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❖ जयशंकर प्रसाद की आत्मकथ्य कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही है। क्या पाठ में दी गई आत्मपरिचय कविता से इस कविता का आपको कोई संबंध दिखाई देता है? चर्चा करें। आत्मकथ्यमधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।सीवन की उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कथा की?छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मोरी मौन व्यथा। -जयशंकर प्रसाद

Answer» ❖ जयशंकर प्रसाद की आत्मकथ्य कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही है। क्या पाठ में दी गई आत्मपरिचय कविता से इस कविता का आपको कोई संबंध दिखाई देता है? चर्चा करें।



आत्मकथ्य

मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,



उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।

सीवन की उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कथा की?

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?

क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?

सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?

अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मोरी मौन व्यथा।

-जयशंकर प्रसाद


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