की जान फूँक दे। |
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