1.

काननि दै अँगुरी रहिवो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै।।टेरि कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुहै।माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।।भावार्थ : श्रीकृष्ण की मुरली की धुन पस्-मोहित एक गोपी कहती है कि जब श्रीकृष्ण मीठे स्वर में मुरली बजाएँगे तब यह अपने कानों में अंगुली डाल लेगी। ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं पर चढ़कर श्रीकृष्ण मोहक तान में गोधन गाते हैं तो गाते रहें, मैं उस तरफ ध्यान नहीं दूंगी। वे ब्रज के लोगों को बता देना चाहती हैं कि जब श्रीकृष्ण की मुरली बजेगी तो उसकी धुन सुनकर श्रीकृष्ण की एक मुस्कान पर ये अपने को संभाल नहीं पाएँगी।1. गोपी कानों में उँगली क्यों डालना चाहती है ?2. श्रीकृष्ण की मुस्कान गोपी पर क्या असर डालती है ?3. गोपी श्रीकृष्ण की मुस्कान को कैसा बताती है ?4. गोपी क्या देखकर स्वयं को नहीं संभाल पाती है ?5. ‘काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै’ मैं कौन-सा अलंकार है ?

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1. गोपी कानों में उँगली इसलिए डालना चाहती है कि जब श्रीकृष्ण मुरली की मधुर ध्वनि छेड़े, ऊँची-ऊँची अटारियों पर चढ़कर गोधन गाएँ तो श्रीकृष्ण का मधुर स्वर उनके कानों में न पड़े। वह मुरली की मधुर धुन सुनकर श्रीकृष्ण के वश में नहीं होना चाहती है।

2. श्रीकृष्ण की मुस्कान आकर्षक और प्रभावशाली है। उनकी मुस्कान के प्रभाव से गोपी अपने वश में नहीं रहती, वह श्रीकृष्ण की तरफ खिंचती चली जाती है।

3. गोपी श्रीकृष्ण की मुस्कान को आकर्षक और प्रभावशाली बताती है।

4. गोपी श्रीकृष्ण की मोहक मुस्कान को देखकर स्वयं को नहीं संभाल पाती है।

5. ‘काल्हि कोऊ कितनो समुहै’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार है।



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