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Answer» जल प्रदूषण : पर्यावरण प्रदूषण का एक मुख्य रूप या प्रकार है-जल प्रदूषण। जल के मुख्य स्रोतों में दूषित एवं विषैले तत्त्वों का समावेश होना जल प्रदूषण कहलाती है। यह भी आज के युग की गम्भीर समस्या है। इसका अत्यधिक बुरा प्रभाव मानव-समाज, प्राणि-जगत तथा वनस्पति जगते पर पड़ता है। जल प्रदूषण के कारणों, हानियों तथा इसे नियन्त्रित करने के उपायों का विवरण निम्नवर्णित है। जल प्रदूषण के कारण जल प्रदूषण के निम्नलिखित कारण हैं: ⦁ औद्योगीकरण जल प्रदूषण के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी है। चमड़े के कारखाने, चीनी एवं ऐल्कोहॉल के कारखाने कागज की मिलें तथा अन्य अनेकानेक उद्योग नदियों के जल को प्रदूषित करते हैं। ⦁ नगरीकरण भी जल प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है। नगरों की गन्दगी, मल व औद्योगिक अवशिष्टों। के विषैले तत्त्व भी जल को प्रदूषित करते हैं। ⦁ समद्रों में जहाजरानी एवं परमाणु अस्त्रों के परीक्षण से भी जल प्रदषित होता है। ⦁ नदियों के प्रति भक्ति-भाव होते हुए भी तमाम गन्दगी; जैसे-अधजले शव और जानवरों के मृत शरीर तथा अस्थि विसर्जन आदि भी नदियों में ही किया जाता है, जो नदियों के जल प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है। ⦁ जल में अनेक रोगों के हानिकारक कीटाणु मिल जाते हैं, जिससे प्रदूषण उत्पन्न हो जाता है। ⦁ भू-क्षरण के कारण मिट्टी के साथ रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक पदार्थों के नदियों में पहुँच जाने से नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है। ⦁ घरों से बहकर निकलने वाला फिनायल, साबुन, सर्फ एवं शैम्पू आदि से युक्त गन्दा पानी तथा शौचालय का दूषित मल नालियों में प्रवाहित होता हुआ नदियों और झीलों के जल में मिलकर उसे प्रदूषित कर देता है। ⦁ नदियों और झीलों के जल में पशुओं को नहलाना, मनुष्यों द्वारा स्नान करना व साबुन आदि से गन्दे वस्त्र धोना भी जल प्रदूषण का मुख्य कारण है। “जल प्रदूषण की हानियाँ जल प्रदूषण की हानियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है। ⦁ प्रदूषित जल के सेवन से जीवों को अनेक प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है। ⦁ जल प्रदूषण से अनेक बीमारियाँ; जैसे-हैजा, पीलिया, पेट में कीड़े, यहाँ तक कि टायफाइड भी प्रदूषित जल के कारण ही होता है। राजस्थान के दक्षिणी भाग के आदिवासी गाँवों में गन्दे तालाबों का पानी पीने से “नारू’ नाम का भयंकर रोग होता है। इन गाँवों के 6 लाख 90 हजार लोगों में से 1 लाख 90 हजार लोगों को यह रोग है। ⦁ प्रदूषित जल का प्रभाव जल में रहने वाले जन्तुओं और जलीय पौधों पर भी पड़ रहा है। जल प्रदूषण के कारण मछली और जलीय पौधों में 30 से 50 प्रतिशत तक की कमी हो गयी है। जो व्यक्ति खाद्य-पदार्थ के रूप में मछली आदि का उपयोग करते हैं, उनके स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचती है। ⦁ प्रदूषित जल का प्रभाव कृषि उपजों पर भी पड़ता है। कृषि से उत्पन्न खाद्य-पदार्थों को मानव व पशुओं द्वारा उपयोग में लाया जाता है, जिससे मानव व पशुओं के स्वास्थ्य को हानि होती है। ⦁ जल, जन्तुओं के विनाश से पर्यावरण असन्तुलित होकर विभिन्न प्रकार के कुप्रभाव उत्पन्न करता जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय जल की शुद्धता और उपयोगिता बनाए रखने के लिए प्रदूषण को रोकना आवश्यक है। जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखिते, उपाय प्रयोग में लाए जा सकते हैं ⦁ नगरों के दूषित जल और मल को नदियों और झीलों के स्वच्छ जल में मिलने से रोका जाए। ⦁ कल-कारखानों के दूषित और विषैले जल को नदियों और झीलों के जल में न गिरने दिया जाए। ⦁ मल-मूत्र एवं गन्दगीयुक्त जल का उपयोग बायो-गैस बनाने या सिंचाई के लिए करके प्रदूषण को | रोका जा सकता है। ⦁ सागरों के जल में आणविक परीक्षण न कराए जाएँ। ⦁ नदियों के तटों पर शवों को ठीक से जलाया जाये तथा उनकी राख भूमि में दबा दी जाए। ⦁ पशुओं के मृतक शरीर और मानव शवों को स्वच्छ जल में प्रवाहित न करने दिया जाए। ⦁ जल प्रदूषण रोकने के लिए नियम बनाए जाएँ तथा उनका कठोरता से पालन किया जाए। ⦁ नदियों, कुओं, तालाबों और झीलों के जल को शुद्ध बनाए रखने के लिए प्रभावी उपाय काम में लाए | जाएँ। ⦁ जल प्रदूषण के कुप्रभाव तथा उनके रोकने के उपायों की जनसामान्य में प्रचार-प्रसार कराया जाए। ⦁ जल उपयोग तथा जल संसाधन संरक्षण के लिए राष्ट्रीय नीति बनायी जाए।
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